असामान्य स्वप्न और योग निद्रा

February 1977

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स्वप्नों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में रख सकते हैं।- (1) शारीरिक दशाओं से प्रभावित स्वप्न (2) मानसिक स्थिति के प्रतिक्रिया स्वरूप स्वप्न (3) आध्यात्मिक स्वप्न।

अपच, उदर, विकार,शीतोष्णता का आधिक्य, भूख-प्यास शरीर में किसी वस्तु विशेष के स्पर्श, सोते समय वातावरण के विशेष परिवर्तन आदि के कारण देखे गये स्वप्न दृश्य प्रथम वर्ग के स्वप्नों की कोटि में आते हैं। इसमें अतिरंजना और विकृति का प्राधान्य होता है।

मन-मस्तिष्क पर पड़ने वाले विभिन्न दबावों, इच्छाओं, वासनाओं के आघातों-प्रतिघातों से उत्पन्न स्वप्न दृश्य द्वितीय श्रेणी के स्वप्नों की कोटि में आते हैं। स्वप्न शास्त्री कार्ल-शरेनल का कथन है कि- शरीर या मन का प्रत्येक विक्षोभ एक विशिष्ट स्वप्न को उत्पन्न करता है। स्वप्न तथ्यों पर ही आधारित होते हैं, पर वे तथ्यों की सीमा में बन्धे नहीं होते। उनमें कल्पनात्मक उड़ान भी भरपूर होती है।

प्रख्यात, वैज्ञानिक एवं मनःशास्त्री हैवलाक एलिस के अनुसार “प्रत्येक स्वप्न अतीत की अनुभूतियों और दैहिक संवेदनों, विकारों का संयुक्त परिणाम होता है। स्वप्न यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा चेतन-मन हमारी भावनाओं के हाथ का खिलौना मात्र है।”

मनोवैज्ञानिक फ्रायड की स्वप्न सम्बन्धी वे मान्यताएँ अब पुरानी पड़ चुकी है जिनके अनुसार व्यक्ति के अवचेतन को किन्हीं सामान्य और संकीर्ण ‘फार्मूलों’ द्वारा समझ सकने का दावा किया जाता था और उन्हें अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति मात्र माना जाता था। फ्रायड ने पहले जिन स्वप्नों को “इडीपुस काम्प्लेक्स” के द्वारा प्रेरित और दमित इच्छाओं के आधार सिद्ध हो रहे हैं। विभिन्न अनुसंधानों, प्रयोग से यह भली-भाँति स्पष्ट हो चुका है कि स्वप्न मात्र दमित यौन-आकांक्षाओं अथवा कल्पित क्लिष्ट यौन-विकृतियाँ के दायरे में नहीं समेटे जा सकते। उनके विविध वर्ग एवं स्तर है।

अवचेतन की फ्रायडीय व्याख्या तो युँग ने ही त्रुटि पूर्ण सिद्ध कर दी, अधुनातन खोजे अवचेतन के रहस्य के स्पष्ट प्रमाण देने वाले विभिन्न स्वप्नों की वैज्ञानिक छान-बीन से यही संकेत मिल रहे हैं कि व्यक्ति का अवचेतन मनुष्य के सामूहिक अवचेतन का ही एक अंग है। उसका विस्तार विराट् और महत् है। उसके एक लघुतम अंश का भी यदि हम उपयोग कर पाते हैं, तो वह चमत्कार सिद्ध हो जाता है। विश्व के अनेक आविष्कार अवचेतन के इसी उपयोग का परिणाम है। हेनरी फार डेसकार्टिस डन पाइनकेयर जैसे गणितज्ञों का स्वप्नों से मार्ग-निर्देश पाने की घटनाएँ सर्वविदित हैं सिलाई की मशीन की सुई से लेकर अणुबम तक सैकड़ों वैज्ञानिक आविष्कार की सफलता का आधार स्वप्न-प्रेरणाएँ रही है विश्व-विख्यात संगीतकार मोजार्ट को एक ललित संगीत-धुन एक बग्घी में झपकी लेते समय सूझी। वायलिन-वादक तारातिनी को ‘द डेविल्स सानेट’ नामक धुन पूरी की पूरी स्वप्न में सुनाई पड़ी। चौपीन भी अपने संगीत-सृजन की प्रेरणा सपनों से पाते थे। नृत्य-पारंगता प्रसिद्ध महिला मेरी विगमैन ने “पास्तोरेल” नामक एक नृत्य की कल्पना स्वप्न- दृश्य के आधार पर की। हेनरी मूर, पाब्लो पिकासो, एन्ड्रयू वेथ, बान गाँग, सल्वाडोर डाली आदि शीर्षस्थ चित्रकारों की सृजन-चेतना में स्वप्नों का बड़ा हाथ रहा है। साहित्यकारों का तो कहना ही क्या? पुश्किन, टॉलस्टाय,गेटे, शेक्सपियर, समेत असंख्य साहित्यकारों ने स्वप्न में प्रदत्त अवचेतन के संकेतों, संदेशों तथा प्रेरणाओं, परामर्शों का लाभ प्राप्त किया है।

