स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीनी

February 1977

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भारत में पर्व, उत्सव या प्रसन्नता के प्रत्येक अवसर पर मीठे भोज्य पदार्थ का आयोजन किया जाता है। मीठे पकवानों के बिना हमारी प्रसन्नता अधूरी रहती है और ऐसा लगता है मानों हमने त्यौहार का अधूरा आनन्द लिया। मिठास की स्वाभाविक चाह चीनी से बनी विविध मिठाइयों टॉफी, बिस्किट, शर्बत, कुल्फी और चाय आदि से पूरी होती है। आये दिन होटल और हलवाई की दुकान पर जाकर अनेक प्रकार की मिठाइयाँ खाते रहते हैं, पर हमने कभी यह विचार तक नहीं किया कि स्वास्थ्य निर्माण में इनका क्या योगदान है?

जर्मन रसायन शास्त्री बैडिल ने चीनी के प्रयोग कुत्तों पर किये। उन्होंने सात प्रतिशत चीनी मिले जल के इन्जेक्शन कुत्तों को दिये तो उन्होंने देखा कि शरीर की श्लेष्मिक कलाओं में जलन पड़ने लगती है, उनका रंग लाल हो जाता है। चीनी की मात्रा की वृद्धि करने पर उनकी लालिमा और बढ़ जाती है। इस प्रयोग के समय बेचैनी के कारण कुत्ते की छटपटाहट इतनी बढ़ गई कि चिकित्सक को अपना प्रयोग रोकना पड़ा।

इसी तरह का एक प्रयोग डा॰ ओगटा ने भी कुत्तों पर किया उन्होंने माँस के साथ एक तोला चीनी मिला कर खिलाई। इसका परिणाम यह निकला कि कुछ दिनों में एक चौथाई पाचन शक्ति घट गई।

एचिसन टाबर्टसन नामक चिकित्सक ने वायु व नेत्र रोग से पीड़ित रोगियों को 100 ग्राम चीनी का शर्बत ढाई सो ग्राम पानी में बनाकर दिया तो थोड़ी ही देर में रोगियों की हालत बिगड़ने लगी। अधिकतर लोगों को उल्टियाँ हुई। पेट के दर्द और छाती में जलन पड़ने लगी, दाँत खट्टे हो गये। इन्हीं रोगियों को जब फल की शर्करा पिलाई गई तो कोई कष्ट नहीं हुआ। डाक्टर टावटंसन ने यह भी देखा कि नाश्ते में चीनी का अधिक उपयोग करने से आमाशय की श्लेष्मिक कलाओं से श्लेष्मा इतना अधिक निकलता है कि पाचन तन्त्र को ही कमजोर बना देता है।

टमेरिका में मिशीगन विश्व-विद्यालय के दाँत विशेषज्ञ का कहना है कि चीनी का सबसे अधिक कुप्रभाव दाँतों का पड़ता है। उन्होंने देखा कि जिन बालकों के आहार में मिठाइयों को स्थान दिया गया था उनके दाँत शीघ्र ही खराब होने लगे और जब मीठी चीजें निकाल दी गई तो उनके दाँत पुनः स्वस्थ हो गये। संसार के विभिन्न देशों में चीनी की अधिक खपत करने वाला देश अमेरिका ही है इसीलिए दाँतों के रोगियों संख्या भी सबसे अधिक है। एक जाँच से पता चला कि वहाँ 4 लाख बच्चे हृदय रोग से, 10 लाख कान के रोग से 40 लाख पोषक तत्त्वों के अभाव से, 60 लाख टान्सिल बहने से 1 करोड़ दंत रोगों से और डेढ़ करोड़ अन्य रोगों से पीड़ित है। रोगी बच्चों की इतनी बड़ी संख्या का मुख्य कारण चीनी से बनी मिठाइयों का उपयोग करना है।

