सूक्ष्मता की शक्ति और उसके चमत्कार

February 1977

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आकार की दृष्टि से स्थूलता का ही मूल्यांकन किया जा सकता है। मोटी बुद्धि आकृति को देखती और उसी के आधार पर उसके विस्तार, वजन, उपयोग तथा महत्त्व के सम्बन्ध में अनुमान लगाती है। पर बात वैसी ही नहीं महत्त्व गहराई में छिपा रहता है। प्राणी की आकृति देखकर नहीं, उसकी प्रकृति का स्वरूप जानकार ही यह समझा जा सकता है। कि उसका स्तर क्या है? उससे किस प्रकार का सम्बन्ध रखा और क्या उपयोग किया जा सकता है? मिट्टी के ढेले या पत्थर के टुकड़े का यह महत्त्व नहीं जो परमाणु के मध्य बिन्दु-न्यूक्लियस का। यों उस ढेले या टुकड़ों के असंख्य परमाणु गठित होते हैं पर प्रचण्ड शक्ति तो तभी मिलती है जब गहराई में घुसते-घुसते ऊर्जा के उद्गम केन्द्र तक जा पहुँचे।

अध्यात्म विज्ञान व्यक्तित्व को गहराई में प्रश्न करने और आत्मा को जानने-समझने पर जोर देता है। हाड़−माँस के मनुष्य की शक्ति बैल,घोड़े से कम है। उसका महत्त्व ज्ञान, गरिमा और भाव सम्वेदना में सन्निहित है। यह सूक्ष्मता की अधिकाधिक गहरी परतें है। यदि आत्मा के गहन अन्तराल का स्पर्श किया जा सके तो प्रतीत होगा कि जीवन के उस मध्य बिन्दु में अनन्त शक्तिशाली ब्रह्मसत्ता का आलोक विद्यमान। इस चिनगारी को यदि ठीक तरह सँभाला, सँजोया जा सके तो वह सब कुछ अपने भीतर से ही प्राप्त किया जा सकता है। जिसकी मनुष्य को आकाँक्षा एवं आवश्यकता है।

सूक्ष्मता की शक्ति का थोड़ा आभास प्राप्त करने के लिए होम्योपैथी विज्ञान की औषधि निर्माण प्रक्रिया का लिया जा सकता है। उसका आविष्कार इसी आधार पर हुआ है कि सूक्ष्मता के क्षेत्र में जितना गहरा उतरा जाय उतना ही अधिक प्रभावशाली शक्ति-पुंज करतलगत किया जा सकता है।

किसी भी होम्योपैथिक दवा के निर्माण को गणितीय ढंग से यदि देखा जाय, तो विस्मयजनक तथ्य हमार सामने आते हैं। उदाहरण के लिए सल्फर-30 नामक औषधि की निर्माण-प्रक्रिया पर विचार करें। इसके लिए ऐ ग्राम ‘सल्फर’(गन्धक) लिया जाता है और उसे 99 ग्राम दुग्ध-शर्करा मिल्क-सुगर में घोटा जाता है। इससे बने चूर्ण को ‘सल्फर-1’ कहा जाता है। इस ‘सल्फर-1’ की एक ग्राम मात्रा को पुनः 99 ग्राम दुग्ध-शर्करा में घोंटने पर बना चूर्ण “सल्फर-3” कहा जाता है।

“सल्फर-3” की एक ग्राम मात्रा को तब 87 प्रतिशत अल्कोहल वाले 99 ग्राम द्रव में अनेक बार में घोला जाता है। अर्थात् थोड़े-थोड़े द्रव से एक ग्राम सल्फर-3 को क्रमशः रसार्द्र करते जाते व भली-भाँति घोंटते जाते हैं। इस प्रकार एक ग्राम ‘सल्फर-3’ को पूरे 99 ग्राम अल्कोहल-द्रव में कई चरणों में घोलते-घोटते हैं। इस प्रक्रिया से तैयार ‘टिन्क्चर’ को ‘सल्फर-4’ कहते हैं। इस ‘टिन्वचर’ की 1 ग्राम मात्रा पुनः 87 प्रतिशत अल्कोहल की मात्रा वाले 99 ग्राम द्रव में भली भाँति उपरोक्त विधि से मिश्रित की जाती है। इससे प्राप्त द्रव हुआ “सल्फर-5”। यही प्रक्रिया पुनः दुहराने पर ‘सल्फर-3’ तथा इसी तरह अगले क्रमाँक का द्रव प्राप्त किया जाता है। ‘सल्फर-6’ को जब 24 बार और इसी क्रिया से गुजारा जायेगा, तब जाकर सल्फर-30 प्राप्त होगा। मात्र सल्फर-30’ ही नहीं, लगभग सभी होम्योपैथिक दवाओं को तैयार करने की प्रक्रिया मूलतः ऐसी ही कुछ रहती है। जितनी अधिक ‘पोटेन्सी’ की दवा हो, उतनी ही सूक्ष्मता।