प्रख्यात यूनानी लेखक होमार, अँग्रेज लेखक काँलरिज, एडगर एलर पो आदि ने अर्ध चेतन स्थिति में स्वप्न लोक में विचरण कर, उन्हीं प्रेरणाओं के आधार पर अनेक रचनाओं का सृजन किया। नीत्शे, दान्ते, बैगनर, विलियस ब्लेक, विलियस बटलर यीट्स, क्यूबिन आदि को विभिन्न कृतियों की प्रेरणाएँ स्वप्नों से मिली थी। कई आधुनिक लेखक अवचेतन के ऐसे संकेतों की प्राप्ति के लिए एल0एस0डी0 का सेवन करते हैं।

इस प्रकार जिस अवचेतन की झलकियों के सहारे गणितज्ञों ने जटिल ‘प्राब्लम्स’ सुलझाई है , वैज्ञानिकों ने महत्त्वपूर्ण आविष्कार किये है, कवियों ने अमर काव्य कृतियाँ रची है। कथाकारों और नाटककारों ने रचनाओं के आधार प्राप्त किये है। उसका विश्लेषण कोई सामान्य बात नहीं है। हर किसी के लिए यह सम्भव भी नहीं होगी।

अनेक वैज्ञानिक आविष्कारों के मूल में स्वप्नों की प्रेरणा होने तथा विभिन्न साहित्यिक कृतों का आधार स्वप्न होने की बात भी पाठक पढ़ चुके होगे। अनेक विश्व विख्यात गणितज्ञों ने स्वप्नों में ही गणित की जटिल गुत्थियों को सुलझाने का मार्ग पाया। प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक श्रीबज का महत्त्वाकाँक्षाओं को साकार करने में एक स्वप्न का विशेष हाथ रहा। इन सभी विख्यात तथा विश्लेषित घटनाओं से एक ही तथ्य ज्ञात होता है कि स्वप्न में हमारे मस्तिष्क का अधिक व्यापक ओर सशक्त हिस्सा जिसे कि अवचेतन कहते हैं, जागृत और क्रियाशील रहता है। तथा व्यक्ति-मन की संरचना के अनुसार वह विश्व-व्यापी गतिविधियों की गहराई से सम्बद्ध हो सकता है।

सन् 1883 में “बोस्टन ग्लोब” नामक अमरीकी समाचार-पत्र के संवाददाता द्वारा “ प्रालेप” द्वीप में भयंकर ज्वालामुखी-विस्फोट का स्वप्न-दृश्य देखने और खबर के रूप में उसके एक प्रकाशित होने से सम्बन्धित घटना प्रख्यात है। स्वप्न द्वारा उसी समय किसी सुदूर स्थान में घट रही घटना की जानकारी प्राप्त होने, भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का आभास प्राप्त करने आदि के सैकड़ों प्रसन्न अब विश्व प्रसिद्ध हो चुके है और उनकी वैज्ञानिकों द्वारा बारीकी से छान-बीन की जा चुकी है। तथा उन्हें सत्य पाया गया है।

आध्यात्मिक स्वप्न उन्हें कहा जाता है, जो अतीन्द्रिय अनुभूतियों से सम्बन्धित हो, इनके भी कई वर्ग है। सर्व सामान्य व्यक्तियों में से भी किसी को कभी-कभी ऐसी अनुभूतियाँ स्वप्नों में ही जाती है। व्यक्ति का अवचेतन मन अनन्त सम्भावनाओं और सम्वेदनाओं का भण्डार है, अतः उसे सामान्य रीति से समझना दुष्कर है।

योगनिद्रा इन्हीं सम्भावनाओं की उपलब्धि का एक मार्ग है। पाठक डेलियल वेयर नाम के रूसी लेखक की कृति “द मेकर आव् हैविनली ट्राउजर्य” के विषय में पढ़ चुके है। जिसमें उन्होंने एक तिब्बती लामा की अपने द्वारा देखी गयी उस सच्ची कहानी का उल्लेख किया है कि वह लोगों को योगनिद्रा में सुलाकर, उन्हें मनचाहे स्वप्न दिखलाता था।

