गायत्री-परिवार की गतिविधियाँ

June 1958

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(1) गायत्री परिवार के संगठन सम्बन्धी समाचार, शाखा संचालकों तथा सदस्यों के लिये आवश्यक सूचनाएं अब ‘गायत्री परिवार पत्रिका’ में ही छपने लगी हैं। अखण्ड ज्योति विशुद्ध विचार पत्रिका रहेगी, इसमें मानव जीवन को समुचित बनाने वाले विचारात्मक लेख ही रहा करेंगे। प्रचारात्मक सामग्री गायत्री परिवार पत्रिका में रहा करेगी। जिन्हें गायत्री परिवार के कार्यक्रम में रुचि है वे अपनी शाखा से लेकर या स्वयं मँगाकर गायत्री परिवार पत्रिका अवश्य पढ़ा करें। वार्षिक चन्दा 2 रु. है।

(2) गायत्री परिवार पत्रिका का प्रथम अंक 20 अप्रैल को प्रायः सभी शाखाओं के लिये भेजा जा चुका है। दूसरा अंक 20 मई को भेजा गया है। यह दोनों अंक जिन शाखाओं को न मिले हों वे उसे डाक की गड़बड़ी में गुम हुआ समझकर दुबारा मँगालें। शाखाएं पत्रिका का चन्दा जमा करने में विलम्ब न करें।

(3) मथुरा में महायज्ञ की तैयारियाँ जोरों से चल रही हैं। तपोभूमि में यज्ञशाला, पीछे के 9 कमरों के आगे बरामदा तथा ऊपर एक बड़ा हाल, रसोई घर आदि बनने का कार्य लगभग एक महीने में पूरा हो जायगा। मथुरा शहर से बिड़ला-मन्दिर तक दो मील का क्षेत्र यज्ञ कार्य के लिये चुना गया है। एक हजार कुण्डों की एक ही बड़ी यज्ञशाला बनने के लिये कोई उपयुक्त स्थान न मिल सका इसलिये 25-25 कुंडों की 40 यज्ञ-शालाएं बनाने की बात सोची गई है। हर प्रान्त वालों का निवास तथा उनकी यज्ञ शालाओं की सीमाएं अलग-अलग बंट जावेगी इससे व्यवस्था में भी सुविधा रहेगी।

(4) भोजन का प्रबन्ध भी कम से कम 5 स्थानों पर रखना पड़ेगा। 8 ब्लॉकों का भोजन एक स्थान पर रहा करे ऐसा सोचा जा रहा है। ठहरने के लिये तम्बाकू छोलदारी लगवाने के लिये कई ठेकेदारों से बात चल रही है। बिजली लेने के लिये सरकार से लिखा पढ़ी आरम्भ कर दी गई है। यदि उतनी बिजली न मिल सकी तो जनरेटरों का या गैस बत्तियों का प्रबन्ध करना पड़ेगा। स्नान के लिये जमुना जी एक फर्लांग ही है, फिर भी पीने का पानी की एक बड़ी आवश्यकता है। पानी और टट्टी घरों के लिये अनुभवी लोग योजना बना रहे हैं। इतने आदमी जहाँ बैठकर भाषण सुन सकें वैसे सभास्थल के लायक जगह का उस क्षेत्र में न होना एक बड़ी समस्या है, उसका हल सोचा जा रहा है।

(5) रेल के वापिसी टिकट देने तथा स्पेशलें छोड़ने के लिये सरकार से लिखा पढ़ी आरम्भ कर दी गई है। मोटर बसों का अड्डा भी तपोभूमि पर रखने के लिए सरकार को लिखा गया है। टेलीफोन लगाने की अर्जी दे दी गई है। सरकार के स्वास्थ्य विभाग से भी सहयोग माँगा गया है। इस प्रकार लिखा पढ़ी चल रही है।

(6) बाँस, बल्लियाँ, चटाइयाँ, तंबुओं में बिछाने के लिये घास आदि वस्तुओं के भाव मालूम किये जा रहे हैं। धीरे-धीरे यह चीजें जुटाई जायेंगी। हवन सामग्री की औषधियाँ जहाँ-जहाँ ये पैदा होती हैं वहाँ-वहाँ से बड़ी मात्रा में सीधी मँगाई जा रही हैं। घी शुद्ध ही मिले इसके लिये पशु पालकों से शुद्धता की शर्त और प्रतिज्ञा लेकर उन्हें घी के आर्डर दिये जा रहे हैं।

