यदि पशु पक्षियों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान दिया जाय तो वे भी मनुष्यों की तरह बुद्धिमान हो सकते हैं। मनुष्य भी आदिम काल में अन्य प्राणियों की तरह ही अनगढ़ था। सहयोग की वृत्ति अधिक रहने से एक ने दूसरे की सहायता की और संचित अनुभव का लाभ अपने साथियों को मिल सके इसका प्रयत्न किया। एक का अनुदान दूसरे को मिलने की पुण्य प्रक्रिया ने मनुष्य को पीढ़ी दर पीढ़ी अधिक बुद्धिमान और अधिक क्रिया कुशल बनाया है। यदि यही आधार अन्य प्राणियों को मिल सकें तो वे भी अब की अपेक्षा कहीं अधिक बुद्धिमान हो सकते हैं। उनमें भी वे सब तत्व मौजूद हैं जो मनुष्य की तरह बुद्धिमान बन सकने का द्वार खोल सकते हैं। मनुष्य चाहे तो इस दिशा में अन्य प्राणियों की बहुत सहायता कर सकता है। अविकसित मस्तिष्क के बालकों को कुशल अध्यापक लिखा पढ़ा कर बुद्धिमान बना देता है तो कोई कारण नहीं कि अन्य प्राणियों को प्रशिक्षित बनाने के लिए किये गये प्रयत्नों को सफलता न मिले।
इस संदर्भ में अमेरिका में मिसिसिपी राज्य के अर्न्तगत पोपरबिल नामक कस्बे के निवासी केलर ब्रिलेण्ड नामक एक अधेड़ सज्जन विशेष रुप से प्रयत्न कर रहे हैं यों वे मनोविज्ञान शास्त्र के स्नातक है, पर उनने अपना प्रमुख कार्य तरह-तरह के प्राणियों को उनके वर्तमान स्तर से आगे की शिक्षा देकर अधिक बुद्धिमत्ता का परिचय दे सकने योग्य बनाने का अपनाया है। पशु मनोविज्ञान शास्त्र में उनके प्रयत्नों ने नई कड़ियाँ सम्मिलित की हैं।
ब्रिलैण्ड की पत्नी मेरियन भी इस प्राणि प्रशिक्षण कार्य में पूरी सहायता कर रही है। इन दिनों उनने लगभग 40 किस्म के जीवों को अपने स्कूल में भर्ती किया हुआ है। जिनमें मछली, चूहे, कुत्ते, बिल्ली, मुर्गे, तोते आदि सभी किस्म के प्राणी सम्मिलित हैं। अब तक उनके स्कूल से लगभग एक हजार प्राणी आर्श्चयजनक कार्य कर सकने और आकर्षण केन्द्र बन सकने योग्य विशेषताएँ प्राप्त करके विदा हो चुके हैं। प्रशिक्षित जीवों को खरीदने वाले शैकीनों की कमी नहीं रहती, वे अपने मन पसन्द के प्राणी अच्छा मूल्य देकर खरीद ले जाते हैं और मनोरंजन का आनन्द लेते हैं। शिक्षकों को भी इस धंधे से अच्छी आजीविका प्राप्त होती रहती है।
इस विद्यालय की एक कक्षा की मुर्गियाँ आज्ञा देने पर जूक वाक्स का स्विच दवाकर फिल्मी रिकार्ड चालू कर देती हैं और उनकी ध्वनि पर ताल बद्ध नृथ्य करती हैं।
मुर्गे टीम बनाकर खिलाड़ियों की तरह अपने-अपने मोर्चे पर आमने सामने खड़े होते हैं और उस क्षेत्र में प्रचलित ‘बैसबाल’ खेल, सही कायदे, कानून के अनुसार खेलते हैं। उनमें से न कोई बेईमानी चालाकी करता है और न आलस्य न लापरवाही। जो पार्टी हार जाती है वह बिना अपमान अनुभव किये पर फैला कर रेत में बैठ जाती है।
रेनडियर प्रेस की मशीन चलाते हैं। कुत्ते बास्केट बाल खेलते हैं। बतखें स्वसंचालित ढोल बजाने की मशीन को चलाती है, दर्शक उस बाजे का आनंद लेते हैं।
खरगोश पियानो बजाते और दस फुट दूरी तक ठोकर मारकर गेंद फेंकते हैं। बकरियाँ कुत्ते के बच्चों को पालती और अपना दूध पिलाती है।
यह सारी शिक्षा विलैंड ने पुरस्कार का प्रलोभन देकर पूरी कराने की तरकीब निकाली है। वे इन प्राणियों को आरम्भ में एक कार्य सिखाते हैं। पीछे जब वे मालिक की मर्जी समझने और निवाहने का संकेत समझ लेते हैं तो प्रत्येक सफलता पर स्वादिष्ट भोजन देने का उपहार दिया जाने लगता है। उन्हें सामान्य रीति से भोजन नहीं मिलता। उपहार पर ही उन्हें निर्वाह करना पड़ता है। लोभ से, आवश्यकता से अथवा विवशता से प्रेरित होकर अन्य लोक वासियों की धरती पर हम चले अन्य लोकों से आने वाले अन्तरिक्षीय यान जिन्हें हम आमतौर से ‘उड़न तश्तरी’ कहते हैं। हमारे मानव रहित शोध राकेटों की तरह नहीं होते, वरन् उनमें जीवित प्राणी रहते हैं इस बात के भी प्रमाण मिले हैं। यह प्राणी अपनी पृथ्वी की परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं और आवश्यक सूचनायें अपने लोकों को भेजते हैं। इतना ही नहीं वे यहाँ के मनुष्यों से भी सर्म्पक स्थापित करते हैं, ताकि उनकी जानकारियों का आधार अधिक विस्तृत एवं प्रामाणिक बन सके।
