आध्यात्मिक स्तर पर उपासनात्मक अभियान द्वारा नव निर्माण

January 1968

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अच्छी दुनियाँ बनाने के लिए कई क्षेत्रों में कई प्रकार के प्रयत्न किये जा रहे हैं। राजनैतिक क्षेत्र में ‘विश्व-संघ’ का संगठन खड़ा किया गया है, उसका उद्देश्य अच्छी दुनियाँ की रचना है। अपने स्तर पर वह संगठन भी काम कर रहा है। विज्ञान का कोई विश्वव्यापी संगठन तो नहीं है पर जो स्थानीय संगठन हैं अथवा जो वैज्ञानिक शोध कार्यों में लगे हुए हैं उनका दावा भी यही है कि वे अपने वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा दुनियाँ को अधिक सुखी बना सकेंगे। आर्थिक क्षेत्र भी यही दावा करते हैं। छोटे-बड़े उद्योगों की स्थापना के पीछे यही उद्देश्य बताया जाता है। सामाजिक स्तर पर सर्वोदय, सत्य समाज आदि संगठनों का यही प्रयत्न है कि उनकी रीति-नीति अपना लेने पर दुनियाँ में सुख-शान्ति स्थापित होगी। विश्व-शान्ति के नाम पर और भी कितने ही प्रयत्न अपने-अपने ढंग के चल रहे हैं। इस समर्थित ‘शान्ति परिषद’ और अमेरिका समर्थित ‘शान्ति सेना’ अपना उद्देश्य यही बताते हैं। धार्मिक क्षेत्र में ऐसे कई प्रयत्न हुए। बहाई धर्म और ब्रह्माकुमारी से लेकर अनेक तथाकथित अवतारों तक, अनेक व्यक्तियों और संस्थाओं का प्रयत्न इसी दिशा में है।

इस प्रकार विभिन्न स्तरों पर चल रहे प्रयत्नों के होते हुए भी आशाजनक परिणाम सामने न आने का एक ही कारण है कि जिस आध्यात्मिक स्तर पर यह प्रयत्न किये जाने चाहिये थे उसे नहीं अपनाया गया। मनुष्य वस्तुतः आत्मा है। आत्मा में परिवर्तन उत्पन्न होने से ही उसकी विचार धारा एवं कार्य पद्धति में वास्तविक हेर-फेर हो सकता है। अन्यथा बाह्य परिस्थितियां एवं मान्यताएँ यदि बदल दी जाँय तो आत्मिक स्तर गिरा रहने पर मनुष्य बदलेगा नहीं, वह गुप्त प्रकट धूर्तताएँ बरत कर विकृतियाँ ही उत्पन्न करता रहेगा। उदाहरण के लिए विभिन्न राजनैतिक दलों के राज-नेता हमारे सामने हैं। डडडड का लक्ष्य, कार्यक्रम, घोषणा पत्र, दृष्टिकोण सभी कुछ डडडड है। उनमें से किसी भी दल की घोषित विचारणा या कार्यपद्धति ठीक तरह कार्यान्वित हो तो समाज में सुख-शान्ति समृद्धि की संभावना मूर्तिमान हो सकती है। पर देखा यह जाता है कि बेचारे अनुयायी तो दूर, दलों के मूर्धन्य राज-नेता भी अपने व्यक्तिगत जीवन में उस नीति को कार्यान्वित नहीं करते। कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं। फलतः न तो उनकी आत्मा इतनी प्रबल होती है कि वह वातावरण को वस्तुतः प्रभावित कर सके और न उनके अनुयायी ही इतने निष्ठावान होते हैं कि नेताओं के चरित्र की उपेक्षा कर उनके प्रवचनों से ही प्रभाव ग्रहण करलें। फलस्वरूप “पर उपदेश कुशल” बनने की विडम्बना चलती रहती है। लकीर पिटती रहती है। हथकण्डों के आधार पर लोग अपनी गाड़ी खींचते रहते हैं। वास्तविक काम कुछ हो नहीं पाता। राजनैतिक दलों के राजनेताओं की तरह, अन्याय क्षेत्रों में भी यह दुर्दशा है। भौतिक स्तर पर किये गये प्रयत्न क्षणिक लाभ ही दे सकते हैं। वास्तविकता का स्तर तो आत्मा है। जब तक आत्मिक स्तर पर परिवर्तन के प्रयत्न न किये जायेंगे तब तक ठोस परिणाम सामने न आयेगा। हमारा प्रयत्न मूल को सींचने का है, हम मनुष्य का परिवर्तन उसकी आत्मा से आरम्भ करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि उसका बाह्य जीवन भी उत्कृष्ट बने और उस उत्कृष्टता का सामूहिक परिपाक देव-समाज के रूप में- सतयुग के रूप में सामने आये।

