वैज्ञानिक अध्यात्मवाद और प्रबुद्ध परिजनों का सहयोग
विगत दो अंकों में, जुलाई, अगस्त की अखण्ड-ज्योति के इसी स्तम्भ के अंतर्गत यह बताया जा चुका है कि अध्यात्म को आज की लोक-मनोभूमि के अनुसार प्रतिपादित एवं प्रस्तुत करने की कितनी बड़ी आवश्यकता है। आज के जन-साधारण की मनोभूमि किसी भी विषय को, बुद्धि-संगत ढंग से समझने की है। अब तर्क, प्रमाण, उदाहरण, विज्ञान को आधार माना जाता है। शास्त्र-पुराणों की बात अब गले नहीं उतरती। इन बदली हुई परिस्थितियों में अध्यात्म को उसी पृष्ठ-भूमि में प्रतिपादित करना पड़ेगा, अन्यथा नई पीढ़ी उसे कल्पना, भावुकता, अंधविश्वास, परम्परागत आग्रह आदि कहकर इस महान तत्त्व-ज्ञान का तिरस्कार, उपहास एवं उपेक्षा, अवज्ञा करती चली जायेगी। फलतः व्यक्ति और समाज की उस बढ़ती अनास्था के कारण भारी हानि सहन करनी पड़ेगी।
आध्यात्मिक आस्थाओं के बिना आदर्शवादिता, उत्कृष्टता, संयम, सदाचार, न्याय, सौहार्द, स्नेह, सद्भाव, पुण्य, परमार्थ, तप, त्याग जैसी एक भी सत्प्रवृत्ति को जीवित नहीं रखा जा सकता। जब मानवीय चेतना पेड़-पौधों की तरह शरीर के साथ ही समाप्त हो जाने वाली मान ली गई तो फिर किसी भी कीमत पर मौज उड़ाने का लक्ष्य ही बाकी बच रहेगा। मानवीय संस्कृति की चिर उपलब्ध उत्कृष्टता और आदर्शवादिता को अपनाने के कष्ट साध्य मार्ग पर चलने का कोई आधार ही शेष न रहेगा। भौतिकवादी तत्त्व-ज्ञान मानवीय सभ्यता के लिए एक भयावह विभीषिका है, उससे समय रहते सावधान होने की आवश्यकता है। यदि इस दिशा में उपेक्षा बढ़ती गई और प्रवाह तीव्र होता चला गया तो उसे रोकना कठिन हो जायेगा। अतएव युग की यह महती आवश्यकता हर विचारशील को अनुभव करनी चाहिए और जिससे जितना सम्भव हो उसे इस दिशा में प्रयत्न करना चाहिए कि अध्यात्म के तत्त्व-ज्ञान को नई पीढ़ी की बुद्धिवादी पृष्ठभूमि के अनुरूप प्रतिपादन कर सकना सम्भव हो सके।
‘अखण्ड-ज्योति परिवार’ के प्रबुद्ध परिजन इस दिशा में क्या कर सकते हैं, इसकी संक्षिप्त जानकारी गत दो अंकों में छापी जा चुकी है। तदनुसार कितने ग्रेजुएट स्तर के परिजनों ने भावनापूर्ण पत्र भेजे हैं। हम जानते हैं कि कई पत्र क्षणिक उत्साह में कौतूहल मात्र समझ कर लिखे गये हैं और भावुकता के उफान में 20 पैसा का लिफाफा खर्च कर गये हैं। वे समझ नहीं पाये कि उन्हें इसके लिये प्रतिदिन कुछ घण्टे का समय लगाते रहने की कई वर्ष निरन्तर आवश्यकता पड़ेगी और जीवन के अत्यन्त आवश्यक कामों में एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य इसे भी मानकर निरन्तर सोचने, पूछताछ करने और भागने-दौड़ने की आवश्यकता पड़ेगी। क्षणिक आवेश को स्थिर प्रयत्न के रूप में परिणत करना पड़ेगा। ऐसी उथली तबियत में लिखे गये, क्षणिक आवेश वाले प्रस्ताव कुछ ही दिन में अपने आप निरस्त हो जायेंगे। उनकी छटनी एकाध महीने में ही हो जायेगी। तब तक पता चल जायेगा कि इनमें से कौन काम के और कौन बेकाम के हैं।
