गायत्री-प्रेमियों को आवश्यक सूचनाएँ

May 1958

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1. ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान कि पूर्णाहुति का समय तेजी से निकट आता चला जा रहा है समय कम और काम अधिक करना शेष है। इसलिए अब हमें अधिक तत्परता के साथ इस महान जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए संलग्न होना है। इस युग का यह अभूतपूर्व एवं महानतम यज्ञानुष्ठान हमारी चेष्टा की कड़ी परीक्षा लेने आ रहा है। असफलता और अनुत्तीर्णता हम सबके लिए एक बड़ी अशोभनीय बात होगी। इसका पूरी तरह स्मरण रखना चाहिए।

2. प्रतिदिन 24 करोड़ जप, 24 लाख हवन, 24 लाख मन्त्र लेखन, 4 लाख पाठ का क्रम अभी पूर्ण नहीं हो सका है। गायत्री परिवार के वर्तमान सदस्य अपनी साधना को इस मास से कम से कम एक चौथाई और बढ़ा दें। अब की अपेक्षा सवाई साधना करने लगें।

3. नये गायत्री उपासक बढ़ाना आवश्यक है। अभी गायत्री परिवार के सदस्य 60 हजार से कुछ ही ऊपर बढ़े हैं। और शाखाओं की संख्या 1600 के करीब हुई हैं। इस संख्या की तेजी से वृद्धि करनी है। पूर्णाहुति से पूर्व सदस्यों की संख्या 21 लाख और शाखाओं की संख्या हो जानी चाहिए। इसके लिए प्रत्येक शाखा को, प्रत्येक सदस्य को प्रयत्न करना चाहिए।

4. गर्मियों में अधिकाँश परिजनों को अवकाश रहेगा। स्कूलों की छुट्टियों हो जाती हैं। अध्यापक और छात्र इन दिनों खाली रहते हैं। किसान अपनी फसल काटकर निवृत्त हो जाते हैं, व्यापार का सीजन भी ढीला पड़ जाता है, इन दिनों साल के अन्य महीनों की अपेक्षा अधिकाँश लोगों को अधिक फुरसत रहती है। दिन भी कुछ लम्बे होते हैं। यह समय गायत्री प्रचार की धर्म-फेरी के लिए लगाया जाय। दो-दो, चार-चार की टोलियाँ बना कर परिजन निकलें और अपने समीपवर्ती क्षेत्र में घर-घर गायत्री माता का सन्देश पहुँचाने का प्रयत्न करें।

5. महायज्ञ के अवसर पर मथुरा आ सकने वाले होता, यजमान एवं संरक्षक बनाने का कार्य पूरे उत्साह के साथ करना चाहिए। जहाँ संभव हो वहाँ गायत्री परिवार की शाखाएं स्थापना करनी चाहिए। धर्म-फेरी करने वाले अपने सामने यह लक्ष रखें। (1) मन्त्र लिखने के लिए प्रेरणा देना, अपने क्षेत्र से 24 हजार, 21 लाख, 24 लक्ष या जितना बन पड़े मन्त्र लेखन कराने की योजना बनाना (2) जिनके यज्ञोपवीत नहीं हुए हैं उन्हें महायज्ञ होने अभूतपूर्व अवसर पर यज्ञोपवीत संस्कार कराने के लिए प्रेरणा देना (3) जो लोग नियमित गायत्री जप कर सकें उनसे जप और जो नियमित न कर सकें उनसे गायत्री चालीसा के पाठ कराना। (4) जिन्हें शुद्ध गायत्री मन्त्र याद न हो उनसे ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ यह पंचाक्षरी गायत्री कराना।

6. जिन गायत्री परिवार की शाखाओं में सत्संगों का क्रम अभी नहीं चलता हैं उन्हें यह कार्य तुरन्त आरम्भ कर देना चाहिए। धर्म भावनाओं को सुरक्षित रखने एवं संगठन को बढ़ाने की दृष्टि से साप्ताहिक सत्संगों की भारी आवश्यकता है। सत्संगों में यदि आर्थिक असुविधा के कारण हवन में कठिनाई हो और कोई पूजा उपकरण उपलब्ध न हो, तो गायत्री माता का प्रतीक जल पूर्ण कलश, और यज्ञपिता का प्रतीक घृत दीप रख कर उसकी पूजा कर लेनी चाहिए और परस्पर विचार विनिमय एवं प्रवचन आदि का क्रम आरम्भ कर देना चाहिए। सत्संगों में इन दिनों ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति की चर्चा अवश्य की जाय।