अपनी ‘युग-निर्माण योजना’ एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। दिसम्बर अंक में स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के परिष्कार के लिये कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का एक सर्वांगपूर्ण कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया है। अपने सामूहिक प्रयत्न भी इसी आधार पर हैं। उपासना के साथ अध्यात्म तत्व ज्ञान का शुभारम्भ होता है। अतएव हमें भक्तियोग के अंतर्गत उस ओर भी पूरा-पूरा ध्यान देना है। विचार परिवर्तन आंदोलन के मूल में आध्यात्मिक तत्व ज्ञान को अविच्छिन्न रूप में जोड़ रखा गया है। अतएव हमें उपासना को अनिवार्य और व्यापक बनाते हुये अपने कदम आगे बढ़ाने हैं।

‘युग-निर्माण योजना’ का भावी स्वरूप विश्वव्यापी होगा। उसे हर देश के- हर धर्म के- हर समाज के लोग समान रूप से स्वीकार शिरोधार्य करेंगे। पर अभी उसका आरम्भ ‘अखण्ड-ज्योति-परिवार’ के परिजनों से किया गया है। जो कार्यक्रम इस प्रथम चरण में बनाये जा रहे हैं वे यह सोच कर बनाये जा रहे हैं कि उन्हें हमारे परिजन तुरन्त कार्यान्वित करेंगे और फिर उनके पुरुषार्थ से यह प्रक्रिया आगे के क्षेत्रों में बढ़ती फैलती चली जायेगी। इसलिए प्रारम्भिक विचार और कार्य इस स्तर के हों जिन्हें अखण्ड-ज्योति-परिवार के सदस्य सरलतापूर्वक अविलम्ब कार्यान्वित कर सकें। भारतीय धर्म में छुटपुट शुभ कार्य भी प्रार्थना, उपासना के साथ आरम्भ किये जाते हैं तो ‘युग-निर्माण’ जैसे महानतम कार्य के मूल में उपासना का आधार न रहे यह कैसे हो सकता है? गायत्री-मन्त्र भारतीय धर्म और संस्कृति का मूल है। इसमें वह शिक्षा भी है और यह शक्ति भी है जिसके आधार पर व्यक्ति और समाज का स्तर उत्कृष्ट बनाया जा सके। अनादि काल से हमारे पूर्वज इस अवलम्बन को अपना कर अपनी आँतरिक और लौकिक महानता अक्षुण्ण बनाये रहने में समर्थ हुए। अब हमें उनका स्तर पुनः प्राप्त करने के प्रयास में उनकी उपासना पद्धति को अपनाना चाहिये। कहना न होगा कि भारती धर्म की अनादि उपासना केवल ‘गायत्री’ है। वही हमारा गुरु मन्त्र है। वही हमारे तत्वज्ञान का सार और धर्म एवं संस्कृति का आधार है। गायत्री उपासना में वह अलौकिक दिव्य शक्ति विद्यमान है कि यदि ठीक तरह उसका प्रयोग किया जा सके तो विश्वव्यापी वातावरण बदला जा सकता है और विश्व-शाँति का शिलान्यास ठोस आधार पर किया जा सकता है।

पिछले दिनों में लगातार अपने यही प्रयास चल रहे हैं। नवयुग की उदीयमान वेला में गायत्री महाशक्ति का उदय ब्रह्म-मुहूर्त की ऊषा की तरह हो रहा है। लोग इस आदि शक्ति को-ब्रह्म शक्ति को न एक प्रकार से भूल ही चुके थे। 20 वर्षों के प्रबल प्रयत्नों के साथ उसे जन-मानस में उतारने का जो विश्वव्यापी अभियान उत्पन्न किया गया, उसके फलस्वरूप, इस देश में ही नहीं- लगभग संसार के सभी देशों में करोड़ों व्यक्ति निष्ठापूर्वक गायत्री उपासना में संलग्न हो सके। गायत्री तपोभूमि की स्थापना, गायत्री परिवारों का संगठन, अलभ्य गायत्री साहित्य का निर्माण, गायत्री यज्ञों की देशव्यापी श्रृंखला आदि प्रयत्नों के आधार पर इस दिशा में जितना कार्य हुआ है, उसका मूल्याँकन आज नहीं हो सकता, उसे तो भावी इतिहासकार ही आंकेंगे। अभी तो हमें इतना जान लेना ही पर्याप्त है कि युग-निर्माण के शुभारम्भ के लिए उपासनात्मक प्रक्रिया की अनिवार्य आवश्यकता थी, उसका प्रचलन एक संतोषजनक सीमा तक हो चुका। अब इसका विशेष प्रयोग इस दस वर्षीय अभियान के लिए करना है, जिसका आरम्भ इसी बसंत पंचमी- 3 फरवरी 1968 शनिवार से होने जा रहा है।

