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September 1968

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नित्य चैतन्य रूप आत्मा न उत्पन्न होता है न मरता है, न यह किसी से हुआ है और न इससे कोई हुआ है- अर्थात् इसका कारण या कार्य नहीं है। यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है और पुराण है, शरीर के मारे जाने पर भी यह मरता नहीं है। -कठोपनिषद्


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