उड़न तश्तरी अनुसंधान संस्था ‘निकैप’ ने ऐसी अनेक घटनाओं का विवरण प्रकाशित कराया है। जिनसे अन्य लोकों के प्रबुद्ध व्यक्तियों का अपनी धरती पर आना सिद्ध होता है। मई 1967 में कालरैडो हवाई अड्डे के रेडार से उड़न तश्तरी के आगमन की जो सूचना प्राप्त हुई थी उसे झुठलाना उनसे भी नहीं बन पड़ा जो उड़न तश्तरी मान्यता का उपहास उड़ाते थे। अमेरिकी सरकार ने इस संदर्भ में एक अनुसंधान समिति की स्थापना की थी। उसके एक सदस्य जेम्समेकओनल्ड ने दल की रिपोर्ट से प्रयाग अपनी पुस्तक लिखी है-”उड़न तश्तरियाँ-हाँ,’ इसमें उन्होंने इन यानों की संभावना का समर्थन किया है।
डा. एस. मिलर और डा. विलीले का कथन है इस विशाल ब्रह्माण्ड में एक लाख से अधिक ऐसे ग्रह पिण्ड हो सकते हैं। जिनमें प्राणियों का अस्तित्व हो। इनमें से सैकड़ों ऐसे भी होंगे जिनमें हम मनुष्यों से अधिक विकसित स्तर के प्राणी रहते हों। हम पृथ्वी निवासियों के लिए आक्सीजन और नाइट्रोजन गैसे आवश्यक हो सकती हैं, पर अन्य लोकों के प्राणी ऐसे पदार्थ से बने हो सकते हैं जिनके लिए इन गैसों की तनिक भी आवश्यकता न हो। इसी प्रकार जितना शीत-ताप हमारे शरीर सह सकते हैं उसकी तुलना में हजारों गुने शीत, ताप में जीवित बने रहने वाले प्राणियों का अस्तित्व होना भी पूर्णतया संभव है। हम अन्न, जल और वायु के जिस आहार पर जीवन धारण करते हैं अन्य लोकों के निवासी अपनी स्थानीय उपलब्धियों से भी निर्वाह प्राप्त कर सकते हैं।
डा. ले के कथनानुसार अन्तरिक्ष में 1000 अरब तारे हैं, उनमें से 1 करोड़ में जीवित प्राणियों के रह सकने योगय अवश्य होंगे।
अन्तरिक्ष विज्ञानी डा. फानवन का कथन है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में ऐसे प्राणियों का अस्तित्व निश्चित रुप से विद्यमान है जो हम मनुष्यों की तुलना में कहीं अधिक समुन्नत हैं।
कैली फोर्नियाँ के रेडियो एस्ट्रानामी इन्स्टीट्यूट के डायरेक्टर डा. रोनाल्ड एन. ब्रेस्वेल ने ऐसे आधार प्रस्तुत किये हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि अन्य ग्रह तारकों में समुन्नत सभ्यता वाले प्राणी निवास करते हैं और वे अपनी पृथ्वी के साथ सर्म्पक स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हैं। वे इस प्रयोजन के लिए लगातार संचार उपग्रह भेज रहे हैं। ये उपग्रह कैसे हैं इसका विशेष विवरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा है, वे फुटबाल की गेंद जितने होते हैं। उनमें कितने रेडियो यंत्र और कम्प्यूटर लगे रहते हैं उनमें सचेतन जीव सत्ता भी उपस्थित रहती है जो बुद्धि पूर्वक देखती सोचती और निर्णय लेती है। इन उपग्रहों द्वारा पृथ्वी निवासियों के लिए कुछ विशेष रेडियो संदेश भी प्रेरित किये जाते हैं जिन्हें सुन तो सकते हैं पर समझ नहीं पाते।
अन्य ग्रहों पर निवास करने वाले प्राणी आवश्यक नहीं कि मनुष्य जैसी आकृति प्रकृति के ही हों, वे वनस्पति कृमि-कीटक, झाग, धुँआ जैसे भी हो सकते हैं और महादैत्यों जैसे विशालकाय भी। जिस प्रकार की इन्द्रियाँ हमारे पास हैं उनसे सर्वथा भिन्न प्रकार के ज्ञान तथा कर्म साधन उनके पास हो सकते हैं।
