तूफान और बवंडर उत्पन्न करने वाली उथल-पुथल

September 1975

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पृथ्वी के इर्द-गिर्द सामान्यतया शान्त वातावरण है, पर जब कभी वायु मण्डलीय उथल-पुथल के छोटे-छोटे कारण बन जाते है तो उसका प्रतिफल भयंकर आँधी-तूफानों और बवंडरों के रुप में सामने आता है। कहना न होगा कि इन विद्रूप विद्रोहों के कारण असंख्यों को असंख्य प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं। साथ ही उस उथल-पुथल के कारण नये प्रकार के अवसर उत्पन्न होते रहते हैं।

प्रशाँत महासागर में टाइफून और अटलाँटिक महासागर में हरिकेन एवं टेरनेडो तूफान आते हैं। उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को ट्रापिकल साइक्लोन कहा जाता है।

पृथ्वी की गति के कारण उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की हवाए परस्पर विरोधी दिशाओं में घूमती हैं। सूर्य की तेजी से हवाएँ ऊपर उठती हैं फलस्वरुप अगल-बगल की हवाएँ नीचे की खाली जगह को भरने के लिए दौड़ती हैं। उसी उथल-पुथल में हवा के कितने ही चक्रवात बन जाते हैं और वे जिधर से निकलते हैं उधर ही अपनी प्रचण्ड शक्ति का परिचय देते हैं। वे अक्सर 100-150 मील प्रति घण्टे की चाल से चलते हैं, पर कभी-कभी 200 मील की भी उनकी गति देखी जाती है। इनकी परिधि 25 से 600 मील तक की पाई जाती है। कभी-कभी यह तूफान अपने साथ समुद्र की लहरों को 15 फुट ऊँची उठा लेते हैं और समुद्र तट के क्षेत्र पर धावा बोल देते हैं। ‘टेरनेडो’ अपने सजातीयों में सबसे भंयकर होते हैं। वे विस्तार की दृष्टि से तो बहुत बड़े नहीं होते पर अपनी विनाश शक्ति का आर्श्चयजनक परिचय देते हैं। मजबूत पेड़ों को वे तिनके की तरह उखाड़ कर फेंक देते हैं। अमेरिका के इलिनाइज राज्य में एक बार एक तूफान ने एक गिरजाघर का समूचा शिखर उखाड़ लिया था और उसे पन्द्रह मील दूर से जाकर पटका था। अन्य छोटी-बड़ी इमारतों को उखाड़ फेंकने की घटनाएँ तो आयेदिन होती रहती हैं।

भयंकर तूफानों का एक कारण तो उनमें रहने वाली हवा की ही तेजी होती है दूसरी वजह यह है कि चक्रवात के मध्य भाग में वायु भार बहुत हलका रह जाता है। साधारणतया मनुष्य शरीर पर हर घड़ी हवा का 15 टन भार लदा रहता है। पर उस तूफान के मध्य भाग में यह वजन प्रायः आधा रह जाता है। इससे वस्तुएँ के ऊपर उठ जाने या फट जाने की स्थिति पैदा हो जाती है। इस भारहीनता के कारण जो क्षति होती है वह वायु वेग की तुलना में कम नहीं अधिक ही होती है। इस दुहरी मार के कारण ही इन चक्रवातों द्वारा इतना भयंकर विनाश होता है।

अमेरिका के दक्षिणी राज्य और एशिया के जापान, फारमोसा, फिलीपाइन आदि भाग इनके अधिक शिकार होते हैं। हिन्द महासागर में भी इनकी धूम रहती है और बंगाल की खाड़ी में वे अपना रौव दिखाने अक्सर आ धमकते हैं। कभी-कभी वे इतने भयंकर होते हैं कि भूगर्भ को प्रभावित करके ज्वालामुखी फुटने, भूकम्प उत्पन्न करने की घटनाएँ खड़ी कर देते हैं। कितने ही नये द्वीपों का उदय होना और कितने ही टापुओं का समुद्र तल में समाजाना अक्सर तूफानों के साथ-साथ ही घटित होता है। ऐसे तूफान कई बार पृथ्वी के भीतर घंटित होने वाली अन्य घटनाओं के कारण भी उत्पन्न होते देखे गये हैं।

पृथ्वी पर जो महत्व वायुमंडल का है, वही मानवी जगत में विचार प्रवाह का है। अवाँछनीय विचार विप्लव जहाँ समूचे विश्व को पतन और विनाश की नारकीय परिस्थितियों में धकेल सकता है वहाँ प्रखर विचारणा की प्रेरणा से स्वर्गीय वातावरण भी पैदा किया जा सकता है। बौद्धिक उथल-पुथल को सुनियोजित बनाया जा सके तो यह तूफानी शक्ति विनाश के स्थान पर विकास का आधार भी बन सकती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118