आगामी बसन्त पंचमी इस तरह मनायें

January 1968

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बसन्त पंचमी भगवती सरस्वती का जन्म दिन है। पुराणों में वर्णन है कि ज्ञान की अधिष्ठात्री वीणापाणि देवी शारदा माघ सुदी पंचमी को इस मर्त्य लोक में अवतरित हुईं। उन्होंने अज्ञानग्रस्त मानव को ज्ञान का प्रकाश दिया और उस नर-पशु की नीरस मनोभूमि में सरसता का, संगीत साहित्य कला का-संचार किया। इसी वरदान को पाकर वह स्नेह, सौंदर्य एवं उल्लास का रसास्वादन कर सकने में समर्थ हुआ। इन्हीं अनुभूतियों ने शिश्नोदर परायण कुत्सित जीवन में देवत्व की गरिमा को संजोया और इस धरती पर रहकर स्वर्गीय उपलब्धियों में आनन्द विभोर रहने की स्थिति प्राप्त कर सकने में समर्थ हुआ।

भगवती सरस्वती का यह जन्म दिन हर वर्ष जड़-चेतन प्रकृति में नवीन उत्साह और उल्लास का प्रस्फुरण करता है। इस पुण्य पर्व को बसंत ऋतु अपने परिधान से सँजोती है। चारों ओर फैली हुई पुष्पों की मनोरम दृश्यावली आँखों को हर्षातिरेक से भर देती है। खेतों में सरसों, मटर, अरहर, आदि की फसलें सुनहरी फूलों से भरी होती हैं। वृक्षों पर नये कोंपल आए हुए होते हैं और उन पर बौर फूला होता है। कोकिल-कूकती है, मोर बोलते हैं, पपीहा बोलते हैं, हर प्राणी में एक नया उल्लास भरा होता है। शरीराध्याय की भूमिका में अवस्थित प्राणियों के मनों में काम संचार होता है और वे प्रजनन प्रयोजन के इच्छुक होते हैं। भावनात्मक भूमिका में अवस्थित आत्माओं को प्रकाश की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा जागृत होती है और उनकी गतिविधियों में भी कर्म कौशल से भरी अभिनव थिरकन उत्पन्न होती है। माँ शारदा का जन्म दिन ऐसी ही दिव्य चेतना साथ लेकर हर वर्ष इस पृथ्वी पर आता है और प्रसुप्त अन्तःकरणों में चेतना की एक नई स्फुरणा जगा जाता है।

युग निर्माण योजना के पुण्य प्रयोजन का शुभारम्भ भी इसी पुनीत दिन से हुआ है। अब से लगभग 40 वर्ष पर्व हमारे सामान्य जीवन में एक दिव्य प्रेरणा इसी दिन अवतरित हुई। गुरुदेव ने इसी दिन दर्शन दिये, जीवन-दर्शन की दिशा मोड़ी, 24 गायत्री महापुरश्चरणों की तपश्चर्या का आरम्भ कराया, अखण्ड दीपक की स्थापना हुई। इस आरम्भ का उद्देश्य नवनिर्माण के उपयुक्त क्षमता उपार्जित करने की तैयारी मात्र था। किसी व्यक्तिगत प्रयोजन के लिए नहीं नवनिर्माण के पूर्ण भूमिका के रूप में ही। इस प्रकार एक आधार का शिलान्यास किया गया। वह बसन्त पंचमी यह आलोक लेकर न आई होती तो हमारा व्यक्तिगत जीवन अन्य साधारण व्यक्तियों की तरह पेट, परिवार का साधन जुटाते ऐसे ही समाप्त हो चला होता। अपना वास्तविक आध्यात्मिक जन्म दिन हम इसी पुण्य पर्व को मानते हैं। शरीर तो शायद अश्विन की किसी तिथि में जन्मा पर उस जन्म का क्या मूल्य? जिस दिन ने हमें प्रकाश पथ पर अग्रसर किया उसी को सदा हमने अपना जन्म दिन माना है। हमारे व्यक्तिगत भावनात्मक जीवन का ही नहीं यह उस मिशन का भी जन्म दिन है जो हमारे जीवन क्रम के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

