चीन के दुष्टतापूर्ण आक्रमण के कारण प्रत्येक न्यायप्रिय व्यक्ति में क्षोभ और रोषपूर्ण प्रतिक्रिया हुई है। यह हमारी जातीय सजीवता का चिह्न है। जो आन्तरिक दृष्टि से सजीव होते हैं उन्हें बाहर की कोई शक्ति मार नहीं सकती।
असत्य सदा हारता है। अन्याय की अन्त में पराजय ही होती है। इतिहास साक्षी है कि अनेकों नृशंस आततायी अपने−अपने समय में कुछ दिनों के लिए आतंक उत्पन्न कर सके हैं पर अन्त में उनका पाप और अन्याय उन्हें ही खा गया है। दूसरे देशों पर आधिपत्य जमाने और शोषण करने की साम्राज्यवादी नीति में चीन सफल न हो सकेगा। हिटलर, सिकन्दर, नेपोलियन आदि ही कहाँ सफल हुए थे?
अन्याय और असत्य के विरुद्ध रोष उत्पन्न होना और उसके प्रतिरोध के लिए जूझ जाने की जो भावना राष्ट्र में उत्पन्न हुई है, उसे विरोधी की निन्दा करने या अपनों की गलतियाँ ढूँढ़ते रहने या आलोचना प्रत्यालोचना में समाप्त नहीं करना चाहिए वरन् इसका उपयोग रचनात्मक दिशा में किया जाना चाहिए। प्राचीन काल में युद्ध केवल मोर्चे पर गये हुए सैनिक लड़ते थे आज प्रत्येक नागरिक को लड़ना पड़ता है। प्रत्येक देश भक्त भारतीय को आज अपने को सैनिक समझना चाहिए और उन मोर्चों पर लड़ना चाहिए जो उसके सामने ही खुले पड़े हैं।
युद्ध मोर्चे पर हर आदमी नहीं लड़ सकता पर सुरक्षा के आन्तरिक मोर्चों पर लड़ने के लिए हर नागरिक को अवसर प्राप्त है। जो अपने को जिस मोर्चे के उपयुक्त समझे वह उसी पर देशभक्ति, त्याग, बलिदान, दृढ़ता और साहस के साथ लड़े जिस प्रकार कि कठिन मोर्चे पर जान हथेली पर रखे हुए सैनिक लड़ रहे हैं।
एकता किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होती है। सब प्रकार के मतभेदों को इस समय उठा कर ताक पर रख देना चाहिए और राष्ट्र रक्षा के कार्यों में हममें से हर एक को एक मन होकर जुट जाना चाहिए। परस्पर विरोध उत्पन्न करने वाली चर्चाऐं इस समय बन्द रहनी चाहिएं।
युवा पुरुषों को सेना में भर्ती होना चाहिए। मोर्चे पर जाने वाली सेना की तरह ही नागरिक रक्षा के लिए बन रही आन्तरिक रक्षा सेना की भी आवश्यकता है। सैनिक शिक्षण की सुविधाऐं जिन्हें प्राप्त हो सकें उसे सीखना चाहिए और व्यक्ति गत आवश्यक कार्यों की तरह राष्ट्र रक्षा के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।
रक्षा कोष में उदारता पूर्वक दान देना चाहिए। सरकारी और अर्धसरकारी प्रयत्न जहाँ चल रहे हैं वहाँ उनमें सहयोग दिया जाय। अन्यथा मनीआर्डर से “राष्ट्र रक्षा कोष दिल्ली” के पते पर अपनी सहायता भेज देनी चाहिए। ऐसे दान पर मनीआर्डर फीस भी नहीं देनी पड़ती। ‘अखण्ड ज्योति’ या ‛गायत्री परिवारों’ के नाम पर अलग से इस प्रकार का संग्रह कार्य कहीं भी न किया जाय। अपने परिवार का प्रत्येक व्यक्ति सप्ताह में एक दिन उपवास रखा करे और उस अन्न की बचत जब तक युद्ध चलता रहे तब तक रक्षा कोष में भेजा करे। इससे अन्न की कमी पूरी होने में भी सुविधा होगी और राष्ट्र को एक बड़ी कठिनाई के हल करने में सहायता मिलेगी।
जेवर पहनना हर दृष्टि से अहितकर है। सोने से नहीं प्रतिभा और चरित्र से व्यक्तित्व शोभायमान होते हैं। आज हथियारों और मशीनों के लिए विदेशों को लोभ और मोह न करके जिनके पास वह मौजूद है वे राष्ट्र रक्षा के लिए सरकारी कोष में जमा करें।
जिनके शरीर स्वस्थ हैं वे मोर्चे पर घायल सैनिकों के लिए अपना रक्त दें। इस प्रकार थोड़ा रक्त देने में स्वास्थ्य की हानि नहीं होती।
सब लोग अपने−अपने कामों में अधिक श्रम करे और उत्पादन बढ़ावें। किसान अन्न और शाक की पैदावार बढ़ाने को बन्दूक बनाने के समान ही महत्वपूर्ण समझें। जो वस्तुऐं विदेशों से मंगानी पड़ती हैं उनके लिए देश जल्दी स्वावलम्बी हो जाय इसके लिए श्रमिकों दूने उत्साह से काम करना चाहिए। अपने−अपने उत्पादन कार्यों में सभी को तेजी लानी चाहिए और आराम छोड़कर अधिक श्रम करने की नीति अपनानी चाहिए।
अपराधी और असामाजिक तत्व ऐसे संकट काल में आमतौर से सक्रिय होते हैं। उन्हें दबाने के लिए पूरी सावधानी बरती जाय। चोर, लुटेरे, मुनाफाखोर, सट्टेबाज, जासूस, गुण्डे जैसे लोगों को सिर उठाने न देने में सरकार का सहयोग लेना और देना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए एक विशेष अध्यादेश भी बन चुका है।
फिजूलखर्ची बिलकुल न की जाय। बचत बढ़ानी चाहिए और संचित पैसा बैंक में जमा करना चाहिए ताकि उस पैसे से ब्याज के लाभ के अतिरिक्त राष्ट्र की आर्थिक उन्नति में भी सहायता मिले।
हममें से प्रत्येक को गायत्री महामंत्र की एक माला इस धर्म युद्ध की सफलता के लिए नियत साधना से अतिरिक्त जपते रहना चाहिए। सामूहिक आर्थिक आयोजनों और सत्संगों में पाँच मिनट मौन रहकर विजय के लिए ईश्वर प्रार्थना की जाया करे। इस उद्देश्य के लिए सामूहिक अनुष्ठान यज्ञ आदि भी किये जा सकते हैं। इनमें मितव्ययिता का पूरा ध्यान रखा जाय।
हमला उग्र रूप से ता. 20 अक्टूबर को हुआ था। इसलिए हर महीने की ता. 20 को रक्षा दिवस मनाया जाय। उस दिन सामूहिक आयोजनों के द्वारा जनता की कर्तव्य भावनाएँ जागृत की जायँ और प्रार्थना का भी कार्यक्रम रहा करे।