हम जानते हैं कि परिवार में काम के- लगनशील, कर्मठ और दृढ़ प्रतिज्ञा भी हैं और वे एक बार किसी बात की उपयोगिता एवं महत्ता को स्वीकार कर लें तो उसके लिए देर तक-निरन्तर-यहाँ तक कि जीवन भर भी काम करते रह सकते हैं। ऐसे साहसी, सन्तुलित और स्थिर-मति व्यक्ति ही अपना उत्साह और प्रयत्न सुदृढ़ बनाये रख सकते हैं और उसी आधार पर कुछ ठोस काम हो सकता है। विश्वास है कि कुछ ठोस व्यक्ति भी जरूर निकलेंगे, उनकी संख्या थोड़ी-सी भी हो, किन्तु विचारों में दृढ़ता एवं लक्ष्य के प्रति आस्था के आधार पर वे बहुत काम कर सकेंगे। ऐसे व्यक्तियों की परीक्षा भी जल्दी ही हो जायेगी तब उन्हें कुछ ठोस काम भी सौंपा जा सकेगा।
पिछले अंक में सहयोग के इच्छुक स्वजनों के लिए कुछ काम सौंपा है जिनमें प्रमुख यह हैं-
(1) जो विषय उनने ग्रेजुएट स्तर तक पढ़े हों उनकी सामान्य जानकारी के नोट्स आरम्भ से लेकर इण्टर अथवा हायर सेकेण्डरी स्तर के बनाकर भेजने चाहिए। इतना हजम कर लेने और पढ़ लेने के उपरान्त आगे के ग्रेजुएट स्तर के नोट्स मागेंगे। दो किश्तों में हमें अपनी पढ़ाई पूरी करनी है। पहली किश्त में हायर सेकेण्डरी (इण्टर) स्तर, दूसरे में एम. ए. स्तर। इतना अध्ययन- आधुनिक सभी विचार पद्धतियों की जानकारी- होने के उपरान्त ही इतने महान् विषय का सम्पादन सम्भव हो सकता है।
यह नोट ऐसे हों जिन्हें उस विषय का अनजान व्यक्ति भी समझ सके। उदाहरण, प्रमाण, हवाले, समर्थन का संदर्भ जितना अधिक होगा उतनी ही प्रामाणिकता एवं उपयोगिता रहेगी।
कौन किस विषय के नोट तैयार कर रहे हैं इसकी पूर्ण जानकारी हमें दे देनी चाहिए ताकि अन्य लोगों से उस विषय में श्रम न कराया जाय। जानकारी दिये बिना कई व्यक्ति एक ही विषय पर नोट लिखने लगे तो अन्य का श्रम पुनरावृत्ति होने के कारण व्यर्थ हो जायेगा।
इन नोटों की जरूरत इसलिए है कि हमें बुद्धिवादी आधार पर वैज्ञानिक अध्यात्म का प्रतिपादन करने से पूर्व आधुनिक विचार-विज्ञान तथा पदार्थ-विज्ञान की समस्त धाराओं एवं शाखाओं का सामान्य ज्ञान प्राप्त जाय। इसके बिना इतना विशाल प्रतिपादन सम्भव नहीं हो सकता। अब तक हम कतिपय विषयों को अपने पाठक-परिजनों की पढ़ाते-लिखते रहे हैं। अब हमें भी कुछ सीखना है। अनुमान तो न था कि बुढ़ापे में स्कूली पढ़ाई पढ़नी पड़ेगी, सो भी तब जबकि जीवन का अन्तिम अध्याय अति समीप आ गया। फिर भी किया क्या जाय? कठपुतली को अपने मालिक के इशारे पर नाचने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं, सो हमें भी वह अप्रत्याशित करना पड़ रहा है। अपने परिजनों से इन नोटों के आधार हमें इस वर्ष वह समस्त शिक्षण प्राप्त कर लेना है जिससे विचार-विज्ञान (फिलासफी) एवं पदार्थ-विज्ञान (साइन्स) की लगभग 600 शाखाओं की आवश्यक जानकारी प्राप्त हो सके।
ग्रेजुएट स्तर के पाठक हमें इतना पढ़ा सकते हैं और हम उनके भेजे नोटों के आधार पर काम चला सकते हैं। इसलिये विश्वास है यह एक बहुत बड़ी आवश्यकता इस वर्ष आसानी से पूरी कर ली जायेगी। कौन हमें कब पढ़ायेगा यह बात जल्दी ही बतायी जाय तो एक निश्चिन्तता अनुभव की जायेगी।
(2) दूसरा कार्य यह सौंपा गया है कि अपने नगर की प्रायः सभी अच्छी लायब्रेरियों को तलाश कर लिया जाय। और उनमें यह ढूँढ़ा जाय कि अध्यात्मवाद को बुद्धिसंगत ढंग में प्रतिपादन करने वाली पुस्तकें वहाँ कौन-कौन हैं? पुस्तकों के नाम, उनके लेखक, मूल्य और प्राप्ति के पूरे पते यह सभी बातें नोट करके एक लिस्ट बना लेनी चाहिए और उनकी एक-एक प्रति हमारे पास भेज देनी चाहिए।