योगनिद्रा वस्तुतः अवचेतन पर से चेतन का दबाव हटा लेने की विद्या है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति का मन अनन्त ब्रह्म-सत्ता की तरंगों की गतिविधियाँ देख-पकड़ पाने में समर्थ हो जाता है और तब वह अतीत अथवा भविष्य की वास्तविक घटनाओं का साक्षी बन जाता है।

जिस व्यक्ति का अन्तः करण जितना ही शुद्ध-बुद्ध होगा और जो अपनी आन्तरिक शक्तियों को जितना ही अधिक विकसित होने देगा, उन पर से चेतन-मस्तिष्क के दबावों को हटाने रहेगा, तथा ब्रह्माण्ड-व्यापी चेतना से तादात्म्य का जितना प्रयास करेगा, वह आध्यात्मिक अनुभूतियों का उतना ही अधिकारी बनता चला जाएगा। स्वप्न अवचेतन की जागृति मात्र है और संस्कार शुद्ध व्यक्ति का अवचेतन भी शुद्ध होने से उसके स्वप्न यथार्थ की ही अभिव्यक्तियाँ होते हैं। यह यथार्थ सुदूर वर्तमान का भी हो सकता है तथा सूक्ष्म स्तर पर सुनिश्चित हो चुके भविष्य का भी।

स्वप्नावस्था में प्रशिक्षण की इन दिनों एक नवीन विधि का प्रयोग हो रहा है उसमें शिक्षार्थी को प्रत्यक्ष’ कुछ भी सिखाया समझाया नहीं जाता वरन् वातावरण में ऐसे संकेतों की गर्मी उत्पन्न की जाती है जिसका प्रभाव उस क्षेत्र के निद्रित लोगों पर पड़े ओर वे अनायास ही उस प्रभाव से प्रशिक्षित होने लगे। इस पद्धति का नाम- “हिप्नोपेडिया’ है।

यूरोप-अमरीका में “हिप्नोपेडिया” नाम की पद्धति का इन दिनों भरपूर उपयोग भाषा-शिक्षण अभिनय प्रशिक्षण आदि में किया जा रहा है। शिक्षा शास्त्री इस पद्धति में गहरी रुचि ले रहे हैं और अगले कुछ ही वर्षों में यही प्रणाली शिक्षा में लोकप्रिय हो जाये, तो आश्चर्य नहीं। इस हेतु इस प्रणाली में निहित खतरों की सम्भावना को दूर करना होगा। रूस के विख्यात स्वप्न शास्त्री श्रीपावलोव एवं सोवियत आयुविज्ञान अकादमी के प्राध्यापक एम॰ सुमार -कोवा तथा ई॰ उशाकोवा का कथन है कि जब तक नींद की प्रत्येक अवस्था का सूक्ष्म एवं विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हो जाता ‘हिप्नोपेडिया’ की आँशिक उपयोगिता ही रहेगी। उनका यह भी कहना है कि अप्रशिक्षित प्रयोगकर्ता इस विधि से जाने या अनजाने छात्र-छात्राओं तक गलत सन्देश भेज सकता है तथा इस प्रकार विभ्रान्त कर सकता है।

ज्ञानिक इन खतरों के प्रति सावधान है तथा उनसे बचे रहने की दिशा में खोज-कार्य कर रहे हैं।

स्वप्नों द्वारा अध्यापन के प्रयोग रूस में भी जोरों से चल रहे हैं। अमरीका में भी इस पद्धति का प्रचलन बढ़ रहा है। ‘हिप्नोपेडिया’ की एक पद्धति में आत्म-सम्मोहन का अभ्यास किया जाता है, दूसरी में सामान्य शिक्षण विधि का आत्मसम्मोहन वाली पद्धति में छात्र-छात्राओं को स्वप्नावस्था में आत्मनिर्देश सुनाये जाते हैं। एक स्कूल के बीस छात्र-छात्राओं को नाखून कुतरने की आदत थी। मानस शास्त्री डॉ॰ लारेन्स लोशन ने उनकी आदत छुड़वाने का दायित्व ओढ़ा। इन सबको सोने के बाद, ‘हिप्नोपेडिया’ पद्धति से एक रिकार्ड सुनवाया जाता था। रिकार्ड में इस एक ही पंक्ति का निरन्तर दुहराव होता था कि “मेरे नाखून बहुत कड़ुवे है।” कुछ ही दिनों में सभी छात्र-छात्राओं पर इसका समुचित प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपनी वह आदत छोड़ दी।

