शांति−कुंज के शिक्षण सत्रों की नई व्यवस्था

February 1976

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शांति−कुंज में चल रही सत्र शृंखला में इस वर्ष थोड़ा हेर−फेर करना पड़ा है। बसन्त पर्व से अपना नया वर्ष प्रारम्भ होता है और उस अवसर पर एक वर्ष की कार्य पद्धति निर्धारित होती है। यह अपनी पचास वर्षों की परम्परा है। बहुत लम्बे समय तक चलने वाली योजनाएँ भी बनी हैं, पर उनका सामयिक कार्यक्रम सदा एक वर्ष का ही बना है। सरकारी बजट अधिवेशन की तरह हमारी कार्य प्रक्रिया भी एक वर्ष के लिए ही बनती है। अगले वर्ष की परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं को देखते हुए जैसा कुछ हेर−फेर अभीष्ट होता है उसे उस तरह ठीक कर लिया जाता है।

शांति−कुंज की सत्र शृंखला में स्वर्ण जयन्ती साधना वर्ष की विशेष एवं व्यापक प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए यहाँ की शिक्षण प्रक्रिया में कमी करना आवश्यक हो गया और करना भी पड़ा है।

पिछले दो वर्षों से प्राण प्रत्यावर्तन सत्र−जीवन साधना सत्र और योगतप साधना सत्र लगातार चले हैं और इनमें दस हजार से अधिक संख्या में लोगों ने आकर प्रशिक्षण प्राप्त किया है। अब 76 बसन्त पर्व से आरम्भ हो कर 77 के बसन्त पर्व तक चलने वाले अपने अध्यात्म वर्ष में यह व्यवस्था सिकोड़ दी गई है। इस वर्ष दस−दस दिवसीय मात्र पाँच सत्र होंगे। इनमें आने वालों को, जीवन साधना और गायत्री उपासना का समन्वय रहेगा। शिक्षार्थियों को एक 24 हजार गायत्री पुरश्चरण इसी पुनीत भूमि में रहकर करना होगा। सोऽहम् साधना, खेचरी मुद्रा, जप, ध्यान, आत्मशोधन, देव सान्निध्य की सभी साधनाएँ साथ−साथ चलेंगी। इन प्रयोजनों को ठीक तरह पूरा कर सकने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन एवं सहयोग सभी शिक्षार्थियों को मिलेगा। पूरे दस−दस दिन के यह सत्र होंगे। इतने समय यहाँ रहना होगा अस्तु रास्ते के आने−जाने का समय ध्यान में रखते हुए ही आगन्तुकों को अवकाश लेना चाहिए। संक्षेप में इन्हें साधना सत्र कहा जा सकता है। उनमें पिछले प्राण प्रत्यावर्तन−जीवन साधना और योगतप के शिक्षण का सार तत्व और स्वर्ण जयन्ती वर्ष का विशेष अनुदान सम्मिलित है साधना में क्रिया−कृत्य से भी अधिक प्रभावी स्थान वातावरण एवं सान्निध्य का पड़ता है। यह विशेष उपलब्धियाँ शांति−कुंज में रह कर उपासना करने वालों को कितनी अधिक मात्रा में मिली हैं, इन्हें अनुभव के आधार पर ही जाना जा सकता है। इस वर्ष केवल पाँच साधना सत्र होंगे। प्रथम सत्र 1 फरवरी से 10 फरवरी तक का बसन्त पर्व के अवसर पर होगा जो यह अंक पहुँचने से पूर्व ही सम्पन्न हो चुका होगा। अब जिनमें सम्मिलित हुआ जा सकता है, वे केवल चार ही शेष हैं।

(1) 1 अप्रैल से 10 अप्रैल तक चैत्र की नवरात्रि की साधना। इसके मध्य में रामनवमी का पर्व भी आता है।

(2) 30 मई से 8 जून तक गायत्री जयन्ती के अवसर पर।

(3) 24 सितम्बर से 3 अक्टूबर तक आश्विन नवरात्रि के अवसर पर−इसमें विजया दशमी भी आ जाती है।