इस प्रकार की लिस्टें तैयार हो जाने पर पता चल जायेगा कि कहाँ-कहाँ कौन-कौन उपयोगी पुस्तकें हैं। पीछे उन्हें पढ़ने और उपयोगी सारांश नोट करते रहने के लिए विभिन्न व्यक्तियों को कहा जायेगा। इस दिशा में पुनरावृत्ति न होने पाये, एक ही पुस्तक को अन्य ग्रामों के भी अन्य व्यक्ति हाथ में न ले लें, यह कार्य पर्व सूचना और परामर्श के आधार पर ही सम्भव हो सकेगा। यह आवश्यक है कि सारी जानकारियाँ एकत्रित हो और पुनरावृत्ति की आशंका न रहे।
किन विषयों की पुस्तक ढूंढ़नी हैं, इस सम्बन्ध में निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
अलौकिकता
सूक्ष्म-जगत, सूक्ष्म-शरीर, किन्हीं भविष्य कथनों की प्रामाणिकता, उड़न-तश्तरियाँ, लोक-लोकान्तरों के प्राचीन व्यक्तियों की चमत्कारी विशेषताएँ, प्रेतात्माओं का आस्तित्व, योग की सिद्धियाँ, देव शक्तियों के वरदान, अभिशाप, अति मानव-स्तर, दिव्य-दृष्टि, दूरस्थ-व्यक्तियों से विचार विनिमय, मानवीय-विद्युत, संकल्प-शक्ति, मनोबल आदि।
ईश्वर-आत्मा-
ईश्वर के अस्तित्व की सिद्धि, आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व, कर्मफल की सचाई, स्वर्ग-नरक आत्मा और जीव का संपर्क एवं प्रतिफल, द्वैत-अद्वैत-त्रैत की विभिन्न मान्यतायें। आस्तिकवादी और नास्तिकवादी दार्शनिकों के तर्क और प्रतिपादन भारतीय तथा पाश्चात्य ढंग से।
साधना-
योग-साधना के विभिन्न प्रकार परिचय, और स्वरूप, ध्यान, तप, तितीक्षा, विचारातीत स्थिति, समाधि, कुंडलिनी, इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, नाड़ी-संस्थान, षट्चक्र, राज-योग, हठ-योग, लय-योग, मन्त्र योग, प्राण-योग आदि योगों का विवरण एवं संकेत आदि।
धर्म-
कर्त्तव्य-शास्त्र, अपराध-शास्त्र, प्रायश्चित्त, सदाचार-समर्थन, शारीरिक और मानसिक संयम, साहस, श्रम और पुरुषार्थ, सेवा-परोपकार, दान-पुण्य, मृदुलता, शिष्टाचार, सौहार्द, सहयोग, स्नेह, संगठन, ईमानदारी, सच्चाई, त्याग, सच्चरित्रता, समता, कर्त्तव्य-परायणता आदि का पक्ष प्रतिपादन।
नास्तिकवादी सिद्धान्तों का परिचय-
आत्मा, ईश्वर, धर्म, संयम, दवा, कर्मफल की दैवी व्यवस्था। पुनर्जन्म आदि अध्यात्मवादी सिद्धान्तों के विरुद्ध जो तर्क एवं प्रतिपादन किया गया है उनका पूरा परिचय।
अपनी दिशा में चलने वाले साथी-
ऐसे भारतीय अथवा विदेशी सज्जनों के नाम-पते तथा परिचय, जिन्होंने इस दिशा में कुछ सीखा, पढ़ा, लिखा हो अथवा ढूँढ़-खोज की हो। ऐसे पुस्तक प्रकाशकों, पुस्तक विक्रेताओं, पुस्तकालयों के पते जहाँ अपनी आवश्यकता का साहित्य अधिक मात्रा में मिलने की संभावना हो। किसी भी भाषा में छपने वाली ऐसी पत्रिकाओं के पते जो अपने विषय पर प्रकाश डालती हों।
अभी फिलहाल इन चार प्रकार की जानकारियों के संग्रह करने का काम हमें आरम्भ कर देना चाहिये। इसके उपराँत अन्यान्य कार्य हाथ में लिये जा सकते हैं। जिनकी व्यक्तिगत योग्यता, रुचि, एवं स्थिति जिस प्रकार की होगी, उन्हें वैसा कार्य सौंपा जा सकेगा। पर अभी तो प्रारम्भिक कार्य ही हाथ में लेना चाहिये और प्रयत्न यह करना चाहिए कि उपरोक्त चार आधारों की जितनी ज्यादा जानकारी अभी एकत्रित की जा सके वह करली जाय। हमें उस आरम्भिक कार्य को पूरा करने में जुटना चाहिए।
