नर-नारी सब एक समान (kavita)

February 1976

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धरती कहती, अम्बर कहता, कहते साधु-संत विद्वान।

छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।

माता, बहिन, सुता, पत्नी का, जिस घर में होता सम्मान।

शान्ति- कुंज वह देवधाम वह, वहाँ वास करते भगवान।।

घृत के दीप वहाँ जलते हैं।

सुरभित भाव सुमन खिलते हैं।।

जहाँ प्रेम से पार्वती शिव-

समता-ममता से मिलते हैं।।

खुश होते हैं देख-देखकर, एक दूसरे का उत्थान।

जीवन की मंजिल में दोनों, गाते सृष्टि सृजन का गान।।

एक दूसरे के पूरक हैं, तन है एक दूसरा प्राण।

छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।

पुरुष सबल पौरुष गुणधारी।

नारी पूनम की उजियारी।।

दोनों करें साधना ऐसी-

झूम उठे जीवन फुलवारी।।

एक दूसरे से बढ़-चढ़कर, क्षमता प्रतिभा है अनमोल।

दोनों की गरिमा से बढ़ जाता जीवन का मोल।।

जीवन-रथ के दोनों पहिये, विजय हार बनते अम्लान।

छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।

बीते युग की छोड़ो बातें।

करो नहीं आपस में घाते।।

वाद-विवादों में न गँवाओ-

स्वर्णिम दिन चाँदी-सी रातें।।

एक दूसरे को देता है, साहस, बल, सहयोग।

दूर हटे जिससे सदियों का, विकृतियों का भीषण रोग।।

करना है दोनों को मिलकर, नवयुग का नूतन निर्माण।

छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।

-बाबूलाल जैन ‘‘जलज’’

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*समाप्त*


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