चैकोस्लोवाकिया में अंग्रेजी-शिक्षण हेतु “हिप्नोपेडिया” की दूसरी पद्धति अपनाई गई है। लगभग दस हजार छात्र-छात्राओं के घर वायरलैस (बेतार के तार ) द्वारा रेडियो स्टेशन से जुड़े है। पाठ्यक्रम दस पाठों में विभाजित है। एक पाठ की अवधि बारह घण्टे है। दो-दो सप्ताह के अन्तर से एक-एक पाठ सिखाया जाता है पाँच माह में पूरे दस पाठ याद करा दिया जाते हैं।

रात्रि आठ बजे से रेडियो-स्टेशन से पाठ का प्रसारण प्रारम्भ होता है। तीन घण्टे तक यह प्रसारण चलता है। इस अवधि में ही छात्र-छात्रा चुपचाप अपना खाना भी खा सकते हैं, आराम-कुर्सी पर विश्राम भी कर सकते हैं। एक ही नियम है कि ध्यान प्रसारित पाठ की ओर ही केन्द्रित रहे, ग्यारह बजे से रेडियो स्टेशन से लोरी ‘रिले’ होने लगती है और छात्र-छात्राओं को सुला दिया जाता है। फिर दो बजे तक वही पाठ लोरी के स्वर में धीरे-धीरे दुहराया जाता है। बाह्य मन निष्क्रिय बना रहता है, पर चेतन मस्तिष्क के वे अंश तो दिन की थकान से शान्त हो चुके है,नींद के बाद खुलकर नई स्फूर्ति के साथ दी जा रही सूचनाएँ संग्रहित करते रहते हैं।

योग साधना में शिथिलता, शून्यावस्था, समाधि, शवासन आदि को बहुत महत्त्व दिया जाता है यह अर्धतन्द्रा की स्थितियाँ है। इन्हें योगनिद्रा कहा जाता है। स्नायु संस्थान पर से तनाव, दबाव, हटाकर यदि उसे शान्त, विश्रान्त, सौम्य, मनःस्थिति को एक प्रकार से जागृत निद्रा के समतुल्य माना जा सकता है। धारणा और ध्यान के चरण पूरे करते हुए समाधि स्थिति पर पहुँचना साधना विज्ञान की चरम प्रक्रिया है। स्वप्नावस्था में तो मनुष्य का अपने ऊपर नियन्त्रण नहीं रहता और स्वसंकेत देना एवं अपने बलबूते अपने को इच्छित दिशा में मोड़ सकना संभव नहीं। इसलिए आवश्यक समझा गया कि कृत्रिम योगनिद्रा की स्थिति लाने का अभ्यास किया जाय इस स्थिति में मन और बुद्धि तो तंद्राग्रस्त हो जाते हैं। पर चित्त में संकल्प ज्वलन्त रखे जा सकते हैं। इन संकल्पों से अचेतन मन को प्रभावित एवं प्रशिक्षित किया जाता है। आत्म परिष्कार को प्रधान ध्यान तन्मयता में- वित में उच्चस्तरीय संकल्प जागृत रखे जाते हैं। जो अन्तःकरण को परिष्कृत करने के लिए आवश्यक है। इन प्रयोगों को यदि सही उद्देश्य समझकर सही रीति से कार्यान्वित किया जाय तो परिणाम निश्चित रूप से अतीव आशाजनक होते हैं।

निद्रित स्थिति में प्रेरणात्मक स्वप्नों का इन दिनों विज्ञान क्षेत्र में उत्साह के साथ प्रयोग किया जा रहा है। यह स्वप्न सृजन दृश्यों के रूप में संभव नहीं हो सकता क्योंकि अंतर्मन बहुत हठी है जब वह अपनी पर उतरा होता है तो बाहरी अंकुश मानने के लिए सहज ही तैयार नहीं होता। वैज्ञानिकों को स्वप्न सृजन के लिए जानकारियाँ, मान्यताओं, आदतों एवं इच्छाओं में हेर-फेर करने की गुँजाइश दिखी है सो वे स्वप्न प्रशिक्षण की गतिविधियाँ इसी आधार पर विनिर्मित कर रहे हैं। भारतीय तत्त्ववेत्ताओं ने इस सन्दर्भ में योगनिद्रा एवं समाधि के विभिन्न स्तर-सामान्य-असामान्य लोगों की मनोभूमि में खप सकने योग्य बनाये है। इसमें सचेतन का तंन्द्रित करने- चित्त में संकल्प जीवन रखने और अंतर्मन को प्रशिक्षित करने के तीनों ही उद्देश्य पूरे होते हैं। इस दिशा में जितनी सफलता मिलती है उतने ही सामान्य स्वप्नों में भी अति महत्त्वपूर्ण ऐसी जानकारियाँ मिलने लगती है जिन्हें सूक्ष्म दर्शन एवं अतीन्द्रिय प्रतिभा के नाम से पुकारा जा सके।


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