अपने जीवन का हर महत्वपूर्ण कार्य बसन्त पंचमी के शुभ मुहूर्त से ही आरम्भ होता रहा है। ‘अखण्ड-ज्योति पत्रिका’ बसन्त पंचमी से आरम्भ हुई। इसलिए इसका जन्म दिन भी यही है। गायत्री तपोभूमि का शिलान्यास बसंत पंचमी के दिन किया गया। शतकुंडी गायत्री महायज्ञ के लिए एक वर्ष तक चलने वाली यज्ञ श्रृंखला इसी दिन से आरंभ हुई। सहस्र कुण्डी गायत्री महायज्ञ का संकल्प इसी दिन किया गया। गायत्री साहित्य का लेखन कार्य इसी वर्ष से शुरू किया था। वेदों का भाष्य बसन्त पंचमी से हुआ। साधना मार्ग की कुछ विशेष उपलब्धियाँ जिनका वर्णन करना उचित न होगा हमें सदा बसन्त पंचमी को ही होती रही हैं। इस प्रकार यह पुण्य पर्व हमारे छोटे से जीवन का प्रकाश स्तम्भ रहा है। समस्त विश्व के लिए- चर-अचर के लिए तो वह अनादि काल से परम मंगलकार्य, उल्लास के अवतरण का प्रतीक बना ही चला आ रहा है।

युग-निर्माण योजना का कार्य हमारी साधना आरम्भ के दिन से ही चल रहा है। उसका क्रमिक विकास होता चला आया है। यह जन्म इसी प्रयोजन के लिए मिला है। जो श्वास शेष हैं वह भी इसी कार्य में समाप्त होंगी। 6॥ वर्ष पूर्व अज्ञात वास से लौटने पर तो विशेष रूप से यही काम कन्धे पर आया है। यों 16 वर्ष पूर्व गायत्री प्रचार के लिए भी हमें इसी दिन नवनिर्माण की आध्यात्मिक चेतना का शुभारम्भ करने के लिए ही संलग्न किया गया था। गायत्री परिवार इसी प्रयोजन के लिए था। अब उसका विकसित रूप युग-निर्माण के रूप में है। 3॥ वर्ष से अपने ठीक क्रम से सफलतापूर्वक वह आन्दोलन चलता आ रहा है। इन दिनों उसी की प्रथम पंचवर्षीय योजना चल रही है। क्रमशः इस आँदोलन का भारी विस्तार होना है, उसे विश्वव्यापी स्वरूप धारण करना है।

इसी संदर्भ में इस बसन्त पंचमी से पूरी शक्ति लगाकर पूर्ण सुगठित एवं सुव्यवस्थित गति प्रदान करने का अवसर आ पहुँचा। छुटपुट रीति से अब तक बहुत कुछ होता रहा है। बहुत कुछ हो चुका। पर अब परिवार के हर सदस्य को अपनी पूरी तत्परता के साथ इस दिशा में कदम बढ़ाना है। इसके लिए एक सामूहिक संकल्प- सामूहिक अभियान इसी दिन से आरम्भ कर रहे हैं। कोई कर रहा है कोई नहीं कर रहा है, कोई सुन रहा है कोई नहीं सुन रहा है, कोई ध्यान दे रहा है कोई नहीं दे रहा है, अब यह स्थिति नहीं चलेगी। अब एक गुट होकर काम करना ही एकमात्र मार्ग रह गया है। अब सजग और सतर्क होकर तत्परतापूर्वक प्रबुद्ध आत्माओं के कन्धों पर आये उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए कन्धे से कन्धा और पैर से पैर मिलाकर आगे बढ़ने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं। जागरूक आत्माओं का परिवार अब और अधिक देर तक अवसाद और अपेक्षा का कलंक नहीं लगाये रह सकता।

आगामी 3 फरवरी 68 को आने वाली बसंत पंचमी एक सुनिश्चित कार्यपद्धति को कार्यान्वित करने की प्रक्रिया का सतत् शुभारम्भ होने का ऐतिहासिक उत्सव बनेगी। यों उस दिन मथुरा में कोई बड़ा दृश्य उत्सव आयोजन नहीं होने जा रहा है। पर उस दिन एक अदृश्य आयोजन बहुत बड़ा होगा। उसका विवरण अभी तो नहीं पर समयानुसार प्रकट होगा।

