युग निर्माण केन्द्र और उनका बीस सूत्री कार्यक्रम

December 1962

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जहाँ ‘अखण्ड ज्योति परिवार’ की युग−निर्माण योजना का कार्य आरम्भ हो चुका है, जहाँ दस सदस्य बन चुके हैं, वहाँ योजना का एक कार्यालय भी नियत हो जाना चाहिए। इसके लिए अपना निज का भवन बनाने या किराये पर मकान लेने की आवश्यकता नहीं, वरन् किसी उदार सज्जन का एक कमरा इस कार्य के लिए प्राप्त कर लेना चाहिए। बड़े नगरों में जहाँ कई शाखा संचालक नियुक्त किये गए हैं वहाँ भी एक ही केन्द्रीय कार्यालय रहे। शाखा संचालकों की गतिविधियों का विवरण रखने तथा संगठन का संचालन करने को एक केन्द्र पर्याप्त होगा। इन कार्यालयों का नाम ‘युग निर्माण केन्द्र’ रखा जाय।

इन केन्द्रों में समय−समय पर सदस्यगण एकत्रित होते रहा करें। महीने में एक सम्मेलन तो अवश्य ही हो जाया करे। पूर्णिमा या महीने का कोई एक दिन जिसमें सबको सुविधा रहे, नियत कर लेना चाहिए और वहाँ सबको उस दिन आवश्यक रूप से एकत्रित होकर स्थानीय कार्यक्रम के बारे में विचार-विनिमय करते रहना चाहिए। चुनाव व पदाधिकारी वाला झंझट हटा दिया गया है। एक व्यक्ति केन्द्र व्यवस्थापक रहना पर्याप्त है। सदस्यगण अपना परामर्श मथुरा भेजकर उसकी नियुक्ति भी करा लिया करें।

संगठन की महत्ता युग निर्माण की दृष्टि से सर्वोपरि है और संगठन कार्य परस्पर मिलते-जुलते रहने या सम्बन्ध बनाए रहने से ही संभव है। इसलिए युग निर्माण योजना के सदस्यों को परस्पर मिलते−जुलते रहने का कोई न कोई निमित्त ढूँढ़ ही लेना चाहिए। शाखा संचालक अपने संबद्ध सदस्यों के यहाँ जाकर उनसे अपनी घनिष्ठता तो बनाए ही रहेंगे। साथ ही सदस्यों का भी कर्तव्य है कि वे अपने विचार−बन्धुओं से प्रेम सम्बन्ध बढ़ाने की आवश्यकता समझें। निर्धारित गोष्ठियों में तो सम्मिलित होना ही चाहिए, साथ ही यह भी प्रयत्न रहे कि युग निर्माण केन्द्र सदस्यों के लिए एक उत्साह एवं आनन्दवर्धक मिलन स्थान भी रहे। क्लबों की रचना इसी उद्देश्य से की जाती है। विदेशों में जहाँ इकट्ठे होकर लोग अपना मनोरंजन करते हैं। उच्च-स्तरीय मनोरंजन के लिए युग निर्माण केन्द्र भी क्लबों का रूप धारण करें और वहाँ ऐसी गतिविधियाँ रहें जहाँ लोगों को आने बैठने और समय बिताने की स्वयं ही उत्कण्ठा रहने लगे।

इन केन्द्रों द्वारा स्थानीय आवश्यकता, स्थिति, सुविधा एवं साधनों के अनुरूप निम्न प्रकार के कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं। इनमें से जो कार्य सबसे सरल प्रतीत हो पहले उन्हें आरम्भ किया जाय, पीछे जैसी सुविधा बन पड़े, वैसी योजना बनाते चलना चाहिये। केन्द्रों के द्वारा जो कार्यक्रम चलाए जाने चाहिएं उनमें से कुछ इस प्रकार हो सकते हैं :—

1. केन्द्र में सदस्यों की सूची का एक रजिस्टर रहे। एक रजिस्टर कार्यवाही लिखने तथा एक हिसाब का रहना जरूरी है। यह स्थान साफ सुथरा प्रेरणाप्रद वाक्यों और चित्रों से सुसज्जित हो। दस-बीस व्यक्ति सुविधापूर्वक बैठकर वार्तालाप कर सकें ऐसे हवादार तथा उत्तम स्थान में यह केन्द्र करने में असुविधा न हो। कार्यालय पर ‘युग निर्माण केन्द्र’ का एक बोर्ड भी लगा देना चाहिए। कार्यालयों की स्थापना प्रथम आवश्यक कार्य है।

2. केन्द्र में एक पुस्तकालय का होना आवश्यक है, जहाँ केवल मात्र योजना के अनुरूप चुनी हुई पुस्तकें ही रहें। संख्या बढ़ाने के लिए निकम्मी किताबें की भरती बिलकुल भी न की जाय। सदस्यगण इन पुस्तकों का लाभ निरन्तर उठाते रहें ऐसा प्रयत्न करना चाहिये। दैनिक पत्र यहाँ अवश्य आने चाहिएं। आवश्यक खर्चे के लिए सदस्यगण परस्पर मिलजुलकर कुछ चंदा इकट्ठा कर लिया करें।

3. साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक नियत सत्संगों के अतिरिक्त समय−समय पर कुछ विशेष उत्सव आयोजन भी करते रहने चाहिए। ये उत्सव केन्द्र के स्थान पर ही हों यह आवश्यक नहीं। नगर में अन्यत्र जहाँ सुविधा हो ऐसे आयोजनों का प्रबन्ध किया जा सकता है। प्रतियोगिताऐं, खेलकूद अभियान, कवि सम्मेलन, अन्ताक्षरी, प्रदर्शनी आदि की व्यवस्था जहाँ बन पड़े उसका प्रबन्ध किया जाय।

(1) श्रावणी, (2) कृष्ण जन्माष्टमी, (3) विजया दशमी, (4) दिवाली, (5) वसन्त पंचमी, (6) शिवरात्रि, (7) होली, (8) रामनवमी, (9) गायत्री जयन्ती, (10) गुरुपूर्णिमा। यह दस त्यौहार एक आदर्श सामूहिक आयोजन के रूप में मनाए जाया करें। प्रभात फेरी और जुलूसों की व्यवस्था किया करें। इनके मनाने की पद्धति एवं उपयोगिता के सम्बन्ध में ‘अखण्ड ज्योति’ के अगले अंकों में प्रकाश डालेंगे।

4. आश्विन और चैत्र की नवरात्रियों में सामूहिक साधना समारोह मनाये जाया करें। अन्तिम दिन सार्वजनिक हवन समारोह हुआ करें। प्रत्येक समारोह के बाद युग निर्माण संकल्प को एक पढ़े सब दुहरावें वाला कार्यक्रम अवश्य चलना चाहिए।

5. केन्द्र द्वारा शिक्षा की कोई न कोई व्यवस्थाऐं चलानी चाहिये। रात्रि पाठशाला, प्रौढ़ पाठशाला, संगीत शिक्षा, बच्चों की अतिरिक्त शिक्षा स्वास्थ्य−शिक्षा, आसन, प्राणायाम, व्यायाम, संध्या प्रार्थना का शिक्षण, धार्मिक परीक्षाओं की तैयारी महिलाओं की विद्यापीठ की परीक्षाओं की तैयारी, हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षाऐं कलाकौशल, सिलाई आदि का शिक्षण आदि का कोई भी प्रबंध बन पड़े तो कुछ घण्टे की एक पाठशाला चल सकती है। पढ़ाने का कार्य सुशिक्षित सदस्य अवैतनिक रूप से किया करें। निःशुल्क चिकित्सालय भी जहाँ संभव हों केन्द्रों में रक्खे जाने चाहिए। शिक्षा के लिए आने वाले व्यक्तियों को युग निर्माण योजना की विचारधारा मिले इसका पूरा ध्यान रखा जाय।

6. सदस्यगण अपने नगर तथा आस-पास के नगरों में, आम रास्तों, सड़कों के किनारे बने मकानों की दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखने का कार्य भी करें।

7. ऐसी प्रार्थनाऐं, कविताऐं तथा गायन प्रसारित किये जायँ। स्कूलों में प्रार्थना के समय महिलाओं द्वारा विवाह आदि उत्सवों के समय, नित्य की प्रार्थनाओं में, वैयक्तिक रूप से गुनगुनाने में, सामूहिक आयोजनों में, कीर्तनों में गाये जा सकें। इन गायनों में युग निर्माण की भावनाऐं भरी हुई हों। हो सके तो ऐसे ग्रामोफोन रिकार्ड भी बनें जो उत्सवों में लाउडस्पीकरों पर बजा करें।

8. जिन लोगों ने कोई त्यागपूर्ण आदर्श एवं मानवता की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले सत्कर्म किये हों, उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया जाय। उन्हें मानपत्र, सम्मान, वस्त्र अथवा पदक प्रदान किए जायँ। इन अभिनंदनों में अधिकाधिक जनता इकट्ठी की जाय ताकि उस तरह के सत्कर्म करने का दूसरों को भी प्रोत्साहन मिले।

9. यदि ऐसे आदर्श, सत्कर्म करने वाले लोग अपने नगर से दूर रहते हों तो अपने संगठन की ओर से डाक द्वारा उनके लिए धन्यवाद, अभिनन्दन, एवं पदक आदि भेजकर प्रोत्साहन दिया जाय।

10. वयस्कों का भी जन्म दिन मनाने की प्रथा चलाई जाय। सदस्यों में से जिसका जन्मदिन जब हो तब अन्य सदस्य उसे पुष्पाञ्जलि भेंट करें और शुभ कामना सद्भावना प्रकट करते हुए आगे का जीवन अधिक महत्वपूर्ण बनाने की प्रेरणा करें।

