सत्−संकल्पमयी प्रार्थना (kavita)

December 1962

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दयामय! हममें वह बल हो! कि जिससे धन्य धरातल हो! !

हमारे मन में भी बल हो, हमारे तन में भी बल हो; हमारे धन में भी बल हो; हमारे प्रण में भी बल हो, हमारा उर अति निर्मल हो! दयामय! हममें वह बल हो!! कि जिससे—

न हममें मान−मोह−भय हो, न हममें राग−द्वेष−भय हो; न हममें स्वार्थपूर्ण लय हो, न हममें रंचक अविनय हो; न हममें कभी कपट−छल हो! दयामय! हममें वह बल हो!! कि जिससे—

प्रेममय सारा जीवन हो, परम उत्साह भरा मन हो; हर्ष से विकसित आनन हो, सदा परहित में रत तन हो; न अपना लक्ष्य चलाचल हो! दयामय! हममें वह बल हो!! कि जिससे—

सुमति का संचित सागर हो, भक्ति का उदय सुधाकर हो; कष्ट से हृदय न कातर हो, सभी में प्रेम बराबर हो; हमारा उन्नतिमय फल हो! दयामय! हममें वह बल हो!! कि जिससे—


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