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September 1975

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हम प्रवचन सुनते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं और मन्दिर देवालयों में नमन करते हैं लेकिन अपने भीतर भरे हुए और बाहर बिखरे हुए परमात्मा के अनन्त सौर्न्दय को देखने से आँखें ही बन्द किये रहते हैं।

हमारा विवेक जगे तो देखें कि इस वसुधा के कण कण में कितना सौर्न्दय बिखरा पड़ा है और हर दिशा में कितनी मर्मस्पर्शी संगीत अनहद नाद गुँजित हो रहा है। ईश्वर आँखों से नहीं देखा जाता, वह कान से नहीं सुना जाता उसे केवल अन्तरात्मा ही भावभरी संवेदनाओं के रुप में अनुभव कर सकती है।

-स्वामी रामतीर्थ


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