अन्य यात्रियों के साथ नाव में बैठे हुए तीन- विद्वान भी नदी पार कर रहे थे। इनमें एक थे दार्शनिक, दूसरे वैज्ञानिक और तीसरे राजनेता।
रास्ते में मल्लाह ने धर्म-जिज्ञासा की और पूछा कि क्या उसके जैसे अशिक्षित के लिए भी धर्म-पालन सम्भव है।
तीनों विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से व्यंग किया और कहा- दर्शन-शास्त्र जाने बिना, ज्ञान-विज्ञान समझे बिना और समाज-नीति-राजनीति जाने बिना धर्म का रहस्य कैसे जाना जा सकता है? तुम्हारे लिए उसे जान सकना असम्भव है।’ मल्लाह चुप हो गया
थोड़ी दूर आगे चलकर नाव भंवर में फँस गई। डूबना निश्चित था। मल्लाह ने चिल्लाकर कहा- आप लोगों में से जो तैरना जानते हों वे नदी में कूद पड़े और अपने प्राण बचा ले।
जौ तैरना जानते थे, वे कूद कर पार जाने लगे, पर वे तीनों विद्वान डूबते चले गये।
मल्लाह भी नाव छोड़ कर तैरने लगा। उसने सोचा ज्ञान के साथ कर्म जुड़ा न हो तो उससे न जीवन की रक्षा हो सकती है और न धर्म की।