(4) 24 नवम्बर से 3 दिसम्बर तक गीता जयन्ती के अवसर पर।

(5) 77 के बसन्त पर्व पर होगा। इसकी रूपरेखा अभी निर्धारित नहीं की गई है। उसकी सूचना समयानुसार दी जायगी। इसलिए उसके लिए अभी आवेदन पत्र नहीं लिए जायेंगे।

इस वर्ष 90 प्रतिशत कटौती कर दी गई है केवल 10 प्रतिशत को ही सम्मिलित किया जाना है अस्तु समय से पूर्व स्थान सुनिश्चित करा लेने वाले ही इस अनुदान अवसर का लाभ उठा सकेंगे।

इस वर्ष फरवरी, मार्च, अप्रैल में कितने ही लोगों को सत्रों में सम्मिलित होने की स्वीकृति दी जा चुकी है। अब उसे निरस्त समझा जाय और यह माना जाय कि अब फिलहाल चैत्र नवरात्रि का और दूसरा गायत्री जयन्ती दो सत्र ही अगले छह महीनों में होने हैं। जिन्हें फरवरी, मार्च, अप्रैल में आने की स्वीकृति मिली है−वे फिर से अपना कार्यक्रम ठीक कर लें। या तो चैत्री नवरात्रि में या गायत्री जयन्ती पर आने की योजना बनायें और परिवर्तित विचार की सूचना देकर फिर से नई स्वीकृति प्राप्त करलें।

इस कटौती में वानप्रस्थ सत्रों का समय भी घटा दिया गया है। इस वर्ष डेढ़−डेढ़ दो−दो महीने के रामायण भागवत् सत्र नहीं होंगे वरन् उन्हें एक−एक महीने का ही कर दिया गया है। वह सत्र इस वर्ष केवल दो ही होंगे (1) 1 मई से 30 मई तक (2) 5 दिसम्बर से 4 जनवरी तक। इसी अवधि में रामायण भागवत के माध्यम से रामचरित्र, कृष्ण चरित्र द्वारा नव निर्माण की पूरी प्रक्रिया तथा धर्म से लोक शिक्षण की समग्र प्रक्रिया संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त गहराई के स्तर तक समझा दी जायगी।

तीन−तीन महीने के चलने वाले महिला सत्रों में भी कटौती की गई है और वह इस वर्ष केवल एक ही होगा−जुलाई, अगस्त, सितम्बर में। जिन महिलाओं को किसी अन्य सत्र में आने की स्वीकृति मिली थी अथवा जो पहले स्वीकृति प्राप्त करके भी कारणवश आ नहीं सकी थीं। वे अब इस 1 जुलाई से आरम्भ होने वाले तीन महीने के सत्र में सम्मिलित हो सकती हैं। जो न आ सकेंगी उन्हें एक वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। आठवीं कक्षा जितनी योग्यता का होना इस सत्र के लिए आवेदन कर्त्तियों के लिए आवश्यक है।

कन्या शिक्षण एक वर्ष का यथावत् चलेगा। गतवर्ष की अपेक्षा इस वर्ष स्थान बढ़ा दिये गये हैं। नई इमारत बन जाने से अब कन्याएं 70 के स्थान पर 100 ली जा सकेंगी। शिल्प विभाग में इस वर्ष कितनी ही नई मशीनें मंगा कर नई शिल्प कक्षाएँ आरम्भ कर दी गई हैं। वस्त्र उद्योग इसमें विशेष है। कम परिश्रम में अधिक काम कर सकने वाली मशीनों की सहायता से यह घरेलू उद्योग हर जगह चल सकता है और अधिक व्यापक एवं अधिक लाभदायक हो सकता है। कपड़ों की सिलाई भी ऐसा ही गृह−उद्योग है जिसकी हर जगह आवश्यकता पड़ती है।