गायत्री व्यक्तिगत उपासना भी है पर उसे सामूहिक प्रयत्नों में भी सर्वोपरि सफलता के साथ प्रयुक्त किया जा सकता है। इस महामन्त्र का “नः” शब्द यही इंगित करता है कि गायत्री व्यक्ति को ही नहीं समाज को भी- समूह को भी- पलट देने में- सुधार देने में समर्थ है। यह क्षमता और किसी मन्त्र में नहीं। इसलिए उसे गुरु मन्त्र के साथ-साथ राष्ट्र मन्त्र भी कहा गया है। युग-निर्माण प्रक्रिया में इसका उपयोग अनिवार्य रूप से आवश्यक है यही सोच कर गत् बीस वर्षों से इस संदर्भ में अथक प्रयत्न करके उसे लोक मानस में एक सुपरिचित तथ्य बना दिया गया। अब नवनिर्माण कार्यक्रम में उसका विशेष प्रयोग किया जाना है।

दिसम्बर अंक के अन्तिम लेख में गायत्री यज्ञों का दस वर्षीय उपासनात्मक कार्यक्रम छपा है। 200 शाखाओं द्वारा 5-5 कुण्डों के गायत्री यज्ञ होते रहने से हर वर्ष 1000 कुण्डों का एक वैसा ही महायज्ञ सम्पन्न होता रहेगा जैसा सन् 58 में मथुरा में किया गया था। ऐसे यज्ञों की तुलना- अश्वमेध यज्ञ से की जाती है। त्रेता में भी दस अश्वमेध यज्ञ आसुरी वातावरण को निवृत्ति के लिये गंगा तट पर काशी में किये गये थे, जिनकी स्मृति और साक्षी ‘दशाश्वमेध घाट’ अभी भी बना हुआ है। अब पुनः उस पुण्य प्रयोजन की पुनरावृत्ति हो रही है। सन् 68 से लेकर सन् 78 तक यह क्रम चलेगा। हर वर्ष एक खण्ड सहस्र कुण्डी यज्ञ- अश्वमेध- सम्पन्न होगा। इसके लिए समस्त शाखाओं से पूछा गया है कि क्या इस प्रकार का संकट उठाने में समर्थ है? बात केवल साहस-भर की है। सफलता तो अज्ञात शक्ति दिलायेगी। व्यक्ति बेचारा क्या कर सकता है। संकल्प पुरुषार्थ और साहस की परख हो रही है। जहाँ आत्मबल होगा वहाँ और सब कुछ ठीक हो जायेगा। 200 संकल्प माँगे गये हैं आधा है वे जल्दी ही प्राप्त हो जायेंगे।

यज्ञ 200 स्थानों पर हुआ करेंगे, पर उस महासंकल्प के मूल में गायत्री जप भी सम्मिलित रहेगा। यों लगभग 24 लाख व्यक्तियों को गायत्री की विधिवत दीक्षा दी गई है। पर इस अभियान में केवल 24 हजार साधकों को निमन्त्रित किया गया है। जो दस वर्ष तक युग-निर्माण अभियान के भागीदार की हैसियत से 10 वर्ष तक एक माला गायत्री महामन्त्र का जप नित्य करते रहने का संकल्प ले सकें ऐसे 24 हजार व्यक्ति ही आमन्त्रित किये गये हैं। आशा है यह संख्या भी जल्दी ही पूरी हो जायेगी। इसमें कोई बीज मन्त्र नहीं लगाना है। साधारण गायत्री मन्त्र जब भी सुविधा हो- दिन में किसी भी समय एक माला जप कर सकते हैं। जब के बाद “यह एक माला युग-निर्माण अभियान की सफलता के लिए है।” ऐसा उच्चारण कर देना चाहिये। एक माला जप करने के बाद युग-निर्माण सत्संकल्प का एक पाठ अवश्य किया जाना चाहिए ताकि जप करने वाले को यह पता चलता रहे कि आखिर यह ‘युग-निमार्ण योजना’ है क्या जिसके लिए वे जप साधना कर रहे हैं। जिस दिन स्नान न बन पड़े उस दिन आपत्ति धर्म के रूप में मानसिक जप करके भी काम चलाया जा सकता है। इस प्रकार यह भागीदारी हर नर-नारी- बाल-वृद्ध के लिए अति सरल बना दी गई है।

