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September 1968

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किसी सदाशयी का विरोध प्रायः जन-साधारण की ओर से नहीं बल्कि समझदारों तथा विद्वानों द्वारा ही होता है। जन-साधारण की अपेक्षा विद्वानों की श्रद्धान्धता अधिक भयंकर होती है। जन-साधारण अधिक से अधिक अपनी अन्ध-श्रद्धा और अन्ध-विश्वास पर आघात होते देखकर एक ओर हट जाते हैं किन्तु विद्वान संघर्ष उत्पन्न करने का प्रयत्न करते हैं।

किसी सुन्दर, सीधी और सही बात को जन-साधारण को सरलता से समझाई जा सकती है क्योंकि उनकी अंध-श्रद्धा पर बुद्धिवाद की यवनि का नहीं पड़ी होती है। यह सत्य है कि नूतन सत्य को समझ कर जितना लाभ जन-साधारण उठा लेते हैं उतना पंडित लोग नहीं।

यह बात भी शत-प्रतिशत सही है कि किसी सत्य के दर्शन और सही मार्ग की जितनी आवश्यकता जन-साधारण को है उतनी पण्डित को नहीं। अस्तु, जन-सेवक को वही कार्य करना चाहिये जहाँ उसकी आवश्यकता है। -भगवान बुद्ध


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