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September 1968

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भगवान बुद्ध परिव्राजन करते हुये एक ब्राह्मण के घर ठहरे। जब ब्राह्मण को मालूम हुआ कि वह बुद्ध हैं तो उसने जी भरकर गालियाँ दीं, अपशब्द कहे और तुरन्त निकल जाने को कहा।

बुद्ध देर तक सुनते रहे। जब उन सज्जन ने बोलना बन्द किया तो उन्होंने पूछा- द्विजवर! आपके यहाँ कोई अतिथि आते होंगे तो आप उनका सुन्दर भोजन और मिष्ठान से स्वागत करते होंगे? इसमें क्या शक। उनने उत्तर दिया। और यदि किसी कारणवश मेहमान उसे स्वीकार न करें तो आप उन पकवानों को फेंक देते होंगे?

फेंक क्यों देते हैं, हम स्वयं ग्रहण कर लेते हैं- उन्होंने विश्वासपूर्वक उत्तर दिया।

“तो हम आपकी यह गालियों की भेंट स्वीकार नहीं करते, अपनी वस्तु आप ग्रहण करिये।” यह कहकर बुद्ध मुस्कराते हुये वहाँ से चल पड़े।


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