24 हजार भागीदारी द्वारा एक माला नित्य जप करने से प्रति दिन 24 लाख जप होते हैं। हर दिन एक 24 लक्ष अनुष्ठान ‘अखण्ड-ज्योति परिवार’ के सदस्यगण करेंगे। यह क्रम दस वर्ष तक जारी रहेगा। यह सामूहिक जप इतना प्रखर- इतना प्रबल और इतना समर्थ हो जायेगा कि इसके फलस्वरूप अन्तरिक्ष में युग बदल देने वाली अदृश्य शक्ति पर्याप्त मात्रा में आविर्भूत होगी और विश्व-मंगल के लिए आशाजनक परिणाम उत्पन्न करेगी।

कहना न होगा कि व्यक्तिगत पृथक-पृथक प्रयासों की अपेक्षा- सामूहिक सम्मिलित प्रयत्नों का परिणाम- अत्यधिक मात्रा में होता है। अलग-अलग मन के कुछ महत्व नहीं रखते पर एक सूत्र में पिरोई हुई माला में बँध कर वे गौरवान्वित होते हैं। अलग-अलग रह कर सीकें वह काम नहीं कर सकतीं जो एक बुहारी में बँधने पर करती हैं। अलग बूँदों का क्या महत्व, पर मिल जाने पर वे एक विशाल जलाशय के रूप में परिलक्षित होती हैं। सम्मिलन से जो सामूहिक शक्ति उत्पन्न होती है उसका उतना ही बड़ा लाभ हर इकाई को मिलता है। जिन बूँदों से मिल कर समुद्र बना है, इकट्ठी हो जाने के बाद उनमें से हर बूँद परिपूर्ण समुद्र का गौरव लाभ करती है। कुटुम्ब के हर सदस्य को परिवार की सम्मिलित शक्ति का पूरा-पूरा लाभ मिलता है। इसी प्रकार इन 24 हजार भागीदारों का एक आध्यात्मिक सम्मिलित कुटुम्ब बनेगा और उसकी सम्मिलित शक्ति का लाभ हर सदस्य उठा सकेगा। उससे उसका आत्मबल भी बढ़ेगा और समूहगत नव-निर्माण प्रक्रिया को भी सफलता मिलेगी।

सक्रिय सदस्य दिसम्बर-जनवरी में यह प्रयत्न करें कि अपने क्षेत्र में जो भी गायत्री उपासक हों उन तक यह सन्देश पहुँचा दें और जो एक माला जप के भागीदार होना चाहें, उनके पूरे पते तथा हस्ताक्षर एक ही कागज पर इकट्ठे कर लें और उस संग्रह को बसन्त पंचमी को श्रद्धांजलि के रूप में मथुरा भेज दें। हर सक्रिय सदस्य अपने संपर्क परिवार में से 10 भागीदार संग्रह करले और आगे उनकी नियमितता की देख-भाल रखे रहने का भी भार अपने ऊपर रखे। जो टूट जाय उनके स्थान पर नये उत्पन्न करता रहे- तो 2400 सक्रिय गायत्री उपासकों द्वारा 2400 भागीदार स्थिर रखे जा सकते हैं।

24000 सक्रिय कार्यकर्ता इस प्रतिदिन 24 लक्ष अनुष्ठान के जप यज्ञ में यजमान- अध्वर्यु- माने जायेंगे। उनके जिम्मे इस भागीदार उत्पन्न करके और उनकी देखभाल रखने की- टूटने पर नये उत्पन्न करने की जिम्मेदारी रहेगी। इस प्रकार 24 लक्ष जप प्रतिदिन बड़ी सरलता और व्यवस्थापूर्वक सम्पन्न होता रहेगा।

‘अखण्ड-ज्योति’ का प्रत्येक सदस्य अध्वर्यु भागीदार के रूप में इस जप अनुष्ठान में किसी न किसी भाँति भाग लेगा, ऐसी आशा है।


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