चिकित्सकों ने जब यह देखा कि चीनी के अत्यधिक प्रयोग से लोगों के दाँत समय से पूर्व ही गिर जाते हैं और नाना प्रकार के रोग होते हैं तो उसकी रोकथाम पर विचार विमर्श हेतु देहली में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें डेन्टल काउंसिल ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष कर्नल एन॰एन॰ बेरी ने बताया कि यदि दाँत की बीमारियों की रोक-थाम के लिए प्रयास ने किये गये तो सौ वर्ष वाद यह स्थिति आ जायेगी कि प्रत्येक व्यक्ति 20 वर्ष की उम्र में ही बिना दाँतों का हो जाया करेगा।

आज से 14 वर्ष पूर्व नार्थ कैरोलिया (अमेरिका) चिकित्सक सैन्डसर ने सन्धियों की सूजन का रोग जिन बच्चों को था उनका इलाज करने से पूर्व मिठाई बिलकुल बन्द करा दी। कुछ दिनों बाद उन्होंने देखा कि मीठा खाने वाले बच्चों की अपेक्षा इनका स्वास्थ्य शीघ्र अच्छा गया।

जब चीनी का प्रयोग अधिक मात्रा में किया गया है तो उसका विशेष अंश दाँतों के एकत्रित होने लगता है जिससे पेट में वायु बनने लगती है। मधुमेह, आँव, मंदाग्नि, अजीर्ण, आँतों में जलन, जीभ पर दाने तथा हृदय रोग जैसे अनेक बीमारियाँ इसी शकर की देन है। चीनी के उपयोग से सम्पूर्ण शरीर ही विषाक्त हो जाता है। शरीर की अस्थियाँ दुर्बल, माँस-पेशियाँ अशक्त तथा शरीर में लौह एवं अनेक जीवन तत्त्वों की कमी हो जाती है।

अनेक रोगों को जन्म देने के कारण चिकित्सक चीनी को स्वास्थ्य का शत्रु मानने लगे है। चीनी के तैयार करने का ढंग ही इतना दोष-पूर्ण है कि अन्तिम में सिवाय मिठास के और कुछ शेष ही नहीं रहता। फिर भी इस मीठे विष को लोगों को चाव से खाता देख आश्चर्य होता है। शरीर शास्त्रियों ने शर्करा को कार्बोहाइड्रेट की तरह उपयोगी माना है। भोजन में प्रयुक्त होने वाली शर्करा को हम चार रूपी में देख सकते है-

अन्न के पाचन से बनी।

फलों की मिठास से प्राप्त।

दूध से मिलने वाली।

गन्ने की बनी।

इन चार प्रकार की मिठास से अधिकतर लोग गन्ने से बनी शकर से ही अधिक परिचित है, पर शरीर इसका उपयोग सामान्य रूप से अन्य शर्कराओं की तरह नहीं कर पाता। इसीलिए गाँधी जी ने सफेद चीनी को मनुष्य के लिए अप्राकृतिक खाद्य-पदार्थ माना है। गुड या खाँडसारी शकर में जो तत् पाये जाते हैं वह चीनी में नहीं मिलते। चीनी के बदले में मिठास की पूर्ति हेतु गुड, शहद, छुहारे,खजूर, मुनक्का और किशमिश आदि का प्रयोग किया जा सकता है। यह खाने से भी स्वादिष्ट लगते हैं और साथ ही कैल्शियम, प्रोटीन और लौह जैसे तत्त्वों की भी प्राप्ति हो जाती है।

गुड़ में जो क्षार है वह शकर में कहाँ मिलते हैं। फलों की प्राकृतिक मिठास की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है क्योंकि यह माँस-पेशियों तथा रक्त को बढ़ाने और हड्डियों को मजबूत करने का काम करती है। मौसमी फल सस्ते और सुविधा से प्राप्त भी हो जाते हैं।

स्वस्थ जीवन की प्राप्ति तथा रोगों से मुक्त होने के लिए यह आवश्यक है कि खाद्य-पदार्थों शकर की मात्रा जहाँ तक सम्भव हो घटाई जाये।


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