सेवा स्वीकार करें

September 1968

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शौर पुच्छ नामक बनिक ने एक बार भगवान् बुद्ध से कहा- भगवन् मेरी सेवा स्वीकार करें। मेरे पास 1 लाख स्वर्ण मुद्रायें हैं वह सब आपके काम आयें। बुद्ध कुछ न बोले चुपचाप चले गये?

कुछ दिन बाद वह पुनः तथागत की सेवा में उपस्थित हुआ और कहने लगा- देव! यह आभूषण और वस्त्र ले लें दुखियों के काम आयेंगे मेरे पास अभी बहुत-सा द्रव्य शेष है। बुद्ध बिना कुछ कहे वहाँ से उठ गये। शौर पुच्छ बड़ा दुखी था कि वह गुरुदेव को किस तरह प्रसन्न करे?

वैशाली में उस दिन महान धर्म-सम्मेलन था हजारों व्यक्ति आये थे। बड़ी व्यवस्था जुटानी थी। सैकड़ों शिष्य और भिक्षु काम में लगे थे। आज शौर पुच्छ ने किसी से कुछ न पूछा- काम में जुट गया। रात बीत गई सब लोग चले गये पर शौर पुच्छ बेसुध कार्य-निमग्न रहा। बुद्ध उसके पास पहुँचे और बोले शौर पुच्छ! तुमने प्रसाद पाया या नहीं? शौर पुच्छ का गला रुँध गया। भाव-विभोर होकर उसने तथागत को साष्टाँग प्रणाम किया। बुद्ध ने कहा- वत्स परमात्मा किसी से धन और संपत्ति नहीं चाहता वह तो निष्ठा का भूखा है लोगों की निष्ठाओं में ही वह रमण किया करता है आज तुमने स्वयं जान लिया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118