(7) तपोभूमि के कुएं में मोटर पम्प लगाने के लिये बिजली की स्वीकृति मिल गई है। पानी की व्यवस्था हो जाने से तपोभूमि में सदा हरियाली रहने, तथा सड़क पर प्याऊ जैसे दो नल लगे रहने की सुविधा रहेगी। नवरात्रि, गायत्री जयन्ती आदि उत्सवों में जब सैकड़ों व्यक्ति आते हैं तब एक ही कुंए पर स्नान कुल्ला, दातौन करने में भारी अड़चन पड़ती है अब मोटर लगाने से कई नल लग जायेंगे और पानी की सुविधा रहेगी। इस जल व्यवस्था में लगभग दो हजार रुपया खर्च होगा।

(8) इतने बड़े विशालकाय कार्यक्रम के लिये धन संग्रह की कोई अपील अभी तक नहीं की गई है और न यज्ञ के अन्त तक करने का विचार है। अपने पास में तो यज्ञ में खर्च होने वाले धन का हजारवाँ भाग भी नहीं है फिर उतनी बड़ी जोखिम उठाकर कहीं लोग हंसाई न हो जाय यही सन्देह अपने साथी सहयोगियों को खाये जाता है। अपने निकटवर्ती साथी, जब यहाँ की आर्थिक स्थिति और कार्य की विशालता की तुलना करते हैं, और चन्दा जैसा न करने की प्रतिज्ञा की बात को इस स्थिति में मिला कर कल्पना चित्र बनाते हैं तो उन्हें बड़ी निराशा होती है। कई तो हमारे ऊपर झल्ला झल्ला कर पड़ते हैं और कई इसी कारण निराशा और असन्तुष्ट होकर साथ भी छोड़ बैठे हैं। ऐसे साथियों की अल्प श्रद्धा पर हमें हैरानी होती है।

(9) यह यज्ञ इस युग का अभूतपूर्व धर्मानुष्ठान है। इसकी शक्ति और सफलता इस बात पर निर्भर है कि इसमें जो भी साधन लगें वे अत्यन्त ही पवित्र हों। धन एक प्रधान साधन है। यज्ञ में वही पैसा लगना चाहिये जो अत्यन्त पवित्र एवं श्रद्धा परिपूर्ण हो। माँगने से देने वाले पर एक दबाव पड़ता है वह तो लोकलाजवश, अश्रद्धा पूर्वक भी देती हैं। अश्रद्धा के साथ, भार समझकर दिया हुआ धन प्रायः कुधान्य होता है। जो पैसा धर्म कमाई का नहीं है वह धर्म कार्यों में नहीं जाना चाहता, उसकी स्वाभाविक चाल वेश्या, सिनेमा, नशा, वकील, डॉक्टर, राजदण्ड, विलासिता आदि मार्गों में निकलने की होती है। ऐसे धन को किसी पर जोर डालकर हम तो भी लें तो उससे प्रदर्शन तो बड़ा बन जायगा और आसानी भी रहेगी, पर इससे यज्ञ का उद्देश्य पूर्ण न होगा, वह पवित्रता न रहेगी जो इतने महान यज्ञ में रहनी आवश्यक है। इसलिये परिणाम जो भी हो हमारा दृढ़ निश्चय है कि धर्म उपार्जित एवं श्रद्धा से परिपूर्ण पैसे ही इस यज्ञ में लगने देंगे और ऐसे धन की पहचान वही है कि देने वाले के मन में आवश्यक भावना उत्पन्न करके इस और अपना मार्ग खोलेगा। वह बिना माँगे ही मिलेगा। यदि ऐसा पैसा अब दुनिया में नहीं है तो हमारा निश्चय है कि आगंतुकों को 5 दिन तक वृक्षों के नीचे ठहरने एवं सत्तू नमक का भोजन करने को कहेंगे। पवित्रता एवं आदर्श को नष्ट करके विशाल यज्ञ करना हमें किसी भी प्रकार अभीष्ट नहीं है। लोग हंसाई का, जोखिम उठा कर भी हम इस तथ्य पर चट्टान की तरह अटल हैं। वैसी असफलता और लोग हँसाई के बीच भी जो पवित्रता कायम रह सकेगी, उसे ही हम यज्ञ की सफलता मान लेंगे और उतने मात्र से भी इस धर्मानुष्ठान का महान् उद्देश्य पूरा हो जायगा। आदर्शों की रक्षा सफलता की प्रधान कसौटी है। साथी लोग डरें नहीं, घबरावें नहीं, यज्ञ पूर्ण सफल होगा।

