इस अंक की पाठ्य सामग्री और उसका प्रयोजन

February 1976

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स्वर्ण−जयन्ती साधना वर्ष में अखण्ड−ज्योति के प्रिय परिजनों को आत्मिक प्रगति के लिए−विशेष प्रयत्न करने का अनुरोध किया गया है। इस प्रयास के तीन पक्ष हैं− (1) उपासनात्मक विधि−विधान, जिसमें 45 मिनट नियमित जप ध्यान, हंसयोग तथा लययोग की प्रक्रिया सम्मिलित है। सोते और उठते समय का आत्मबोध चिन्तन और तत्वबोध मनन भी इसी से जुड़ा हुआ है। (2) जीवन के स्तर को परिष्कृत करने के लिए आत्म−चिन्तन, आत्म−सुधार, आत्म−निर्माण और आत्म−विकास की प्रक्रिया (3) दिव्य−सत्ता केन्द्र से मिलने वाले विशिष्ट अनुदान जो साधकों की श्रद्धा एवं सम्वेदना के आधार पर ग्रहण किये जाते एवं फलित बनते हैं।

इस प्रक्रिया को यदि सही रीति से अपनाया जा सके तो यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि इस प्रक्रिया को अपनाने वाले एक वर्ष में ही अपने स्तर में उत्साहवर्धक परिवर्तन करेंगे।

जनवरी अंक में उपासना प्रक्रिया का प्रधान रूप से विवेचना एवं मार्ग−दर्शन किया जा चुका है। इस फरवरी अंक में जीवन−साधना की विचारणा एवं कार्य−पद्धति पर प्रकाश डाला गया है और उसे किस प्रकार कार्यान्वित किया जा सकता है, इसका व्यावहारिक परामर्श दिया गया है।

जीवन−साधना दर्शन एवं व्यवहार के चार आधार (1) आत्म−ज्ञान (2) ब्रह्म−ज्ञान (3)तत्व−ज्ञान (4) सद्ज्ञान। इन चारों के अन्तर्गत चारों वेदों में वर्णित ब्रह्म विद्या के समस्त ज्ञान−विज्ञान का समावेश हो जाता है।

प्रस्तुत अंक में इन्हीं चार विषयों को सरलतापूर्वक समझाने और उनका व्यावहारिक रूप बताने का प्रयत्न किया गया है। लेख इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए (1) आत्म−ज्ञान पर प्रकाश डालने वाले चार लेख हैं। प्रथम−आत्म−ज्ञान सबसे बड़ी उपलब्धि। द्वितीय−उत्थान−पतन से कुंजियां अपने हाथों में। तृतीय−सादगी आत्मिक प्रगति का प्रमुख आधार है। चतुर्थ- समय सम्पदा का उपयुक्त विभाजन। (2) ब्रह्मज्ञान दर्शन पर तीन लेख है। प्रथम− आस्तिकता का स्वरूप और आधार। द्वितीय−उपासना की आवश्यकता और प्रक्रिया। तृतीय−ईश्वर दत्त सम्पत्तियाँ और उनका सदुपयोग। (3) तत्वज्ञान के तीन लेख हैं। प्रथम−विकृत दृष्टिकोण ही नरक और परिष्कृत चिन्तन ही स्वर्ग है। द्वितीय−राग−द्वेष रहित सुसन्तुलित स्नेह, सद्भाव। तृतीय−महत्वाकाँक्षाओं की मोड़−जीवन का काया−कल्प (4) सद्ज्ञान के तीन लेख हैं। प्रथम −कर्मयोग की सर्वसुलभ साधना। द्वितीय−सफलता के लिए प्रखर कर्म और उसके लिए संकल्प बल चाहिए। तृतीय−अध्यात्म बनाम परमार्थ। इस प्रकार कुल 13 लेखों में जीवन−साधना के चारों विषयों का समावेश करके यथा सम्भव प्रयत्न किया गया है।

इसके बाद दो लेख नवरात्रि साधना सम्बन्धी हैं और दो लेख प्रशिक्षण सम्बन्धी। नवरात्रि सम्बन्धी दो लेखों में इस वर्ष चैत्र और अश्विन नवरात्रियों में 24 हजार गायत्री अनुष्ठान तपश्चर्या का महत्व और विधान बताया गया है, साथ ही अपेक्षा की गई है कि जिनमें साधनात्मक साहस हो वे अतिरिक्त समय निकाल कर और आत्म नियन्त्रण करके इस विशेष साधना का लाभ उठायें। इनका सम्पुट लग जाने से सामान्य साधना में वैसी ही सफलता मिलेगी, जैसे उपयुक्त समय पर वर्षा हो जाने से अच्छी फसल होने में विशेष सहायता मिलती है।

इस वर्ष हर निष्ठावान साधक को अपनी छोटी साधक मण्डली बनानी चाहिए और उसी प्रकार का प्रयोग आरम्भ करना चाहिए जैसे कि हम लोग किसी विशेष शक्ति के प्रतिनिधि बनकर प्रशिक्षण एवं अनुदान के माध्यम बनते हैं। शांति−कुंज के छोटे रूप में हजारों लाखों स्थान पर छोटी−छोटी सब श्रृंखलाएँ चलाने लगें तो ही यह समझा जा सकेगा कि इस वट−वृक्ष ने अपनी शाखा−प्रशाखाएँ बढ़ानी आरम्भ कर दीं और वह अक्षय वट की चिरस्थायी भूमिका निभा सकेगा।

शान्ति−कुँज के साधनासत्र हम लोगों की अनुपस्थिति में किस प्रकार चलेंगे कह नहीं सकते, पर जब तक उपस्थिति है तब तक यहाँ आकर कई तरह के प्राण अनुदान पाने की इच्छा हर परिजन की बनी ही रहनी चाहिए। जो आ सकें वे साधना सत्र अथवा वानप्रस्थ सत्रों में सम्मिलित होने का प्रयत्न करें। अपने घरों की महिलाओं और कन्याओं को भी इस शिक्षा से लाभान्वित होने दिया जाय। इसी की चर्चा अन्तिम दो लेखों में है। इस समूचे प्रशिक्षण को पूरे ध्यान और मननपूर्वक पढ़ा, समझा जायगा और प्रस्तुत प्रेरणाओं को अपनाया जायगा ऐसी अपेक्षा की गई है।

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आत्म ज्ञान सर्ग-


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