इस प्रक्रिया को भौतिकी के सिद्धान्त के सिद्धान्त पर परखने पर विस्मयकारक तथ्य उभरते हैं। हाइड्रोजन का परमाणु सर्वाधिक हल्का होता है। और हाइड्रोजन की 1 ग्राम मात्रा में हाइड्रोजन-अणुओं की संख्या होती है, 6.02 ग्राम 10 (22) अर्थात् 6.02 में 10 की 23 घात का गुणा करने पर प्राप्त संख्या अर्थात् (6 लाख 2 सौ-शंख यूरेनियम का परमाणु हाइड्रोजन से 238 गुना भारी होता है। अतः जितने परमाणु एक ग्राम हाइड्रोजन में होते हैं।, उतने ही परमाणु 238 ग्राम यूरेनियम में होंगे। गन्धक हाइड्रोजन से 32 गुना भारी होता है। अतः 32 ग्राम गन्धक में भी उतने ही परमाणु होंगे।6.02 ग्राम 10 (23) यानी 6 लाख सौ शंख। सल्फर की 1 ग्राम मात्रा में परमाणुओं की संख्या होगी इसका 32 वाँ हिस्सा अर्थात् 18812 शंख सल्फर-1 की 100 ग्राम मात्रा में होगे, क्योंकि 100 ग्राम सल्फर-1 में सल्फर 1 ग्राम ही विद्यमान रहता है। शेष तो दुग्ध-शर्करा मिल्क-सुगर होती है। सल्फर-2 की 10 हजार ग्राम मात्रा में इतने ही अणु होंगे और सल्फर -3 की 10 लाख ग्राम मात्रा में। सल्फर-30 की 100 (सौ घातें तीस) ग्राम मात्रा में इतने ही अणु होंगे, जिनका अर्थ हुआ कि 1 ग्राम सल्फर-30 में (6 लाख 2 सौ शंक)/32 ग्राम 100 (30) परमाणु की गन्धक के हो सकते हैं। किन्तु परमाणु का परमाणु-रूप में ही विभाजन असम्भव है। इसलिए मात्र यह कहा जा सकता है कि 5 ग्राम 10 (37) अर्थात् 50 शंख शंख ग्राम सल्फर-30 में ही गन्धक का 1 परमाणु विद्यमान होगा। शेष तो अल्कोहल ही प्रमुख है। इसे यों कहा जा सकता है कि सल्फर-30 रासायनिक दृष्टि से तो शुद्ध ‘अल्कोहल’ ही है, क्योंकि 50 शंख ग्राम में गन्धक का मात्र 1 परमाणु होना नगण्य ही है। 50 शंख खुराक (प्रति ग्राम खुराक के हिसाब से) यदि सल्फर-30 की रोगियों को दी जाएँ, तो उसमें से किसी एक खुराक में गन्धक का एक परमाणु विद्यमान होगा। शेष किसी खुराक में गन्धक का एक परमाणु विद्यमान होगा। शेष किसी खुराक में नहीं। निष्कर्ष यही निकला कि ‘सल्फर-30’ रासायनिक दृष्टि से विशुद्ध अल्कोहल है। यही बात कार्बन-30 या कि 30 पोटेन्सी वाली किसी अन्य दवा के बारे में कही जा सकती है। फिर अधिक पोटेन्सी वाली औषधियों का तो कहना ही क्या?