(10) एक हजार कुण्डों की पूर्णाहुति मथुरा में होने के बाद सन् 59 में 26 हजार कुण्डों के यज्ञ सारे भारतवर्ष में होंगे। इस प्रकार कुल 24 हजार कुण्डों में महायज्ञ की पूर्णाहुति होगी। मथुरा का यज्ञ तो उस पूर्णाहुति का उद्घाटन मात्र है। महायज्ञ के बाद सभी शाखाएं अपने-अपने यहाँ 25-25 कुण्डों के यज्ञों का आयोजन अभी से करें। इस वर्ष जिन्हें कोई आयोजन करना हो वे छोटा स्थानीय आयोजन कर लें। हमें बुलाने का अब इस वर्ष कहीं आग्रह न किया जाय। हमारे कन्धे पर पहाड़ के बराबर कार्य भार पड़े हुये हैं। अब अगले महीनों में कहीं बाहर जा सकना हमारे लिए संभव न होगा। अगले वर्ष के यज्ञों में ही हम जाने का प्रयत्न करेंगे।

(11) आश्विन सुदी 1 (तारीख 13 अक्टूबर) से लेकर के कार्तिक सुदी 15 तक डेढ़ मास का शिक्षण शिविर तपोभूमि में होगा जिसमें प्रत्येक शाखा को आपने यहाँ से एक या दो प्रतिनिधि भेजने चाहिये। उन्हें यज्ञ करने की, भाषण देने की, यज्ञ व्यवस्था की, सिनेमा दिखाकर प्रवचन करने की, साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना की शिक्षा दी जायगी। साथ ही ये प्रतिनिधि यज्ञ कार्य में स्वयंसेवक का कार्य भी करेंगे। यह प्रतिनिधि स्वत्व, निर्व्यसनी, मधुर भाषी, अनुशासन में रहने वाले एवं प्रतिभा सम्पन्न होने चाहियें। हीन नियति के व्यक्ति हमारे कार्य में सहयोग करना, शिक्षा प्राप्त करना तो दूर उलटे स्वयं एक सिर दर्द बन जाते हैं। ऐसे लोग कदापि न भेजे जायँ। अगले वर्ष 23 हजार कुण्डों की पूर्णाहुति के लिये लगभग 1 हजार स्थानों में जो यज्ञ होंगे उनकी व्यवस्था एवं संचालन का कार्य यही डेढ़ मास में ट्रेंड व्यक्ति करेंगे।

(12) पहले विचार था कि यह शिक्षण शिविर दो मास का किया जाय। 25 मई की गायत्री-परिवार पत्रिका में ऐसी सूचना भी छपी है। पर अनेक शाखाओं से पत्र आये हैं कि “यह समय अधिक है इसे कम किया जाय” और दो मास की जगह अब डेढ़ मास कर दिया गया है। 1 अक्टूबर से आरम्भ होगा। प्रतिनिधियों को 12 अक्टूबर तक आ जाना चाहिये। आने से पूर्व नाम, पूरा पता, आयु, वर्ण, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अब तक का संक्षिप्त जीवन वृत्तान्त लिख भेजना आवश्यक है। स्वीकृति लेकर ही प्रतिनिधि आवें।

(13) ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के होता यजमान साहित्य वितरण के परम पुनीत कार्य के महत्व को समझ नहीं पा रहे हैं, और इस ओर उपेक्षा कर रहे है। यज्ञ में भाग लेने के इच्छुक प्रत्येक भागीदार का कर्तव्य है कि वह जप, हवन के समान ही ब्रह्मभोज साहित्य वितरण को भी अनुष्ठान का एक अँग माने। थोड़ा बहुत खर्च इस कार्य में अवश्य करें। ब्रह्मभोज की, ज्ञान दान की सर्वथा उपेक्षा करने वाले साधकों की साधना पूर्ण न मानी जायगी।

(14) ज्ञान मन्दिर सैट जिनने मँगा लिये हैं, उन्हें चाहिये कि उन 52 पुस्तकों को पूर्णाहुति तक कम से कम 10 व्यक्तियों को पढ़ा दें। लोगों में इसे पढ़ने के लिये रुचि उत्पन्न करें, उनके घरों पर यह साहित्य देने तथा लेने जावें। कुछ पुस्तकें इस भाग दौड़ में खोवें या फटें तो उस जोखिम के लिये भी तैयार रहें। बस व्यक्तियों को पूरी 52 पुस्तकें पढ़ा देने वाले व्यक्ति गायत्री संस्था के धर्म प्रचारक माने जायेंगे। यह पढ़ाने का उनका कार्य एक ब्रह्म प्रचारकों को महायज्ञ के समय विशेष सम्मान के साथ उपाध्याय की पदवी से विभूषित किया जायगा।


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