नया भोर हँसता आता है, मुस्काती आती ऊषायें। चलो समय का शंख बजाकर, युग की नयी आरती गाये॥
मधु अमृत उमड़े पड़ते हैं, भर्गः तेज तरल हो आया! प्राची का सूरज, हिमगिरि के शिखरों पर चढ़कर मुस्काया! भागीरथी भावनाओं की उमड़ी, कण-कण प्राण नहाया!
जगे वेद मन्त्र, ऋषि जागे, जाग रही है नयी ऋचायें। नया भोर हँसता आता है, मुस्काती आती ऊषायें॥
गायत्री के अमृत छन्द में, महा प्राण की क्षमता उतरी! सबका मंगल लिए हृदय में, मानवता की ममता उतरी! जीवन उतरा श्वास-श्वास में, जन-मानस में समता उतरी!
तप उतरा मंगल-घट साधे, उतरी भू-पर कल्प-लतायें-नया भोर हँसता आता है, मुस्काती आती ऊषायें॥
केशर बिखर रही कन-कन में, तन-मन में नव-जीवन उतरा-स्वर्ग-सिद्धियाँ उतरी भू-पर शान्ति-कुञ्ज वन नन्दन उतरा! उतरा नया तेज जीवन में, जीवन में रस चेतन उतरा!
सम-गान-संगीत गंजाती, अँगड़ाती है चेतनायें। नया भोर हँसता आता है, मुस्काती आती ऊषायें॥
आँसू उतरा, अमृत उतरा, उतरा है भू-पर मधु गायन-अधर-अधन पर फिर से उतरे, निर्माणी गीता रामायण! करुणा उतरी प्राण-प्राण की, रस की किरणें लिए रसायन!
नये प्राप्त की नयी प्रभाती, गाती आती दसों दिशायें। नया भोर हँसता आता है, मुस्कराती आती ऊषायें॥
लाखनसिंह भदौरिया ‘सौमित्र’
*समाप्त*