‘अखण्ड-ज्योति परिवार’ के हर सदस्य को उस दिन साधारण काम-काज की छुट्टी रखनी चाहिये और वह पूरा दिन ‘युग-निर्माण’ की प्रेरक प्रवृत्तियों को गतिशील बनाने के लिए एक प्रेरक आयोजन की व्यवस्था में बिताना चाहिए। अपने परिवार के जहाँ जितने व्यक्ति हैं वे उस दिन एक स्थान पर एकत्रित हो सकें, इसकी तैयारी यह अंक मिलते ही आरम्भ कर देनी चाहिये। सभी से मिल लेना चाहिये और अनुरोधपूर्वक आयोजन में सम्मिलित होने का अनुरोध करना चाहिये। समय ऐसा रखा जाय जो सभी के लिए अनुकूल हो। उस दिन सभी परिजन संघबद्ध हो जाँय। जहाँ भी ‘अखण्ड-ज्योति’ के सदस्य हैं वहाँ एक ‘युग-निर्माण शाखा’ गठित करली जाय। अधिकाँश स्थानों पर बहुत-बहुत सदस्य हैं, जहाँ कम हों वहाँ प्रयत्नपूर्वक उस अवधि में बनाए जा सकते हैं। तक भी उत्साही कार्यकर्ता यदि खड़ा हो जाय तो अपने यहाँ पाँच सदस्य बनाने और उन्हें संगठित करने के लिए-व्यवस्था कर सकता है। एक कार्यवाहक चुनना है, शाखा कार्यालय का स्थान नियत करना है, पुस्तकालय जमाना है। यह कार्य बसन्त पंचमी से पूर्ण भी किये जा सकते हैं और उन सुगठित शाखा का उस दिन उत्सव रखा जा सकता है। जहाँ इतना न बन पड़े वहाँ इतना तो करना ही चाहिए कि उस दिन सब सदस्य इकट्ठे होकर एक शाखा स्थापित कर लें। गायत्री महामन्त्र के 24 अक्षर हैं। इस बसन्त पंचमी पर आशा की जायेगी कि न्यूनतम 2400 शाखाओं की स्थापना की सूचना तो उपलब्ध हो ही जायेगी। उत्साही कार्यकर्ताओं का थोड़ा-सा प्रयत्न इस प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति बड़ी सरलता के साथ कर सकता है।

संघबद्ध होकर हम वैयक्तिक आत्म निर्माण और सामूहिक युग-निर्माण के कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिए पूरी तत्परता के साथ प्रयत्न आरम्भ कर दें। वैयक्तिक पंचसूत्री आत्म-कल्याण साधनाओं की विस्तृत चर्चा दिसम्बर अंक में की जा चुकी है। उसी का साराँश इस अंक के प्रथम लेख में है। प्रातः और सायंकाल का आत्मचिंतन, सद्ज्ञान साधना, जन्मधारण की प्रेरणा का स्मरण, अविवेक से संघर्ष और उपासना में भावना का समावेश, यह जीवन साधना की पद्धति हममें से हर एक के जीवन क्रम का अंग बने इसके लिए हर सदस्य से व्यक्तिगत रूप से भली-भाँति विचार विनमय किया जाय और इस आत्मोत्कर्ष के पुनीत कार्य का उसकी रुचि को अभिवर्धन किया जाय।

पाँच कार्यक्रम भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। युग-निर्माण आँदोलन में सदस्यों के परिवार के लोग भी किसी न किसी रूप में सम्मिलित रहें। इसके लिए हमें एक माला गायत्री मन्त्र का जप तथा सत्संकल्प का एक पाठ करने के लिए तैयार करना चाहिए। अपने प्रभाव में जो और लोग आ सकें, उन नर-नारी, बाल-वृद्धों को उपरोक्त साधना क्रम के आधार पर नवनिर्माण के पुण्य परमार्थ में सम्मिलित रहने के लिए प्रयत्न किया जाय तो हर जगह बहुत धर्म प्रेमी लोग आसानी से तैयार हो सकते हैं। 24 लक्ष जप का एक पुरश्चरण नित्य होने का संकल्प है। उसकी पूर्ति सबके सम्मिलित प्रयत्नों से ही होगी। इसलिए हर जगह- हर सक्रिय कार्यकर्ता- हर शाखा संगठन- इसके लिए प्रयत्न करे और अपनी देख-रेख में जिनका जप आरम्भ कराया हो उनके पूरे पते समेत लिस्ट मथुरा भेजें।

एक हजार कुण्डों के गायत्री यज्ञ हर साल करने हैं। 5 कुण्डों के 200 आयोजन में यह बँटा रहेगा। पाँच कुण्डों के आयोजन कहीं भी-जहाँ सक्रियता थोड़ी भी हो बड़ी आसानी से हो सकते हैं। अपने इतने बड़े परिवार में ऐसे 200 व्यक्तियों की- शाखाओं की- तो अपेक्षा की ही जायेगी। संकल्प आने पर उनके लिए तीन दिन की एक निश्चित तिथि नियत कर दी जायेगी, जिस पर 10 वर्ष तक उनका आयोजन हर वर्ष होता रहे और एक श्रृंखला में आयोजन रहने से हमारे प्रतिनिधि भी उन आयोजनों में संदेश एवं आशीर्वाद लेकर पहुँचते रहे।