मशीनों की सहायता से एक दिन में दो तीन स्वेटर बुन लेने पर हर स्वेटर की बुनाई तीन चार रुपया मिल जाने से भी दस−बारह रुपया रोज कमाये जा सकते हैं। कढ़ाई की मशीनें कलात्मक सुसज्जा के साथ−साथ आजीविका का साधन भी बनती हैं। मोजे बुनने की मशीन- बालों में बाँधने के रिबिन फीते−कमर बन्द नाड़े, दरी, आसन आदि बुनने के उद्योग भी कम महत्व के नहीं है। फाउन्टेन पेन बनाने का उद्योग भी कम उपयोगी नहीं है। बिस्किट, डबलरोटी के अतिरिक्त अब लेमचूस, टॉफी बनाना भी सिखाया जाने लगा है। प्रेस उद्योग ने अपनी गति पकड़ ली है। उसे सीख कर सात आठ हजार की पूँजी से कहीं भी एक स्वतन्त्र प्रेस खड़ा किया जा सकता है और उस कुटीर उद्योग में अपने ही घर के पाँच छह व्यक्ति लग सकते हैं और सब को घर पर रह कर ही अच्छे उपार्जन का सम्मानपूर्ण आधार मिल सकता है। लड़कियों को दहेज देने की अपेक्षा यदि एक छोटा प्रेस दे दिया जाय तो तो वे किसी गरीब और कम शिक्षित लड़के के साथ निर्वाह करने पर भी शिक्षित वर पाने की अपेक्षा कहीं अधिक सुखी सम्मानित रह सकती हैं।

रबड़ की मुहरें बनाने का स्वतन्त्र उद्योग प्रेस से मिलता जुलता ही है। यह पांच छह सौ रुपये की लागत से भी आरम्भ हो सकता है और अच्छी आजीविका दे सकता है। तरह−तरह के खिलौने बनाने का उद्योग भी सब जगह चलने वाला, मनोरंजक एवं उपयोगी गृह−उद्योग है। यह सब भी एक वर्ष की शिक्षण प्रक्रिया में ही सम्मिलित है। साबुन बनाना, मोमबत्ती, सुगन्धित तेल, शरबत, तरह−तरह की स्याहियाँ आदि का रसायन विभाग भी अब गत वर्ष की अपेक्षा अधिक समृद्ध हुआ है।

यों एक वर्ष की कन्या शिक्षा का मूल उद्देश्य उन्हें सुगृहिणी और कुशल समाज−सेविका बनाना है और उसी को ध्यान में रखकर सारा ढाँचा खड़ा किया है, पर साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक शिक्षार्थी लड़की आजीविका उपार्जन की दृष्टि से अपने में स्वावलम्बन की परिपूर्ण योग्यता भी अनुभव कर सके और आवश्यकता पड़ने पर अपना ही नहीं अपने पूरे परिवार का निर्वाह उत्तरदायित्व भी अपने कन्धे पर ले सके। यह विभाग इसलिए भी आवश्यक था कि अगले दिनों हर महिला जागरण शाखा को अपने यहाँ प्रौढ़ महिला विद्यालय आरंभ करने हैं। इनमें साक्षरता, साहित्य की ही नहीं वरन्, गृह−उद्योग और संगीत की कक्षाएं भी अनिवार्य रूप से चलेंगी। सामान्य शिक्षाएँ तो हर जगह मिल जाती हैं, पर संगीत और गृह−उद्योग पढ़ाने के लिए अनुभवी अध्यापिकाओं का मिलना कठिन हो जाता है। यहाँ की प्रशिक्षित कन्याएँ अध्यापन की इस तीन दिशा वाली आवश्यकता को भली प्रकार पूरी कर सकती हैं। भाषण कला में प्रायः सभी लड़कियाँ प्रवीण हो जाती हैं वे महिला संगठन के आयोजन में तथा अन्य अवसरों पर धड़ल्ले के साथ अपने विचार व्यक्त कर सकती हैं। वक्तृत्व कला की शिक्षा दूसरों को देना भी उनके लिए कुछ कठिन नहीं पड़ता।