7. कई शाखायें मथुरा से बहुत दूर है, जाने आने का किराया भाड़ा बहुत लगता है। इन शाखाओं के सदस्य ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के होता यजमान बनने के तो बड़े इच्छुक हैं पर इतनी दूर का किराया खर्च करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों के लिए यह सोचा गया है कि मथुरा न आ सकने वाले होता यजमानों के उनके क्षेत्र में एक सामूहिक यज्ञ की योजना करेंगे और हम स्वयं आकर उनकी पूर्णाहुति उनके समीपवर्ती किसी यज्ञ में करावेंगे। मथुरा का यज्ञ हो जाने के बाद 24 या 101 हवन कुण्डों के क्षेत्रीय यज्ञ कराने का प्रयत्न करेंगे। ये यज्ञ भी ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के ही भाग माने जावेंगे। इस प्रकार मथुरा में 1000 कुण्डों का यज्ञ होने के बाद देश भर में 24 हजार कुण्डों के यज्ञ देश के कोने-कोने में कराने का आयोजन होगा। बहुत दूर क्षेत्र के यज्ञ में शामिल हो सकेंगे। इसलिए दूर आने की कठिनाई का विचार छोड़कर सभी धर्म प्रेमियों को गायत्री के प्रति निष्ठा रखने वालों को होता यजमान बनना चाहिए। ऐसा पुण्य पर्व जीवन में फिर मिल सकना कठिन है। जिनको आत्मा में प्रेरणा एवं उत्साह उठे उन्हें इस धर्म अनुष्ठान में भागीदार अवश्य बन जाना चाहिये।

8. होता और यजमानों के नियम बहुत ही सरल हैं। देखने में ही कठिन मालूम पड़ते हैं। अब से लेकर पूर्णाहुति तक यदि 6 माला की जायँ तो आसानी से सवा लक्ष जप हो सकता है। जो जन न कर सकें वे 1250 चालीसा पाठ या 2400 मन्त्र लेखन कर सकते हैं। प्रति दिन आधा घण्टा समय लगाते रहने से यह साधनायें भी आसानी से हो सकती हैं।

9. एक समय बिना नमक का भोजन वाला उपवास नियम अति सरल है। यदि वह न हो सके या करने में कठिनाई अनुभव होती हो तो वे 42 की अपेक्षा कम उपवास करने का कारण बताकर उससे छूट पाने की प्रार्थना तपोभूमि को कर सकते हैं, उपरोक्त कारण होने पर उपवासों में छूट भी दी जा सकती है। एक तरीका यह भी है कि जितना जप पाठ शेष रह जाए उतना तपोभूमि से उधार ले लिया जाय और उसकी पूर्ति अगले वर्ष कर दी जाय।

10. जितना जप या उपवास कम पड़े उसकी पूर्ति मथुरा में ब्रह्मचारियों द्वारा भी कराई जा सकती है। एक हजार जप करने का चार आना या एक उपवास का आठ आना देने पर जप उपवास की पूर्ति तपोभूमि में हो सकती है।

11. इस वर्ष जहाँ अवसर हो वहाँ बड़े सामूहिक यज्ञ न करके छोटे-छोटे 5-5 कुण्डों के यज्ञ कर लेने चाहिए। 6 कुण्डों के, 24 कुण्डों के, 101 कुण्डों के बड़े यज्ञ अगले वर्ष किये जायें। इस वर्ष सारा ध्यान महायज्ञ की पूर्णाहुति पर केन्द्रित किया जाय। जहाँ छोटे-बड़े यज्ञ किये जाएं वहाँ इसके लिए हमें चलने का आग्रह न किया जाय। कारण कि पूर्णाहुति की बहुत सारी योग्यता और व्यवस्था को छोड़ कर यज्ञों में हमारे जाने से यहाँ के कार्यों में भारी क्षति पहुँची है। भारतीय सामूहिक यज्ञों के लिए तपोभूमि के वक्षकारी सिनेमा समेत भेजे जा सकते हैं जो यज्ञ भी करा दें और सिनेमा दिखाकर आकर्षक ढंग से धर्म प्रवचन भी करा दें।

12. गत कई वर्षों से तपोभूमि में ज्येष्ठ के महीने में शिक्षण शिविर होता था, इस वर्ष वह न होगा। सभी परिजन अपने-अपने क्षेत्रों में काम करें, यहाँ न आवें। तपोभूमि में इन दिनों यज्ञशाला का निर्माण, पीछे की ओर से बरामदा, उसके ऊपर शल्य-चिकित्सालय की इमारत बनने का कार्य चल रहा है, ईंट, चूना, लकड़ी, पत्थर, लोहा, सीमेन्ट में सब जगह घिरी रहती है। शिक्षण शिविर चलाने के लायक जगह भी इन दिनों खाली नहीं है। इस वर्ष शिक्षण शिविर स्थगित रहेगा।

