यथा ह्येकेन चक्रेण न स्थस्य गतिभवेत। एवं पुरुषकारेण विनादैवं न सिद्धयति॥
−याज्ञ स्मृति 351
सिद्धान्त की बात है कि जिस प्रकार एक पहिये की गाड़ी नहीं चलती उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना केवल दैव के सहारे कर्मफल नहीं मिलता। अर्थात् दैव और पुरुषार्थ के सहारे कर्म फल बनता है।
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