इस बसन्त पंचमी को हर जगह एक छोटा यज्ञ आयोजन तथा उत्सव होना चाहिए। कई व्यक्ति हमारा जन्म दिन पूछते हैं और उस अवसर पर अपनी श्रद्धा भावना की अभिव्यक्ति करना चाहते हैं। उन्हें बसंत पंचमी नोट कर लेनी चाहिए। और स्मरण रखना चाहिए कि 57 दीपक जलाकर या 57 पुष्प चढ़ाकर यह श्रद्धाँजलि पूर्ण नहीं की जा सकेगी। उसमें श्रम समय और श्रद्धा का समावेश भी होना चाहिए। हमारे मिशन की पूर्ति के लिए जो जितना परिश्रम करता है वह उतना ही अधिक हमारा आत्मीय एवं शुभचिन्तक है। दण्डवत, प्रमाण, मानता आदि की नहीं, हमारी आत्मा को श्रम और श्रद्धा की भूख है। नवनिर्माण आयोजनों में अपना योगदान देकर ही कोई अपनी सच्ची सद्भावना हमारे प्रति व्यक्त कर सकता है। उसी से हमारी आँतरिक भूख और प्यास बुझती है। अच्छा हो इस बसन्त पंचमी के आयोजन सर्वत्र मनाये जायें और उनमें नवनिर्माण की वैयक्तिक और सामूहिक पंचसूत्री योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए कुछ साहसपूर्ण निश्चय किये जाय।

गाँवों में युग-निर्माण साहित्य के विक्रय केन्द्र स्थापित किये जा सकते हैं। हर शाखा सदस्य के जन्मोत्सव मनाने की योजना पूरी साल भर के लिए इसी अवसर पर बना ली जानी चाहिए और उन तिथियों की एक लिस्ट मथुरा भी भेज दी जानी चाहिए। शतसूत्री कार्यक्रमों में से ही कहीं कुछ सम्भव हो तो उसकी व्यवस्था भी बनानी चाहिए। हमारे द्वारा प्रशिक्षण का लाभ लेने और हमें वह सौभाग्य सुअवसर देने के लिए हर सदस्य से अनुरोध है। हमारा बाहर जाना अब कठिन है इसलिए सान्निध्य के लिए शिविरों में आते रहने को समय निकालना चाहिए। जो कार्यनिवृत्त हो चुके वे चातुर्मास की साधना और शिक्षा के लिए मथुरा आयें। हर घर से एक किशोर बालक एक वर्ष की औद्योगिक तथा जीवन-कला की शिक्षा के लिए भेजा जाय। इन शिक्षार्थियों के रूप में हमारी स्मृति जहाँ बनी रहेगी वहाँ सजीव स्मारक बने रहेंगे। एक वर्ष फेल होने जैसा जोखिम उठाकर हमें शिक्षार्थी किशोर हर घर से मिलने चाहिए।

यह भूलना नहीं चाहिए कि ‘अखण्ड-ज्योति’ -हमारी वाणी है। उसी के माध्यम से इतना बड़ा अभियान आँदोलन चलाया जा रहा है। जो उसे पढ़ते हैं वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते और हलचल करते हैं। अस्तु जिन्हें नवनिर्माण में आस्था है-उन्हें ‘अखण्ड-ज्योति’ और ‘युग-निर्माण योजना’ पत्रिकाओं के सदस्य बनाने का पूरा प्रयत्न करना चाहिये। इसलिए अपने साथियों और परिजनों पर आवश्यक प्रभाव एवं दबाव भी डालना चाहिए। पत्रिकाओं के पाठक घटने, बढ़ने के साथ आँदोलन का स्वरूप घटना, बढ़ना सुनिश्चित रूप से जुड़ा हुआ है। इसलिए यदि इस अभियान से सहानुभूति न हो तो पत्रिकाओं के ग्राहकों के संबंध में उपेक्षा बरतनी, अन्यथा जड़ सींचने की तरह सदस्य बढ़ने का भरपूर उत्साह और आग्रह के साथ प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए यह जनवरी का महीन ही सबसे उपयुक्त समय है। क्योंकि पत्रिकाओं का वर्ष यहीं से आरम्भ होता है। बीच में भी ग्राहक बनते तो हैं पद उनसे हिसाब सम्बन्धी सदा झंझट ही बना रहता है।

यह बसन्त पंचमी अपने ढंग की अनोखी है। दस अश्वमेधों के समान दस-खंड सहस्रकुंडी यज्ञों का हर वर्ष तक हर दिन 24 लाख जप होने का अभूतपूर्व धर्मानुष्ठान इसी दिन से आरम्भ होने जा रहा है। पाँच वैयक्तिक और पाँच सामूहिक साधना क्रम भी इस दिन हर एक को कार्यान्वित करने हैं। इसके लिए आवश्यक उत्साह हर परिजन को मिले, ऐसी प्रार्थना उन भगवती सरस्वती से है, जिनका इस बसन्त पंचमी को पुनीत जन्मदिन है। वीणापाणि की महाशक्ति हममें से हर एक को, एक दूसरे से बढ़-चढ़ कर त्याग बलिदान करने की स्फूर्ति, भावना और हिम्मत प्रदान करे ऐसी प्रार्थना है।


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