भवंति नम्रस्तरवः फलोद्गमै। र्नवाम्बुभिर्भूरि विलन्विनो घनाः॥ अनुद्धताः सत्तुपुरुषाः समृद्धिभिः। स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्॥70
जिस प्रकार फल होने पर वृक्ष नम्र हो जाते हैं नवीन जल भरने से मेघ झुक जाता है, वैसे ही सत्पुरुष लोग भी सम्पत्ति पाकर उद्धत नहीं होते बल्कि अधिक नम्र हो जाते हैं। साराँश यह कि परोपकारी जीवों का यह स्वभाव ही होता है।
पोदनार्थस्य पारत्र्यं कुर्यात्संचय मात्वान्। अर्धनचात्म भरणं नित्य नैमित्तिकान्वितम् ॥11
पादंचात्मार्थ मायस्य मूलभूतं विवद्धयेत्। एवमाचरतः पुत्र अर्थः साफल्यभृच्छति ॥12
−मार्कण्डेय पुराण
अपनी कमाई को खर्च करने के लिए उसके चार भाग करें। एक चौथाई धर्म कार्यों के लिए रखें। आधे में परिवार का गुजारा करें। एक चौथाई को व्यवसाय की वृद्धि में लगायें।
----***----
सद् ज्ञान सर्ग-