अग्निहोत्र में मानसिक रोगों का निवारण

September 1975

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सभी जानते हैं कि आक्सिजन मनुष्यों के लिए और कार्बन गैस पेड़-पौधों के लिए उपयोगी होती है। विज्ञान के आरम्भिक विद्यार्थी भी यह समझते हैं कि आग जलाने से उस क्षेत्र की आक्सिजन खर्च होती हैं और कार्बन बढ़ती है। सामान्य जानकारी के आधार पर अनावश्यक रुप से आग जलाना मानवी श्वास सम्पदा को हानि पहुँचाता है। इस दृष्टि से हवन-यज्ञ का भी विरोध किया जाता है और इस हानिकारक बताया जाता है।

पर यह मोटी दृष्टि भर है। बारीकी से पर्यवेक्षण करने पर नये तथ्य सामने आते हैं। विष साधारणतया मारक गुण वाला होता है। पर उसे विशेष प्रकार से शोधित करके विशेष सम्मिश्रण विधान से तैयार करके देने पर असाध्य रोगों की चिकित्सा होती है और “विषस्य विष मौषधम्” की उक्ति चरितार्थ होती है। अग्निहोत्र के सम्बन्ध में भी यही बात लागू होती है।

साँस के साथ जो वायु भीतर जाती है उसमें प्रायः 20 प्रतिशत आक्सिजन और 0॰ प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड होती है। जब साँस छोड़ी जाती है तो उसमें 3 प्रतिशत कार्बन डाइ-आक्साइड और 16 प्रतिशत आक्सिजन रहती है।

यदि किसी कारण शरीर को आक्सीजन कम मिले-अशुद्ध वायुमण्डल में उसका अंश कम हो-अथवा शरीर की भीतरी स्थिति उसे कम मात्रा में सोख सके तो शारीरिक बीमारियों के अतिरिक्त मानसिक विकृतियाँ भी खड़ी हो जायेंगी। लड़खड़ा कर बोलना, आँत्रशोध, चिड़चिड़ापन, थकावट, भय एवं आशंका समलिंगी मैथुन, अभिलाषा जैसे मनोविकारों और स्नायविक असन्तुलनों से ग्रसित वे लोग देखे गये हैं जिनके शरीर में आक्सीजन की कमी और कार्बन डाइ-आक्साइड की अतिरिक्त मात्रा पाई जाती है। कई बार आक्सिजन की अधिक मात्रा का शरीर द्वारा शोषण किया जाना भी हानिकारक होता है यद्यपि उसके लक्षण भिन्न प्रकार के होते हैं।

वायु सन्तुलन की चिकित्सा पद्धति मानसिक रोगियों के लिए प्रयुक्त की जाती है। डा. लोवनहार्ट ने सन् 1926 से यह प्रयोग आरम्भ किये थे। उन्होंने बैटेट्रेनिक शिजोफेनिया के रोगियों पर-कार्बन डाइ-आक्साइड के उपचार किये और आशाजनक परिणाम प्राप्त किये। इन सफलताओं से प्रभावित होकर सन् 1947 में वान मेन्उुना ने साइकोन्यूरोसिस के मरीजों पर कार्बन डाइ-आक्साइड की मात्रा को उपचार का केन्द्रबिन्दु मानकर अपने प्रयोग किये। इसके सत्यपरिणामों को उन्होंने विस्तार पूर्वक सन् 1950 में निबन्ध रुप में प्रकाशित कराया।

उन्होंने कई रोगियों को कार्बन डाइ-आक्साइड 30 प्रतिशत और आक्सिजन 70 प्रतिशत मिलाकर फेस माक्स उपकरण में भरी और उसमें साँस लेने की व्यवस्था की, रोगी 20-25 बार इस कृत्रिम् वायु में गहरी साँस लेते। एक दिन छोड़कर यह उपचार किया जाता । उस समय तो रोगी को घुटने अनुभव होती और चहरे तमतमा जाते, पर पीछे उन्हें राहत मिलती। ऐसे 25 उपचारों के बाद रोगियों को काफी राहत मिली और उनकी अधिकाँश व्यथाएँ दूर हो गइ।

आक्सिजन की समुचित मात्रा कोशिकाओं को किसी वजह से न मिले तो मस्तिष्कीय विकृतियाँ उत्पन्न होंगी। नवीनतम न्यूरोलाजी शोध तरह-तरह के मनोविकारों का शमन करने के लिए कार्बन डाइ-आक्साइड की विभिन्न मात्राएँ देते हैं और रोग निवारण में सफलता प्राप्त करते हैं। अग्निहोत्र द्वारा उत्पन्न हुई कार्बन डाइ-आक्साइड ठीक इसी प्रकार का उपचार है जो प्रत्यक्ष में हानिकारक देखते हुए भी अनेकों मानसिक रोगों के निवारण में इतना अधिक सहायक होता है जिसे देखते हुए थोड़ी सी आक्सिजन का आग जलने से खर्च हो जाना कोई बड़ी हानि नहीं है।


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