प्रशिक्षण हर प्राणी को बुद्धिमान हो सकते है।

August 1975

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यदि पशु पक्षियों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान दिया जाय तो वे भी मनुष्यों की तरह बुद्धिमान हो सकते हैं। मनुष्य भी आदिम काल में अन्य प्राणियों की तरह ही अनगढ़ था। सहयोग की वृत्ति अधिक रहने से एक ने दूसरे की सहायता की और संचित अनुभव का लाभ अपने साथियों को मिल सके इसका प्रयत्न किया। एक का अनुदान दूसरे को मिलने की पुण्य प्रक्रिया ने मनुष्य को पीढ़ी दर पीढ़ी अधिक बुद्धिमान और अधिक किया कुशल बनाया है। यदि वही आधार अन्य प्राणियों को मिल सके तो वे भी अब की अपेक्षा कहीं अधिक बुद्धिमान हो सकते हैं। उनमें भी वे सब तत्व मौजूद है जो मनुष्य की तरह बुद्धिमान बन सकने का द्वार खोल सकते हैं। मनुष्य चाहे तो इस दिशा में अन्य प्राणियों की बहुत सहायता कर सकता है। अविकसित मस्तिष्क के बालकों को कुशल अध्यापक लिखा पड़ा कर बुद्धिमान बना देता है तो कोई कारण नहीं कि अन्य प्राणियों को प्रशिक्षित बनाने के लिए किये गये प्रयत्नों को सफलता न मिले।

इस संदर्भ में अमेरिका में मिसिसिपी राज्य के अंतर्गत पोपरबिल नामक कस्बे के निवासी केलर बिलेण्ड नामक एक अधेड़ सज्जन विशेष रूप से प्रयत्न कर रहे है यों वे मनोविज्ञान शास्त्र के स्नातक है, पर उनने अपना प्रमुख कार्य तरह-तरह के प्राणियों को उनके वर्तमान स्तर से आगे को शिक्षा देकर अधिक बुद्धिमत्ता का परिचय दे सकने योग्य बनाने का अपनाया हैं। पशु मनोविज्ञान शास्त्र में उनके प्रयत्नों ने नई कड़ियाँ सम्मिलित की है।

बिलैण्ड की पत्नी मेरियन भी इस प्राणि प्रशिक्षण कार्य में पूरी सहायता कर रही है। इन दिनों उनने लगभग 40 किस्म के जीवों को अपने स्कूल में ‘भर्ती किया हुआ है। जिनमें मछली, चूहे, कुत्ते, बिल्ली, मुर्गे, तोते आदि सभी किस्म के प्राणी सम्मिलित हैं। अब तक उनके स्कूल के लगभग एक हजार प्राणी आश्चर्यजनक कार्य कर सकने और आकर्षण केन्द्र बन सकने योग्य विशेषताएँ प्राप्त करके विदा हो चुके हैं। प्रशिक्षित जीवों को खरीदने वाले शौकीनों की कमी नहीं रहती, वे अपने मन पसन्द के प्राणी अच्छा मूल्य देकर खरीद ले जाते हैं और मनोरंजन का आनन्द लेते हैं। शिक्षकों को भी इस धंधे से अच्छी आजीविका प्राप्त होती रहती है।

इस विद्यालय की एक कक्षा का मुर्गियाँ आज्ञा देने पर जूक वाक्स का स्विच दबाकर फिल्मी रिकार्ड चालू कर देती है और उनकी ध्वनि कर ताल बद्ध नृत्य करती है।,

मुर्गे टीम बनाकर खिलाड़ियों की तरह अपने-अपने मोर्चे पर आमने सामने खड़े होते हैं और उस क्षेत्र में प्रचलित ‘वैसवाल’ खेल, सही कायदे, कानून के अनुसार खेलते हैं। उनके साथ कोई बेईमानी चालाकी करता है और न आलस्य न लापरवाही। जो पार्टी हार जाती है वह बिना अपमान अनुभव किये पर फैला कर रेत में बैठ जाती है।

रेनडियर प्रेस की मशीन चलाते हैं। कुत्ते बास्केट बाल खेलते हैं। बतखें स्वसंचालित ढोल बजाने की मशीन को चलाती हैं, दर्शक उस बाजे का आनंद लेते हैं।

खरगोश पियानो बजाते ओर दस फुट दूरी तक ठोकर मारकर गेंद फेंकते हैं। बकरियाँ कुत्ते के बच्चों को पालती और अपना दूध पिलाती हैं।