कोई महिला जागरण शाखा अपना प्रेस खड़ा करके कई शाखा सदस्याओं को आजीविका दे सकती है और उसकी आमदनी से रचनात्मक कार्यों में होने वाला खर्च भी जुटा सकती हैं। इस प्रकार शाखाएँ आर्थिक दृष्टि से अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। पूँजी जुटाया जाना उतना कठिन नहीं होता, जितना अनुभवी संचालिका मिलना। शांति−कुंज में एक वर्ष शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि उनने जो कुछ यहाँ सीखा है उसके आधार पर ये किसी भी परिस्थिति में रहकर सुयोग्य गृह−लक्ष्मी सिद्ध हो सकती हैं और महिला जागरण अभियान में बढ़−चढ़कर योगदान दे सकती हैं। यहाँ की सामान्य शिक्षा में इन सभी तथ्यों का समावेश है जिसके व्यक्तित्व का सर्वतोमुखी विकास होता है और लोक−व्यवहार में प्रवीणता की दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। आशा की जा सकती है कि यहाँ की प्रशिक्षित लड़कियाँ आवश्यकता पड़ने पर लोक नेतृत्व कर सकने में भली प्रकार सफल हो सकती हैं।

उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा कर सकने वाली शिक्षा का अब तक कहीं भी प्रयत्न नहीं हुआ है। इसलिए इस कन्या−शिक्षण प्रक्रिया को अनोखी, अभूतपूर्ण और असाधारण कहा जाय तो कुछ भी अत्युक्ति न होगी। इसे प्राप्त करने की इच्छुक कन्याओं की आयु, शिक्षा और प्रतिभा जितनी अच्छी ऊँची होगी, उतना ही इस प्रशिक्षण पर किया गया श्रम सार्थक हो सकेगा। यों न्यूनतम 15 वर्ष और न्यूनतम शिक्षा आठवीं कक्षा रखी गई है, पर इससे अधिक आयु और शिक्षा की छात्राओं को भी प्रवेश में प्राथमिकता दी जायगी। कम पढ़ी, कम आयु की, रुग्ण, मन्द बुद्धि लड़कियों को आशीर्वाद दिलाने के लिए यहाँ ठेल जाने का प्रयास किन्हीं को भी नहीं करना चाहिए। प्रतिभाशाली लड़कियाँ भेजने से ही प्रशिक्षण व्यवस्था की सार्थकता सिद्ध हो सकती है। इसलिए आवेदन−पत्र भेजने से पूर्व भेजने वालों को छात्राओं के स्तर पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और यदि वे हर दृष्टि से उपयुक्त जँचें तो ही भेजना चाहिए। शिक्षा का, निवास, बिजली फर्नीचर, शिक्षा उपकरण आदि का सारा खर्च शांति−कुंज उठाता है। भोजन का न्यूनतम खर्च ही अभिभावकों को देना पड़ता है। दो बार रोटी−दाल, चावल, साग और दो बार चाय का खर्च मात्र 65 मासिक है जो निश्चित रूप से असली लागत से कम से कम पाँच रुपया कम ही है।

एक वर्षीय कन्या शिक्षण सत्र इस वर्ष भी 1 जुलाई से आरम्भ होकर मई के अन्त तक 11 महीने चलेगा। तीन महीने महिला सत्र भी 1 जुलाई से ही आरम्भ होंगे। महिलाओं के लिए भी कम से कम आठवीं कक्षा तक पढ़ी होना आवश्यक है। स्वल्प शिक्षित, रुग्ण, मन्द बुद्धि एवं आलसी अनुशासन न मानने वाली महिलाएँ प्रशिक्षण में नहीं भेजी जानी चाहिए। महिलाओं और कन्याओं के आवेदन−पत्र भी अप्रैल के अन्त तक ही भेज कर स्वीकृतियाँ प्राप्त कर लेनी चाहिए। देर से चेतने वालों को गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी सीमित स्थान पूरे हो जाने पर निराश ही होना पड़ सकता है।

महिला सत्र, कन्या प्रशिक्षण, साधना सत्र एवं वानप्रस्थ शिक्षा के चारों ही स्तर के शिक्षार्थी यदि अगले दो तीन महीने के भीतर ही अपने स्थान सुनिश्चित करा लें तो आगे की खटखट से शांति−कुंज में भी सुविधा रहेगी और शिक्षार्थियों को भी स्थान सुरक्षित करा लेने पर निश्चिन्तता अनुभव होगी। अस्तु जिन्हें भी अगले वर्ष किसी प्रशिक्षण में सम्मिलित होना हो उनके लिए समय रहते आवेदन कर देने और स्वीकृति प्राप्त कर लेने में ही सुविधा है।

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