उड़न तश्तरियों के क्रिया-कलाप में मनुष्य जाति को अधिक दिलचस्पी लेना शायद उनके संचालकों को पसंद नहीं आया है अथवा वे प्राणी एवं वाहन ऐसी विलक्षण शक्ति से सम्पन्न हैं जिसके सर्म्पक में आने पर मनुष्य की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है।
24 जून 1967 को न्यूयार्क में उड़न तश्तरी शोध सम्मेलन चल रहा था। उसी समय सूचना मिली इस रहस्य की अनेकों जानकारियों संग्रह करने वाले फ्रेंक एडवर्ड का अचानक हृदय गति रुक जाने से र्स्वगवास हो गया। यह मृत्यु ठीक उसी तारीख को हुई जिससे कि उनने यह शोध कार्य हाथ में लिया था। 24 जून ऐसा अभागा दिन है जिसमें इस शोध कार्य में संलगन बहुत से वैज्ञानिक एक-एक करते मरते चले गये हैं। अकेले फ्रेक एडवर्ड ही नहीं, क्वीनथ अरनोल्ड, आर्थर ब्रायेट, रिचर्ड चर्च, फ्रेक सकली, विले ली आदि सब इसी तारीख को मरे हैं। दस वर्षों में 137 उड़न तश्तरी विज्ञानियों का मरना अत्यंत आर्श्चयजनक है। इस अनुपात से तो कभी किसी विज्ञान क्षेत्र के शोध कर्ताओं की मृत्यु दर नहीं पहुँची। जार्ज आदमस्की ने केलीफोर्निया के दक्षिण पार्श्व में एक उड़न तश्तरी आँखों देखी थी। दर्शकों में एक प्रत्यक्ष दर्शी जार्ज हैट विलियम सन भी था। वे घटना का विस्तृत विवरण प्रकाशित कराने में संलगन थे। इतने में आदमस्की की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई और हैट न जाने कहाँ गुम हो गया फिर कभी किसी ने उसका अता पता नहीं पाया। ट्रमेन वैथाम अपनी आँखों देखी गवाही छपाने की तैयारी ही कर रहा था कि अपने विस्तार पर ही अचानक लुढ़क कर मर गया। ऐसी ही दुर्गति, बर्नी हिल नामक एक गवाह की हुई।
डा. रेमेण्ड बर्नाड के उड़न तश्तरिश्यों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। अचानक एक दिन उनकी मृत्यु घोषणा कर दी गई। पर कोई नहीं जानता था कि वे कब मरे, कहाँ मरे, कैसे मरे? सन्देह है कि वे अभी भी जीवित हैं पर कोई नहीं जानता कि वे कहाँ है? इसी विषय पर एक अन्य पुस्तक प्रकाशित करने वाले डा. मौरिस केजेसप ने खुद ही आत्म हत्या कर ली। अपने मौजों से गला घोट कर आत्म हत्या करने वाली ‘डोली’ और अनशन करके प्राण छोड़ने वाली ‘गलोरा’ के बारे में कहा जाता है कि एक उड़न तश्तरी के चालकों से भेंट के उपरान्त उन्हें ऐसा ही निर्देश मिला था जिसे वे टाल नहीं सकीं। केप्टन एडवर्ड रुपेल्ट और विलवर्ट स्मिथ अपने मौत के स्वयं ही उत्तरदायी थे। राष्ट्र संघ के प्रमुख डाग हेयर शोल्ड का वायु यान 19 सितम्बर 1961 को जलकर नष्ट हुआ था और वे उसी में मरे थे। दुर्घटना के प्रत्यक्ष दर्शी टिमोथी मानास्का के शपथ पूर्वक कहा था कि उसने उस यान पर एक चमकदार तश्तरी झपट्टा मारती देखी थी। ये सभी लोग वे थे जिन्होंने उड़न तश्तरियों का पता लगाने के संबंध में गहरी दिलचस्पी ली थी।
कुछ को चेतावनी देकर भी छोड़ दिया गया है। ग्रे वारकर इस विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे थे कि उनके दरवाजे पर एक सवेरे प्रातःकाल पर्चा चिपका मिला, “उड़न तश्तरियों के बारे में चुप रहो नहीं तो वे मौत मारे जाओगे।” इस विज्ञानी रावर्ट एस. ईसले 25 फरवरी 1968 को इस विषय पर भाषण देकर लौट रहे थे कि किसी दिशा से उनकी कार पर दनादन् गोलियाँ बरसने लगीं। घर पहुँचते ही टेलीफोन पर उन्होंने किसी का सन्देश सुना-”आगे से इस विषय पर कुछ मत बोलो नहीं तो दुरस्त कर दिये जाओगे।”
यों उड़ान तश्तरी अभी भी एक रहस्य ही है और उनके संचालकों का क्रिया कलाप और भी अधिक विचित्र है। फिर भी यह विश्वास किया जाता है कि कल नहीं तो परसों उन रहस्यों पर से पर्दा उठेगा और हम ऐसे युग में प्रवेश करेंगे जिसमें क्षुद्र आपापूती की संकीर्णता से ऊपर उठकर हमें विस्तृत अत्यन्त सुविस्तृत को ध्यान में रखकर सोचना पड़ेगा और उसी आधार पर अपनी गतिविधियों का निर्धारण करना पड़ेगा।