इस कार्य में जिन्होंने रुचि दिखाई है और सहयोग देने का उत्साह प्रकट किया है उन्हें अपना कार्य वस्तुतः कुछ अधिक कर सकने की दिशा में सफलता प्राप्त कर सकने के लिए यह प्रयत्न करना चाहिए कि अपने कुछ साथी सहयोगी अपनी ही जैसी रुचि, प्रकृति और शिक्षा के ढूँढ़ लेने चाहिये और उनकी एक छोटी समिति बना लेनी चाहिये जो अवकाश के समय इकट्ठे होकर परस्पर विचार विनिमय एवं ढूँढ़-खोज में सहयोग दिया करें। ढूँढ़-खोज में कई सदस्यों का मस्तिष्क जब मिल-जुल कर काम करता है और थोड़ा-थोड़ा समय सभी का मिलता है तो कार्य में सरलता हो जाती है और थोड़ा-थोड़ा करने पर भी कुछ अधिक काम हो सकना सम्भव हो जाता है। जो नये साथी ढूंढ़े जाँय उन्हें जुलाई, अगस्त और सितम्बर के तीनों ‘अखण्ड-ज्योति’ अंकों में छपी ‘अपनों से अपनी बात’ स्तंभ वाली यह विज्ञप्तियाँ पढ़ा देनी चाहिये और स्वयं भी उन्हें विस्तारपूर्वक सारी पृष्ठ-भूमि समझा देनी चाहिये। जिन्हें पूरी जानकारी मिल सकेगी वे ही बात को ठीक तरह समझ सकते हैं और कुछ काम के सिद्ध हो सकते हैं। अधूरी जानकारी वालों से कुछ काम होगा भी तो वह बेतुका और अप्रासंगिक होने से निरर्थक ही चला जाता है।
अपना विषय, उद्देश्य और कार्यक्रम यथा सम्भव इन तीन अंकों में समझाने का प्रयत्न किया गया है, फिर भी बात बिल्कुल नई और कार्य-पद्धति अपरिचित होने के कारण यह सम्भव है कि उसे पूरी तरह समझने में और कार्य रूप में परिणत करने का आधार बनाने में कठिनाई तथा भूल हो सकती है। इसलिए अधिक अच्छा यही है कि एक बार मथुरा आकर इस संदर्भ में विस्तार से परामर्श एवं विचार-विनिमय कर लिया जाय एवं अपनी परिस्थिति तथा मनोभूमि के उपयुक्त कार्य-पद्धति निर्धारण करली जाय। अभी दिवाली तक हमारा रहना मथुरा ही है, इसके बाद जाड़े के दिनों में कतिपय प्रोग्रामों पर भी जाना पड़ेगा। इसलिए अच्छा यही है कि दशहरा और दिवाली के बीच जो छुट्टियाँ पड़ेंगी उन्हीं में मथुरा आकर मिल लिया जाय। जो आयें वे पूर्व सूचना देकर उत्तर अवश्य प्राप्त कर लें ताकि पूर्व निर्धारित समय निश्चित रहने से किसी को कोई असुविधा न हो।
प्रसन्नता की बात है कि कुछ प्रबुद्ध परिजनों ने इस दिशा में सहयोग देने का उत्साह दिखाया है। पर कार्य की विशालता को देखते हुये अभी सहयोग की मात्रा कम है। अधिक व्यक्तियों का अधिक समय, श्रम एवं सहयोग अभीप्सित है। इन पंक्तियों द्वारा इस सहयोग को सादर आमंत्रित करते हैं। यह सभी सहयोग बिना किसी अर्थ अथवा यश की कामना से ही किया जाना है, सो ध्यान रखा जाय।
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद सम्बन्धी विवरण जुलाई, अगस्त, सितम्बर अंकों में छपा है। किसी अपरिचित को इस संदर्भ में पूरी बात जाननी, बतानी हो तो उन्हें यह तीनों अंक साथ-साथ पढ़ने चाहिए। जिन ग्रेजुएट स्तर के सज्जनों ने सहयोग देने का वचन दिया है उन्हें अपने कुछ और साथी भी ढूंढ़ने-बनाने चाहिए। जिनसे कुछ आशा हो उन्हें पूरी जानकारी देने के लिए इन तीनों अंकों का साराँश इकट्ठा छापा जा रहा है। इसकी प्रतियाँ आवश्यकतानुसार बिना मूल्य मँगाई जा सकती है।