(स्वामी कृष्णानन्दजी, खार, बम्बई)
मंत्र शास्त्र एक सच्चा विज्ञान है। यह शक्तिशाली विज्ञान किसी समय भारतवर्ष में पूर्णतः प्रचलित था और व्यवहार में लाया जाता था। अभाग्यवश अन्य विद्याओं और कलाओं की भाँति यह विज्ञान भी स्वार्थी मनुष्यों के हाथ में पड़ गया और आध्यात्मिक उन्नति के बजाय निकृष्ट श्रेणी के कार्यों को साधने में प्रयुक्त किया जाने लगा। यही कारण है कि आज इसके ठीक-ठीक जानने और मानने वाले बहुत कम दिखलाई पड़ते हैं।
साथ ही ऋषियों ने यह भी आदेश दिया था कि मंत्र-विद्या किसी अनधिकारी व्यक्ति को न सिखलाई जाय। इस कारण यह गुप्त रखी गई और गुरु लोग केवल अपने दो-एक अत्यन्त विश्वसनीय शिष्यों को, अपने पिता अपने किसी एक पुत्र को ही इसका वास्तविक रहस्य बतलाते थे। इस प्रकार क्रमशः यह विज्ञान बहुत ही सीमित संख्या के व्यक्तियों के भीतर ही रहा और समय के प्रभाव से अब उन व्यक्तियों का अस्तित्व नाम मात्र को ही रह गया है। सुयोग्य गुरुओं के अभाव से अब ये मंत्र निरर्थक अक्षरों के समूह मात्र जान पड़ते हैं, और उनके द्वारा किसी देवी-देवता की उपासना करके किसी प्रकार की सिद्धि प्राप्त कर सकना अत्यन्त कठिन हो गया है।
इस परिस्थिति में गायत्री मंत्र ही ऐसा साधन है जिससे अभी तक लोग परिचित हैं और जिसकी साधना अधिकाँश धर्म प्रेमी करते रहे हैं। गायत्री से होने वाले सब लाभों का वर्णन कर सकना असंभव है। सृष्टि के आदि से असंख्यों व्यक्ति इस मंत्र को जपते आये हैं, इसके फलस्वरूप इसकी शक्ति और प्रभाव में अत्यन्त वृद्धि हो गई है और इसकी साधना से प्रत्येक साधक की मनोकामना अवश्य सिद्ध हो सकती है। भगवान मनु ने कहा है कि सब प्रकार के यज्ञों और जपों से गायत्री की साधना सर्वाधिक फलदायिनी है। गायत्री की साधना करने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं हो सकता। शास्त्र में कहा गया है-
सहस्त्रकृत्वस्त्वभ्यस्य बहिरेतत्रिकं द्विजः। महतोऽष्येनस्त्रों मासात्त्वचेवहिर्विमुच्यते॥ योऽघीतेऽहन्यहन्येतास्त्रीणी वर्षाण्यतन्द्रितः। स ब्रह्म परमभ्येति वायुभूतः खमूर्तिमान॥
“कोई ब्राह्मण जो गायत्री की तीनों व्याहृतियों और ॐ का नदी के तीर पर शान्त और एकान्त स्थान में नित्य प्रति एक हजार जप एक मास तक करता है वह सब पापों से इस प्रकार छूट जाता है जैसे सर्प अपने कैंचुल से और जो कोई बिना आलस्य के लगातार तीन वर्ष तक इसी प्रकार जप करता है वह परब्रह्म में लीन हो जाता है।”
अधिकाँश व्यक्ति गायत्री मंत्र का अनुष्ठान किसी न किसी मनोवाँछा की पूर्ति के लिये किया करते हैं। यह मार्ग वास्तव में बहुत श्रम साध्य है, उसमें बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ आती हैं और अनेक समय खतरा भी पैदा हो जाता है। इसलिये यदि पुरश्चरण बिना किसी अभिलाषा के अथवा देव दर्शन या सिद्धि का विचार किये बिना निष्काम भाव से किया जाय और उसका उद्देश्य केवल अपना कर्तव्य या धर्म ही समझा जाय, तो इसमें संदेह नहीं कि जप-कर्ता का हर तरह से कल्याण ही होगा।
जिस प्रकार पिता द्वारा छोड़ी हुई सम्पत्ति स्वभावतः उसके पुत्रों को मिल जाती है, इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अनुष्ठान करके गायत्री का अनुग्रह प्राप्त करता है, तो उसका शुभ परिणाम उसके पुत्रों और पौत्रों तक को मिलता है। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि जिस घर में गायत्री माता की उपासना नित्य प्रति की जाती है वह सम्पन्नता की ओर अग्रसर होने लगता है। जिन लोगों ने विदेशी शिक्षा के प्रभाव से इन दिनों गायत्री-उपासना को छोड़ दिया है अगर वे फिर से स्वयं को और अपनी सन्तान को गायत्री-उपासक बना दें, तो उनका हर तरह से कल्याण होगा और हमारा देश भी सब प्रकार उन्नति-शील बनकर अपने प्राचीन वैभव और शक्ति को प्राप्त कर सकेगा।