ब्रह्माण्डीय प्राण-चेतना का मिलन अब निकट ही हैं

August 1975

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पृथ्वी से बाहर के ग्रह-नक्षत्रों में जीवन की संभावना पर चिरकाल से विचार होता चला आया हैं। उपलब्ध प्रमाण सामग्री के आधार पर दावे के साथ तो नहीं कहा जा सका, पर आशा यही बँध रही थी कि ‘जीवन’ अकेली पृथ्वी की ही बपौती नहीं हो सकता उसका अस्तित्व अन्यत्र भी हो सकता है और हैं।

इस दिशा में अधिक उत्साहपूर्वक प्रयास आरसिवाँ दक्षिण अमेरिका के प्यूरटोरिकन कस्बे में स्थापित एक वेधशाला के द्वारा प्रारम्भ हुआ हैं। इस वेधशाला एक नाम नेशनल एस्ट्रोनामी एण्ड आयनोस्फियर सेन्टर’ है। इसने 1000 फुट व्यास की रेडियो दूरबीन लगाई गई है और साथ ही शक्तिशाली रेडर ट्रान्समीटर फिट किये गए हैं। यह स्थापना अपने ढंग की अनोखी और अत्यन्त शक्तिशाली हैं।

नई नये दूरवीक्षण संयंत्र के सहारे अब बुध, शुक्र, मंगल और चन्द्रमा के कुछ हिस्सों को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकना सम्भव हो गया हैं। इन दिनों मंगल की खोजबीन इसलिए की जार ही है कि अमेरिका अपना ‘वाइकिंग-ए राकेट सन् 1976 में मंगल को धरती पर उतारने का निश्चय कर चुका है। उसके उतरने का स्थान चुनने के लिए स्थान का चुनाव अभी से करना होगा।

इस संयंत्र द्वारा समस्त ब्रह्मांड के लिए सौरमण्डल का नक्शा, मानव शरीर की रचना और प्रकृतिगत परिस्थितियों की आरम्भिक जानकारी प्रसारित की गई है, ताकि यदि मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी कही रहते हों और उनका ज्ञान इसी सीमा तक विकसित हो गया हो तो वे इन संकेतों को समझकर तदनुकूल उत्तर दें और पृथ्वी से संपर्क बनाने का प्रयत्न में।

कारनेल विश्वविद्यालय की वेधशाला के निर्देशक और प्रस्ताव प्रयोग शास्त्री डा0 कार्ल एडवर्ड स्वाँगग विशेष रूप से प्रयत्नशील है। उन्होंने एक अंतर्गत ही भाषा के रूप में ‘मैसेज वायनरी’ का आविष्कार किया है जिसके सहारे रेडियो विज्ञान के जानकार किसी भी लोक में रहने वाले प्रेषित विचारों को समझ सकेंगे और उसी आधार पर उत्तर दे सकेंगे। यह भाषा चित्र प्रधान है।

हार्बर्ट विश्वविद्यालय के फिलिप मारसिन- शिकागो विश्वविद्यालय के स्टेनले मिलर के सहयोग से ऐसी प्रयोगशाला बनाना सम्भव हो गया है, जिसमें मंगल ग्रह जैसा वातावरण है उसमें ऐसे जीवाणुओं का विकास किया गया जो मंगल जैसी परिस्थितियों में निर्वाह कर सकें।

डा0 साँगा और रूस के अन्तरिक्ष विज्ञानी इबोसेफ शक्लोवस्की ने संयुक्त रूप से इस संदर्भ में एक पुस्तक लिखी हैं- ‘इस्ट्रिटेलिजेन्ट लाइफ इन दि युनिवर्स’ इसमें अन्तर्ग्रही जीवन की सम्भावना उसके स्वरूप एवं पृथ्वी निवासियों के साथ संपर्क के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा गया है। यदाकदा उड़न तश्तरियों जैसे तथ्य सामने आते रहते हैं आर उनसे अंतर्ग्रही संपर्क का आभास मिलता है। ऐसे प्रमाणों की गहरी छानबीन करने में ‘अमेरिका ऐसोसिएशन फॉर दि एडवांसमेंट आप साइंस’ नामक संस्था संलग्न है, उसकी शोधें भी इन सम्भावना को बली देती हैं कि ब्रह्मांड में अन्यत्र भी जीवन है और कितने ही ग्रहों पर पृथ्वी से भी अच्छी स्थिति मौजूद हैं।

यह मान्य तथ्य है कि हम विकसित हो रहे हैं। अभी यह विकास क्रम विज्ञान के आधार पर भौतिक क्षेत्र में बढ़ा हैं और उसने कई प्रकार के सुख साधन प्रस्तुत किए हैं। अगले दिनों अध्यात्म सक्रिय होगा और विचारणा तथा भावना की विभूतियाँ भी उसे उपलब्ध होंगी। ज्ञान और विज्ञान का उभय-पक्षीय विकास हमें अपूर्णता से पूर्णता की ओर अग्रसर करेगा। इस मार्ग पर चलते हुए मनुष्य अपने अन्य सजातियों को इस निखिल ब्रह्माण्ड में कही न कही से खोज ही लेगा। जब ब्रह्मांडीय मानव चेतना एक जुट होकर कुछ अच्छा सोचने और कुछ अच्छा करने में प्रवृत्त होगी तो निश्चय ही यह संसार बहुत सुन्दर सुहावना दृष्टिगोचर होगा।


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