नई प्रबुद्ध पीढ़ी का अवतरण

December 1962

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युग निर्माण के लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जो जन्मजात रूप से आवश्यक आत्मबल लेकर आये हों। शिक्षा और उपदेशों से सुधार तो होता है पर यदि व्यक्ति जन्मजात रूप से हीन संस्कार अपने साथ लाया है तो उस पर सुधार, शिक्षा का बहुत थोड़ा असर होगा।

प्रबुद्ध व्यक्तियों का निर्माण माता−पिता के सुसंस्कारों से होता है। अर्जुन और द्रौपदी के उच्च गुणों से तथा गर्भकाल में समुचित शिक्षण प्राप्त करने से अभिमन्यु ऐसे संस्कार लेकर जन्मा था कि सोलह वर्ष की आयु में ही चक्र-व्यूह बेधन जैसे कठिन कार्य के लिए कटिबद्ध हो सका। प्राचीन काल में गर्भाधान को एक परम पवित्र संस्कार माना जाता था। उसकी तैयारी के लिए युवक-युवती चिरकाली शिक्षा, साधना करके अपने को इस योग्य बनाते थे कि उनके संयुक्त प्रयत्न से सुसंस्कारी संतति का अवतरण हो सके। इसी आधार पर यह देश नर रत्नों की खान था, इसी कारण यहाँ घर−घर में महापुरुष पैदा होते थे। खेद की बात है कि आज यह प्रक्रिया बन्द हो गई। अविचारी माता-पिता कुत्सित वासना से प्रेरित होकर इन्द्रिय तृप्ति के लिए मिलते हैं तो उसी लक्ष के अनुरूप निम्न स्तर की मनोभूमि लेकर संतान उत्पन्न होती है, जिसका सुधार शिक्षा, उपदेशों से भी उतना नहीं हो पाता जितना होना चाहिए। आज का जन समाज प्रायः इसी प्रकार का हीन संस्कारी उत्पादन है। युग निर्माण के लिए इससे काम न चलेगा। वह उद्देश्य सुसंस्कारी प्रबुद्ध नई पीढ़ी से संभव होगा।

युग निर्माण योजना का प्रसार किशोर और किशोरियों में अधिकाधिक किया जाना चाहिए ताकि वे एक ही लक्ष, आदर्श और सिद्धान्तों को हृदयंगम किये हुए बनें। आत्मसुधार, आत्मविकास और आत्म कल्याण में लगे हुए किशोर-किशोरी कई वर्षों तक अपना जीवन साधनामय बना कर जब विवाह बन्धन में बन्धेंगे और प्रबुद्ध नई पीढ़ी के उत्पादन का ध्यान रखेंगे तो अर्जुन द्रौपदी के सम्पर्क से उत्पन्न अभिमन्यु की तरह घर−घर में सुसंस्कारी महापुरुष जन्मेंगे। उनके जन्मजात सुसंस्कार थोड़े−से शिक्षण से ही खराद किये हुए हीरे की तरह दमकने लगेंगे।

युग निर्माण विचारधारा के युवक−युवतियों को विवाह सूत्र में बँधवाने की हमारी विशेष अभिरुचि है। यह युग निर्माण योजना का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस में दहेज विरोधी आन्दोलन भी सन्निहित है। भाषणों, लेखों और प्रस्तावों की मार खाकर भी दहेज का असुर मरता नहीं है। रक्त बीज की तरह वह चोट खाकर और भी अधिक विकराल बनता चला जा रहा है। इसका अन्त ऐसे होगा कि युग निर्माण योजना के सदस्य बच्चे यह प्रतिज्ञा करेंगे कि वे विचारशील साथी से ही विवाह करेंगे। दहेज और विवाहोन्माद में होने वाले भारी अपव्यय को हटाकर सरल और बिना खर्च की विधि से विवाह करेंगे। यदि अभिभावक इस निश्चय को मान्यता न देंगे तो वे आजीवन कुमार या कुमारी ही रहकर पवित्र जीवन व्यतीत करेंगे।

उपजातियाँ अच्छे वरों को अच्छी कन्याऐं और अच्छी कन्याओं को अच्छे वर मिलने में भारी बाधा उत्पन्न करती हैं। उतने सीमित क्षेत्र में ढूँढ़ खोज का उचित अवसर नहीं मिल पाता इसलिए सनातन शास्त्र मर्यादा के अनुसार मुख्य जातियों को ही मान्यता मिले। उपजातियों की उपेक्षा की जाय। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, इन चार ही वर्णों की चर्चा धर्म ग्रन्थों में है। इन चार वर्ण के अन्तर्गत उपजातियों की परवा किये बिना यदि विवाह-शादी होने लगें तो उसमें धर्म एवं शास्त्र की मर्यादाओं का तो रत्ती भर भी उल्लंघन नहीं होता पर सुविधा बहुत बढ़ जाती है। दहेज एवं विवाह की धूम-धाम का त्याग करने के साथ ही यदि उपजातियों का जंजाल हटा दिया जायेगा तो उचित जोड़े ढूँढ़ने की समस्या बहुत ही सरल हो जायगी और ऐसे दाम्पत्य जीवनों का आविर्भाव होगा जो अपने परिवारों को स्वर्गीय सुख-शान्ति से ओत-प्रोत करते हुए संस्कारवान सुसंतति को जन्म देंगे, जिससे युग निर्माण का उद्देश्य पूर्ण हो सके। समाज सुधार और आत्म कल्याण के दोनों ही उद्देश्य इस योजना से पूरे हो सकेंगे।

ऐसे संस्कारवान बालकों की शिक्षा के लिए नालन्दा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों की आवश्यकता होगी जहाँ का प्रत्येक पाठ, प्रत्येक आचरण, प्रत्येक शिक्षण महामानव बनाने वाला हो। ऐसे विश्वविद्यालय बनाने और चलाने के लिए संभवतः हम इस शरीर से जिन्दा न रहेंगे पर उसकी योजना तो स्वजनों के मस्तिष्क में छोड़ ही जानी होगी। युग निर्माण कार्य महान है उसके लिए महान योजनाऐं प्रस्तुत करनी होंगी। नई पीढ़ी का रचना कार्य प्रबुद्ध युवकों के धर्म विवाहों से आरम्भ होगा। इसे एक प्रचंड आन्दोलन का रूप हमें शीघ्र ही देना होगा।

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