अन्य लोकों से आने वाले अन्तरिक्षीय यान जिन्हें हम आमतौर से ‘उड़ान तश्तरी’ कहते हैं। हमारे मानव रहित शोध राकेटों की तरह नहीं होते, वरन् उनमें जीवित प्राणी रहते हैं इस बात के भी प्रमाण मिले हैं। यह प्राणी अपनी पृथ्वी की परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं और आवश्यक सूचनायें अपने लोकों को भेजते हैं। इतना ही नहीं वे यहाँ के मनुष्यों से भी संपर्क स्थापित करते हैं, ताकि उनकी जानकारियों का आधार अधिक विस्तृत एवं प्रामाणिक बन सके।
उड़न तश्तरी अनुसंधान संस्था ‘निकैप’ ने ऐसी अनेक घटनाओं का विवरण प्रकाशित कराया है। जिनसे अन्य लोकों के प्रबुद्ध व्यक्तियों का अपनी धरती पर आना सिद्ध होता है। मई 1967 में कालरैडो हवाई अड्डे के रेडार से उड़न तश्तरी के आगमन की जो सूचना प्राप्त हुई थी उसे झुठलाना उनसे भी नहीं बन पड़ा जो उड़न तश्तरी मान्यता का उपहास उड़ाते थे। अमेरिकी सरकार ने इस संदर्भ में एक अनुसंधान समिति की स्थापना की थी। उसके एक सदस्य जेम्समेकओनल्ड ने दल की रिपोर्ट से प्रथम अपनी पुस्तक लिखी हैं-’उड़न तश्तरियाँ-हाँ,” इसमें उन्होंने इन यानोँ की संभावना का समर्थन किया हैं।
डा0 एस॰ मिलर और डा0 विलीले का कथन हैं इस विशाल ब्रह्माण्ड में एक लाख से अधिक ऐसे ग्रह पिण्ड हो सकते हैं। जिनमें प्राणियों का अस्तित्व हो। इनमें से सैकड़ों ऐसे भी होंगे जिनमें हम मनुष्यों से अधिक विकसित स्तर के प्राणी रहते हों। हम पृथ्वी निवासियों के लिये ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसें आवश्यक हो सकती हैं, पर अन्य लोकों के प्राणी ऐसे पदार्थों से बने हो सकते हैं जिनके लिये इन गैसों की तनिक भी आवश्यकता न हो। इसी प्रकार जितना शीत-ताप हमारे शरीर सह सकते हैं उसकी तुलना में हजारों गुने शीत, ताप में जीवित बने रहने वाले प्राणियों का अस्तित्व होना भी पूर्णतया संभव है। हम अन्न, जल और वायु के जिस आहार पर जीवन धारण करते हैं अन्य लोकों के निवासी अपनी स्थानीय उपलब्धियों से भी निर्वाह प्राप्त कर सकते हैं।
डा0 ले के कथनानुसार अन्तरिक्ष में 1000 अरब तारे हैं, उनमें से 1 करोड़ में जीवित प्राणियों के रह सकने योग्य अवश्य होंगे।
अन्तरिक्ष विज्ञानी डा0 फानवन का कथन है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में ऐसे प्राणियों का अस्तित्व निश्चित रूप से विद्यमान है जो हम मनुष्यों की तुलना में कहीं अधिक समुन्नत हैं।
कैलीफोर्निया के रेडियो एम्ट्रानामी इन्स्टीट्यूट के डायरेक्टर डा0 रोनाल्ड एन॰ ब्रेस्वेल ने ऐसे आधार प्रस्तुत किये हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि अन्य ग्रह तारकों में समुन्नत सभ्यता वाले प्राणों निवास करते हैं और वे अपनी पृथ्वी के साथ संपर्क स्थापित करने के लिये प्रयत्नशील हैं। वे इस प्रयोजन के लिये लगातार संचार उपग्रह भेज रहे हैं। ये उपग्रह कैसे हैं इसका विशेष विवरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा हैं, वे फुटबाल की गेंद जितने होते हैं। उनमें कितने रेडियो यंत्र और कंप्यूटर लगे रहते हैं उनमें सचेतन जीव सत्ता भी उपस्थित रहती है जो बुद्धि पूर्वक देखती सोचती और निर्णय लेती हैं। इन उपग्रहों द्वारा पृथ्वी निवासियों के लिये कुछ विशेष रेडियो संदेश भी प्रेरित किये जाते हैं जिन्हें सुन तो सकते हैं। पर समझ नहीं पाते।
अन्य ग्रहों पर निवास करने वाले प्राणी आवश्यक नहीं कि मनुष्य जैसी आकृति प्रकृति के ही हों, वे वनस्पति कृमि-कीटक, झाग, धुँआ जैसे भी हो सकते हैं और महादैत्यों जैसे विशालकाय भी। जिस प्रकार की इन्द्रियाँ हमारे पास हैं उनसे सर्वथा भिन्न प्रकार के ज्ञान तथा कर्म साधन उनके पास हो सकते हैं।