11. संस्कार मनाने की विधि सदस्यगण सीख लें और प्रत्येक सदस्य के घर निम्न संस्कार समय−समय पर मनाये जाया करें। (1) पुँसवन (2) नामकरण (3) अन्न प्राशन (4) मुंडन (5) विद्यारम्भ (6) यज्ञोपवीत (7) विवाह (8) वानप्रस्थ (9) अन्त्येष्टि—इन नौ संस्कारों के कराये जाने की विधि-व्यवस्था इस प्रकार करनी चाहिए ताकि खर्च कम से कम पड़े और किसी को भार प्रतीत न हो।

12. केन्द्र में ऐसी वस्तुओं की विक्रय व्यवस्था भी रहे जो पूजा उपासना, गृह सज्जा, पठन-पाठन, प्रचार-प्रसार आदि के लिए आवश्यक है।

13. घरों में तुलसी के विरवा लगाने तथा जहाँ जगह हो वहाँ फूल लगाने का आन्दोलन चलाया जाय। महिलाओं को चक्की चलाने तथा भाप से भोजन पकाने की प्रेरणा दी जाय।

14. अपने बड़ों के पैर छूकर नित्य प्रणाम करने की प्रथा चलाई जाय। महिलाऐं अपने पति, सास, ससुर, जेठ, जिठानी आदि के पैर छूआ करें। पुरुष अपने माता−पिता, बड़े भाई, भावज, बहिन, बुआ, आदि के नित्य प्रातः चरण स्पर्श किया करें। बराबर वालों से हाथ जोड़कर अभिवादन करने की परम्परा चले।

15. गाली का पूर्ण बहिष्कार हो। छोटों को भी तू न कह कर तुम या आप कहा जाय, यह प्रथा चले।

16. नशेबाजी, माँसाहार, जुआ, व्यभिचार, बेईमानी, अशिष्टता, उच्छृंखलता, गन्दगी, आलस्य आदि बुराइयों की हानियाँ लोगों को समझाई जायँ और स्वार्थी, संकीर्ण दृष्टिकोण बदलकर उदार विशाल और विवेकपूर्ण भावनाएँ जन मानस में प्रवेश कराई जायँ।

17. फिजूलखर्ची, फैशनपरस्ती, अनमेल विवाह, बाल विवाह, दहेज, मृत्युभोज, अश्लील साहित्य चित्र एवं गायन, थाली में जूँठन छोड़ना जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन का शक्तिभर प्रयत्न किया जाय।

18. दहेज तथा विवाहों में होने वाली फिजूलखर्ची की हानियाँ समझाकर अभिभावकों तथा अविवाहित लड़के−लड़कियों से इस बुराई के उन्मूलन की प्रतिज्ञाएँ कराई जायँ। ऐसे प्रतिज्ञा पत्र और भी सभी बुराइयों के विरुद्ध केन्द्र में रहें और उनको लेकर टोलियाँ हस्ताक्षर आन्दोलन के लिए निकला करें।

19. पर्चे, पोस्टर, ट्रैक्ट, पैम्पलेट आदि के सहारे युग निर्माण योजना के अनुरूप जनमानस तैयार किया जाय। जब संगठित शक्ति पर्याप्त हो जाय तो अनैतिक एवं अवाँछनीय बुराइयों के विरुद्ध संघर्षात्मक एवं आन्दोलनात्मक मोर्चा भी खोल दिया जाय।

20. नित्य-नियमित उपासना करने तथा सितम्बर 62 की अखंड ज्योति में निर्धारित दस सूत्री कार्यक्रम को अपनाने के लिए प्रत्येक सदस्य पूरा−पूरा प्रयत्न करें इस ओर सबसे अधिक ध्यान दिया जाय।

यह बीस सूत्री कार्यक्रम युग निर्माण केन्द्रों के लिए है। उपरोक्त सभी बातें यहाँ संक्षिप्त सूत्र रूप में लिखी गई हैं। अगले अंकों में उन पर विस्तृत प्रकाश डाला जाता रहेगा।

शरीर रक्षा, आजीविका उपार्जन, मनोरंजन एवं आपत्तियों का निवारण करने के लिए जिस प्रकार दैनिक जीवन में हम प्रयत्न करते हैं, समय लगाते हैं, उसी युग निर्माण कार्यक्रम को भी जीवन की सार्थकता का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व समझें और उसके लिए नियमित रूप से कुछ समय निकालें तो कोई कारण नहीं कि आज सपने जैसी दीखने वाली युग निर्माण योजना कल साकार रूप धारण न कर ले। हम में से प्रत्येक को इसके लिए समय दान देना चाहिए। यह योजना धन दान पर नहीं समय दान पर निर्भर है। हमारी उदारता और महानता अब इसी कसौटी पर कसी जायगी।


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