यह सारी शिक्षा क्रिकेट ने पुरस्कार का प्रलोभन देकर पूरी कराने की तरकीब निकाली है। वे इन प्राणियों को आरम्भ में एक कार्य सिखाते हैं। पीछे जब वे मालिक की मर्जी समझने और निबाहने का संकेत समझ लेते हैं तो प्रत्येक सफलता पर स्वादिष्ट भोजन देने का उपहार दिया जाने लगता है। उन्हें सामान्य रीति से भोजन नहीं मिलता। उपहार पर ही उन्हें निर्वाह करना पड़ता है। लोभ से, आवश्यकता से अथवा विवशता से प्रेरित होकर वे सिखाये गये कामों को पूरा करते हैं और दर्शकों का मनोरंजन तथा शिक्षकों का पारिश्रमिक जुटते हैं काम करो तो खाना मिलेगा अन्यथा नहीं। यह तरीका सारी प्रशिक्षण प्रक्रिया की धुरी हैं।

कुछ जानवर स्वभावतः चतुर होते हैं और कुछ मंद बुद्धि। चतुर अपनी सीखी विधि को फुर्ती के साथ इशारा पाते ही पूरा कर देते हैं पर कुछ या तो भूल जाते हैं या उपेक्षा करते हैं। उन्हें कठिन और बढ़िया काम से हटाकर सरलता से हो सकने वाले खेल सिखा दिये जाते हैं। एक रैकून को जब बचत के पैसे जमा करने वाले डिब्बे में गिनती के पैसे डालने में अभ्यस्त न बनाया जा सका तो सीटी बजाने की सरल शिक्षा देकर छुट्टी दे दी गई।

संदेशवाहक कबूतर, नियमित रूप से नियत स्थानों पर पहरेदारी करने वाले कुत्ते, बिखरे समान को इकट्ठा करने वाली बिल्लियाँ, रेडियो बजाने के शौकीन रैकून अपने बताये हुए काम ठीक तरह करते हैं।

अधिक समझदार जानवरों में कुत्ते और बन्दर आते हैं। ये किसी छोटी फैक्टरी या दुकान के मालिक का पूरी तरह हाथ बटाते हैं। ढेर की वस्तुओं को छाँटकर अलग-अलग कर देना उन्हें अलग-अलग स्थानों पर यथा क्रम लगा देना। उन्हें कुछ ही दिन में आ जाता है। घड़ी देखकर नियम समय का अनुमान कर लेना और तदनुसार अपनी ड्यूटी में हेर फेर कर देना उनमें से अधिकाँश को आ जाता है। प्रेशर, कुकर में भोजन पकते छोड़कर मालिक चला जाता है और जब पकजाने की सीटी बजती है तो बंदर द्वारा स्विच बंद करके उस काम को पूरा कर देना सहज ही आता है। ऐसे-ऐसे अनेक काम वे सीख जाते हैं। तोता, मैना मनुष्य की बोली की नकल करने के लिये प्रसिद्ध थे ओर अन्य कई पशु-पक्षियों को भी थोड़ा बहुत मानवी भाषा और उसका तात्पर्य समझने का अभ्यास होने लगा हैं।

ब्रिलेण्ड केलर का 280 एकड भूमि पर बना प्राणि प्रशिक्षण गृह-”एनीमल बिहेवियर एन्टर प्राइस’ के नाम से प्रसिद्ध है। उसकी वार्षिक आमदनी 25 लाख रुपया हैं। इस आय से वे नई प्रयोगशालाएं और नये प्रशिक्षण गृह स्थापित करते जा रहे हैं। अब तक सरकस वालों को ही पद श्रेय प्राप्त था कि वे खतरनाक जानवरों को कुछ खेल दिखाने के लिये प्रशिक्षित करते हैं। इस दिशा में ब्रिलेण्ड के प्रयोग प्राणियों के बौद्धिक विकास की समस्या सुलझाने की दृष्टि से हो रहे हैं। उनकी शिक्षण पद्धति को ‘कंडीशनिंग थियरी’ कहा जाता है। जिसका आधार प्राणियों को यह समझा देना कि ‘ऐसा करने से ऐसा होगा।’ कर्मफल का सिद्धान्त जानकर पशु-पक्षी भी यह समझ जाते हैं कि हमारे लिये क्या करना लाभदायक है और क्या हानिकारक। एक मनुष्य ही ऐसा है जो सब कुछ सीख कर भी जीवन समस्याओं के सुलझाने में भूल पर भूल करता रहता है और कर्मफल के सिद्धान्त का जानकर होते हुए भी नशेबाजी जैसे अनेक प्रसंगों में उसकी पूरी उपेक्षा करता है।

प्रशिक्षण से पशु पक्षी बौद्धिक विकास की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं और अपने लिये तथा दूसरों के लिये अधिक उपयोगी हो सकते हैं। ऐसा ही उपयोगी शिक्षण 400 करोड़ आबादी वाले संसार में रहने वाले 300 करोड़ पिछड़े लोगों को भी मिल सके तो वे आज की स्थिति से निस्संदेह कहीं ऊँचे उठा सकते हैं।


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