13. इस महीने से गायत्री-परिवार-पत्रिका निकलनी आरम्भ हो गई है। सभी शाखाओं को उसका प्रथम अंक भेज दिया गया है। शाखाओं की गतिविधियाँ, योजनाएँ, रिपोर्ट, समाचार उसी में छपते रहेंगे तथा यहाँ से जो सूचनाएँ हर महीने जाती थी, वे अब अलग से न जाकर इसी में छपा करेंगी। अखण्ड-ज्योति में वह सब समाचार बहुत संक्षेप में छापने पर भी बहुत पृष्ठ घिर जाते थे और विचार सामग्री पाठकों को कम मिलती थी। अब परिवार-पत्रिका निकलने से यह कठिनाई दूर होगी। शाखाओं की गतिविधियाँ भी ठीक तरह छप सकेंगी और अखण्ड-ज्योति में अधिक विचार सामग्री दी जा सकेगी। अब अखण्ड-ज्योति में शाखाओं के समाचार एवं अनुभव न छपा करेंगे। परिवार पत्रिका का ग्राहक होना प्रत्येक शाखा के लिए आवश्यक है। शाखाएँ 2) चन्दा भेज दें। शाखा संचालकों का कर्तव्य है कि उस पत्रिका को सभी सदस्यों तक पहुँचाने एवं पढ़वाने की व्यवस्था करें। सदस्यों को अलग-अलग उसे मँगाना आवश्यक नहीं।

14. कई होता यजमानों ने अभी वितरण साहित्य नहीं मँगाया है। ज्ञान-दान उच्चकोटि का पुण्य है। इसमें कन्जूसी न करनी चाहिए। अपने क्षेत्र में दूर-दूर तक गायत्री माता का सन्देश पहुँचाने के लिए साहित्य वितरण ही एकमात्र उपाय है धर्म-फेरी भी साहित्य वितरण के बिना सफल नहीं है। इसके लिए उपेक्षा न की जानी चाहिए। देश के कोने-कोने में, घर-घर में गायत्री माता का, यज्ञ पिता का सन्देश पहुँचे, इसी दृष्टि से साहित्य वितरण की शर्त तक अत्यन्त आवश्यक शर्त रखी गई है। इसका महत्व कम नहीं समझना चाहिए और न उसकी उपेक्षा करनी चाहिए। जो होता यजमान इसमें कठिनाई अनुभव करते हों वे 6 रुपये के स्थान पर उसका आधा या चौथाई मूल्य का साहित्य मंगालें पर सर्वथा उपेक्षा न करें। यदि साहित्य वितरण न हुआ तो यज्ञ भले ही हो जाय, घर-घर माता का संदेश पहुँचाने का वह महान् कार्य न हो सकेगा। जो यज्ञ से भी अधिक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। यह वितरण साहित्य काफी घाटा सहकर लागत से लगभग आधे मूल्य में दिया जा रहा है। इनमें संस्था का कोई आर्थिक लाभ नहीं। धर्म-प्रचार ही एक मात्र उद्देश्य है। जो होता यजमान 6 रुपये से कम का साहित्य मंगावें, वे पेशगी पैसा भेजें। 6 रुपये से कम की वी.पी. नहीं भेजी जाती।

15. गायत्री ज्ञान मंदिरों की स्थापना पर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। उपवासों का बचाया हुआ अन्न मथुरा भेजने की जरूरत नहीं है। वह तो शरीर का भोजन बचाकर आत्मा को भोजन देने की एक विशुद्ध निजी प्रक्रिया है। घर में गायत्री सम्बन्धी 52 पुस्तकों का सैट रखना-घर भर के लिए, पास-पड़ौस के लिए, स्वजन सम्बन्धियों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक चिरस्थायी भोजन जुटाना है। इस आधार पर घर को एक दिन देव मन्दिर एवं ब्रह्म विद्यालय बनाने का भी अवसर मिलता है। तुलसी, पीपल, बरगद, आदि के वृक्ष लगाने पर पुण्य माना जाता है, यह गायत्री ज्ञान मन्दिर एक उच्चकोटि का धर्म वृक्ष है। जिसके पत्र, पुष्प, पल्लव एवं फलों में अपना समीपवर्ती क्षेत्र सुरक्षित होने लगेगा। ज्ञान मन्दिरों के आधार पर ब्रह्म विद्यालय चलाने एवं धर्म प्रचारक उपाध्याय बनाने का एक महत्वपूर्ण पुरुषार्थ ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के होता यजमानों को करना ही चाहिए। एक ही घर के कई याज्ञिक हों या आर्थिक अड़चन हो तो कई याज्ञिक मिलकर भी एक ज्ञान मन्दिर सैट मंगा सकते हैं।

16. इन दिनों संस्था पर डाक व्यय का भार बहुत बढ़ गया है। व्यक्तिगत पत्र व्यवहार के लिए जवाबी पत्र भेजने की कृपा करके सदस्यगण इस भार को कम करने में बहुत कुछ सहायक हो सकते हैं।

17. माता भगवती देवी अपनी महिला सेवा संबन्धी योजनाओं की तैयारी में लगी हुई हैं। ‘गृह लक्ष्मी’ पत्रिका की तैयारी भी उनकी चल रही है। जब तैयारी पूर्ण हो जायेगी और कोई सज्जन गृह लक्ष्मी का चन्दा न भेजे। हाँ उसके ग्राहक बनने के लिए नाम नोट करा सकते हैं।

18. गायत्री-परिवार पत्रिका का प्रथम अंक समस्त शाखाओं को बिना चन्दा आये ही भेजा गया है। अगर किसी कारण वश आपको न मिला हो तो पत्र भेजकर तुरन्त मंगा लें।


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