इलिनाएस सोसाइटी फॉर साइकिक रिसर्च द्वारा इस संदर्भ में कल्पना के फोटोग्राफ उतारने के सम्बन्ध में ट्रेड की स्थिति का जो पता लगाया, उसका विवरण पालिन ओहलर ने ‘फेट’ पत्रिका में प्रकाशित कराया है। उसमें बताया गया है कि “अनेक वैज्ञानिकों, फोटोग्राफरों और बुद्धिजीवियों को सतर्क मौजूदगी में ट्रेड सीरियम की कल्पना का फोटो दे सकने की क्षमता जाँची गई। इसके लिए पोलाराएड लेण्ड कैमरे इस्तेमाल किये गये। उन्हें कल्पनाएँ दी गई और उसके फोटो आसमान में से उतारे गये। प्रयोगों की वास्तविकता के सम्बन्ध में उपस्थित लोगों में से किसी को कोई संदेह नहीं है। इसमें कोई चाल नहीं पाई गई। फोटो पूर्ण सतर्कता के साथ लिये गये और परीक्षा की दृष्टि से समाधान कारक पाये गये।
ड्यूक विश्वविद्यालय की परामनोविज्ञान प्रयोगशाला अमेरिकन सोसाइटी फॉर साइकिक- तथा कुछ अन्य विश्वविद्यालयों ने इस सम्बन्ध ने कुछ रुचि दिखाई, पर ट्रेड के सनकी व्यवहार से खीजकर उन्होंने भी अपना हाथ सिकोड़ लिया और बात जहाँ की तहाँ अधूरी रह गई।
इंटर नेशनल गिल्ड आफ हिप्नोटिस्टस संस्था के प्रभावी सदस्य स्टैनले मिशेल से ट्रेड का परिचय हुआ और कल्पना के फोटो ठीक उतरे तो उस संस्था ने इस संदर्भ में एक पूरी फिल्म ही बनाकर रख दी। इससे उस ओर अनेक लोगों को ध्यान गया और वस्तुस्थिति को जानने के लिए अधिक ठोस प्रयास हुए।
उन्हीं दिनों जार्ज जोहानस फ्लोरिडा में यह पता लगाने के लिए बहुत माथापच्ची कर रहे थे कि स्वेन के समुद्र में डूबे जहाजों का कीमती खजाना किस प्रकार बाहर निकाला जाय। इस सिलसिले में उन्होंने कई अतीन्द्रिय विद्या के दावेदारों की सहायता भी जुटाई थी। इसी ढूंढ़-खोज में किसी ने उन्हें ट्रेड सीरियम का पता बता दिया। उसे साथ लेकर वे खजाने का पता लगाने में तो कोई सहायता प्राप्त न कर सके, पर कल्पना का फोटो खींचे जा सकने के ट्रेड के दावे के समर्थक बन गये। उन्होंने स्वयं उसे कुछ कल्पनाएँ दी और उनके चित्र स्वयं उतरे वे ठीक उसी प्रकार के थे जैसा कि सोचने के लिए उसे कहा गया था। चित्र बिलकुल सही और साफ आये। अस्तु जोहान्स ने नात को आगे बढ़ाया और उसे प्रामाणिक वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के हवाले कर दिया।
शिकागो का विलक्षण व्यक्ति ट्रेड सीरियस इस बात के लिए विश्व विख्यात है कि उसकी कल्पनाओं के फोटो खींचे जा सकते थे। यह शौक उसे तीस वर्ष की आयु में लगा था। वह अनुभव करता था कि उसकी कल्पनाएँ धुँधली नहीं, वरन् इतनी स्पष्ट होती है जैसे वे मूर्तिमान होकर सामने ही खड़ी हो। उसने अपने कैमरे का लेन्स अपने सिर की दिशा में करके अपने आप फोटो खींचे और उनमें उस तरह की तस्वीरें आई जैसी कि उसकी कल्पना में तैरती थी।
यह फोटो उसने अपने मित्रों को दिखाये तो उसे सनकी, शेखीखोर और जाल-साज बताया गया। उसका शौक बढ़ा और साथ ही पागलपन की जैसी सनक भी उभरी उसे अधपगला समझा जाता रहा और जो कुछ वह कहता उसे मजाक समझकर उड़ा दिया जाता।
खुली आँख से भले ही न देखा जा सके, पर जिसे सूक्ष्मदर्शी यंत्रों से देखा जा सकता है- फोटो उतारा जा सकता है उसे प्रत्यक्ष पदार्थ की ही संज्ञा दी जा सकती है। इस दृष्टि से विचार एक पदार्थ हुआ। कल्पना विचार ही तो है। कल्पना का जब फोटो खिंच सकता है तो उसकी गणना सहज ही पदार्थ संज्ञा में होगी। पदार्थ के छोटे से छोटे अणु में भी प्रचण्ड शक्ति रहती है यह अणु विस्फोट के समय निकलने वाली ऊर्जा को देखकर भली प्रकार निश्चय हो गया है। विचारों की तरंगें, प्रकाश, ताप, ध्वनि एवं विद्युत की अपेक्षा दुर्बल नहीं सशक्त ही है। इतना जान लेने के बाद हमें विचार शक्ति का मूल्य समझना चाहिए और उसका बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना चाहिए।