शाश्वत सौंदर्य की प्राप्ति

February 1977

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मैंने पूछा- मैं किसे प्यार करूँ तो अन्तरमन से एक आवाज आई-उन्हें जिन्हें लोग दलित और गर्हित समझते हैं, जो निन्दा और भर्त्सना के पात्र हो चुके हैं, उनके मित्र बनकर उन्हें प्यार और प्रकाश दो। तुम्हारा गौरव इस पर नहीं कि तुम्हें संसार में बहुत से लोग प्यार करते हैं, वरन् तुम संसार को प्यार करके गौरवान्वित होगे

मैंने कहा- लोग कहते हैं कि जो त्वचा, वर्ण और शरीर से सुन्दर नहीं हैं, उन्हें देखने से सुख और शान्ति नहीं मिलती।” मेरी प्यारी आत्मा ने कहा- तुम असुन्दर के माध्यम से उस शाश्वत सौंदर्य की खोज करो जो त्वचा, वर्ण और शरीर के धुँधले बादलों में आकाश की नीलिमा के सदृश प्रच्छन्न शान्ति लिए बैठा है। जब बाह्य आवरणों का धुँधला बादल छट जायेगा तो सौंदर्य के अतिरिक्त कुछ रह ही न जायेगा।”

मैंने कहा- माँ ! संसार कोलाहल से परिपूर्ण है। सर्वत्र करुण और कठोर क्रन्दन गूँजते रहे हैं, तुम बताओ मैं सुनाता क्या?”

अविचल और उसी शान्त-भाव से मेरे हृदय में शीतलता जगाती हुई आत्मा की एक और स्वर झंकृत सुनाई दी-वत्स उन शब्दों को सुना करो जिनका उच्चारण न जिह्वा करती है न ओठ और न कण्ठ। निविड़ अन्तराल से जो मौन प्रेरणाएँ और परा-गान प्रस्फुटित होता रहता है, उसे सुनकर तेरा मानव-जीवन धन्य हो जायेगा।”

तब से मैं किसी भी वर्ण, त्वचा और शरीर वाले दीन-दुःखी को प्यार करने में लगा हूँ। तब से मैं हृदय गुहा में आसीत सौंदर्य के ध्यान में निमग्न हूँ, तभी से मौन की शरण होकर उस स्तोत्र को सुनकर आनन्द पूरित हो रहा हूँ, जिसे युगों से नभमण्डल का कोई अदृश्य गायक गीता और प्राणियों का मन बहलाता रहता है।

-खलील जुबान


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