उड़न तश्तरियों के क्रिया-कलाप में मनुष्य जाति को अधिक दिलचस्पी लेना शायद उनके संचालकों को पसंद नहीं आया हैं अथवा वे प्राणी एवं वाहन ऐसी विलक्षण शक्ति से संपन्न हैं जिसके संपर्क में आने पर मनुष्य की सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न हो जाता है।
24 जून 1967 को न्यूयार्क में उड़न तश्तरी शोध सम्मेलन चल रहा था। उसी समय सूचना मिली इस रहस्य की अनेकों जानकारियाँ संग्रह करने वाले फ्रेंक एडवर्ड का अचानक हृदय गति रुक जाने से स्वर्गवास हो गया। यह मृत्यु ठीक उसी तारीख को हुई जिससे कि उनने यह शोध कार्य हाथ में लिया था। 24 जून ऐसा अभागा दिन है जिसमें दस शोध कार्य में संलग्न बहुत से वैज्ञानिक एक-एक करते मरते चले गये हैं। अकेले फ्रेक एडवर्ड ही नहीं, क्वीनथ अरनोल्ड, आर्थर ब्रायेट, रिचर्ड चर्च, फ्रेक सवली, विले ली आदि सब इसी तारीख को मरे हैं। दस वर्षों में 137 उड़नतश्तरी विज्ञानियों का मरना अत्यंत आश्चर्यजनक हैं। इस अनुपात से तो कभी किसी विज्ञान क्षेत्र के शोध कर्ताओं को मृत्यु दर नहीं पहुंची। जार्ज आदमस्की ने कैलीफोर्निया के दक्षिण पार्श्व में एक उड़न तश्तरी आँखों देखी थी। दर्शकों में एक प्रत्यक्ष दर्शी जार्ज ट्रैट विलियम भी था। वे घटना का विस्तृत विवरण प्रकाशित कराने में संलग्न थे। इतने में आदमस्की की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई और हैट न जाने कहाँ गुम हो गया फिर कभी किसी ने उसका अता पता नहीं पाया। ट्रमेन क्थाम अपनी आँखों देखी की तैयारी कर रहा था कि अपने बिस्तर पर ही अचानक लुढ़क कर मर गया। ऐसी ही दुर्गति, बर्नी हिल नामक एक गवाह की हुई।
डा0 रेमेण्ड बर्नाड ने उड़न तश्तरियों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। अचानक एक दिन उनकी मृत्यु घोषणा कर दी गई। पर कोई नहीं जानता था कि वे कब मरे, कहाँ मरे, कैसे मरे? संदेह है कि वे अभी भी जीवित है पर कोई नहीं जानता कि वे कहाँ हैं? इसी विषय पर एक अन्य पुस्तक प्रकाशित करने वाले डा0 मौरिस केजेसप ने खुद ही आत्म हत्या करली। अपने मोजों से गला घोट कर आत्म हत्या करने वाली ‘डोली’ और अनशन करके प्राण छोड़ने वाली ‘ग्लोरा’ के बारे में कहा जाता है कि एक उड़न तश्तरी के चालकों से भेंट के उपरान्त उन्हें ऐसा ही निर्देश मिला था जिसे टाल नहीं सकीं। कैप्टन एडवर्ड रुपेल्ट और विलवर्ट स्मिथ अपने मौत के स्वयं ही उत्तरदायी थे। राष्ट्र संघ के प्रमुख डाग हेयर शोल्ड का वायु यान 19 सितंबर 1961 को जलकर नष्ट हुआ था और वे उसी में मरे थे। दुर्घटना के प्रत्यक्ष दर्शी टिमोथी मानास्का ने शपथ पूर्वक कहा था कि उसने उस यान पर एक चमकदार तश्तरी झपट्टा मारती देखी थी। ये सभी लोग वे थे जिन्होंने उड़न तश्तरियों का पता लगाने के संबंध में गहरी दिलचस्पी ली थी।
कुछ को चेतावनी देकर भी छोड़ दिया गया हैं। ग्रे वारकर इस विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे थे कि उनके दरवाजे पर एक सवेरे प्रातःकाल पर्चा चिपका मिला,”उड़न तश्तरियों के बारे में चुप रहो नहीं तो बेमौत मारे जाओगे।” एक विज्ञानी राबर्ट एस. ईसले 25 फरवरी 1968 को इस विषय पर भाषण देकर लौट रहे थे कि किसी दिशा से उनकी कार पर दनादन गोलियाँ बरसने लगीं। घर पहुँचते ही टेलीफोन पर उन्होंने किसी का संदेश सुना-”आगे से इस विषय पर कुछ मत बोलो नहीं तो दुरुस्त कर दिये जाओगे।”
यों उड़न तश्तरी अभी भी एक रहस्य ही है और उनके संचालकों का किया कलाप और भी अधिक विचित्र है। फिर भी यह विश्वास किया जाता है कि कल नहीं तो परसों उन रहस्यों पर से पर्दा उठेगा और हम ऐसे युग में प्रवेश करेंगे जिसमें क्षुद्र आपापूती की संकीर्णता से ऊपर उठकर हमें विस्तृत अत्यन्त सुविस्तृत को ध्यान में रखकर सोचना पड़ेगा और उसी आधार पर अपनी गतिविधियों का निर्धारण करना पड़ेगा।