होम्योपैथी के जनक डॉ॰ हनीमैन ने अपने लेखों अनुभवों द्वारा इस बात को कहा कि होम्योपैथिक औषधियों की निर्माण-प्रक्रिया औषधियों की “स्मिरिट” को प्रखर एवं सक्रिय बना देती है। उधर आज आधुनिक भौतिकीविद् भी इसी निष्कर्ष पर पहुँच रहे हैं कि ‘मैटर’ की कोई मूलभूत सत्ता ‘मैटर’ रूप में नहीं है, वह ऊर्जा या कि अज्ञात तरंगों का ही रूपान्तरण मात्रा है। क्या से तरंगें चेतना-तरंगें है? क्या ‘मैटर’ में चेतना निहित रहती है? ये प्रश्न आज वैज्ञानिकों के सामने ज्वलन्त है।

आयुर्वेद में रसायनों के अनेक पुट लगाने और लगातार बहुत समय तक घोटने की विधि-व्याख्या इसी सिद्धांत के आधार पर की गई है कि औषधि के गठित परमाणुओं का अधिकाधिक विगठन हो सके और उसकी मूल शक्ति का चिकित्सा प्रयोजन के लिए लाभ उठाया जा सकें। स्पष्ट है कि बादाम को ऐसे ही चबाकर खा जाने की अपेक्षा उसे बारीक पीस कर ठण्डाई आदि के रूप में प्रयोग करना बलवर्धक है। यदि उसे धीरे-धीरे घिसा जाय और तब उसे चाटा जाय तो इससे गुणों में और अधिक वृद्धि हो जाती है।

यज्ञ-विज्ञान इन दिनों तो ऐसे ही धार्मिक कर्मकाण्ड प्रक्रिया तक सीमित रह गया है, पर उसमें उपयोगी पदार्थों को अग्नि के माध्यम से सूक्ष्मीकरण का रहस्यमय विज्ञान भी जुड़ा हुआ है, इसे बहुत कम लोग जानते हैं। थोड़ी-सी हवन-सामग्री यों अपने स्थूल रूप में जरा-सी जगह घेरती और तनिक-सा प्रभाव उत्पन्न करती है, पर जब वह वायु भूत होकर सुदूर क्षेत्र में विस्तृत होती है तो उस परिधि में आने-वाले सभी प्राणी और पदार्थ प्रभावित होते हैं। स्वल्प साधनों को अधिक शक्तिशाली और अधिक विस्तृत बना देने का प्रयोग यज्ञ प्रक्रिया में किया जाता है। फलतः उसके प्रभाव क्षेत्र में आने वालों की शारीरिक व्याधियों से ही नहीं मानसिक ‘आँधियों’ से भी छुटकारा पाने का अवसर मिलता है।

शरीर के अवयवों को प्रभावित करने के लिए औषधियों का लेप, खाना-पीना या सुई लेने से उपचार हो सकता है। किन्तु मानसिक रोगों एवं मनोविकारों की निवृत्ति कोषों तक पहुँचने और अपना प्रभाव उत्पन्न करने में समर्थ हो सके। यह कार्य यज्ञ से उत्पन्न हुई शक्तिशाली ऊर्जा से सम्पन्न हो सकता है। वह नासिका द्वारा, रोमकूपों एवं अन्यान्य छिद्रों द्वारा शरीर में प्रवेश करती है। विशेषतया मस्तिष्क के भीतरी जीवाणुओं तक प्रभाव पहुँचाने के लिए नासिका द्वारा खींची हुई वायु ही काम कर सकती है यदि उसमें यज्ञ-प्रक्रिया द्वारा प्रभावशाली औषधियों और ध्वनियों का समावेश किया गया है तो उनका समन्वय विशेष शक्तिशाली बनेगा और मानसिक विकृतियों के निराकरण से अति महत्त्वपूर्ण उपचार की भूमिका सम्पन्न करेगा।

योगाभ्यास में व्यक्तित्व की गहराई में उतरने और उसके सूक्ष्मतम अन्तराल जो जागृत विकसित किया जाता है फलतः दिव्य-शक्तियों का उद्भव होता है और सिद्ध पुरुषों में गिने जाने का अवसर मिलता है सूक्ष्मता की शक्ति के चमत्कार हर क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।


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