गर्मियों में स्वस्थ कैसे रहें?

May 1955

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री प्रीतम देवी महेन्द्र)

गर्मियों में पूर्ण स्वस्थ रहना सतर्कता, संयम एवं सुनिश्चित दिनचर्या पर निर्भर है। जहाँ सर्दी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, वहाँ गर्मी में मनुष्य की प्राणशक्ति का ह्रास होता है, भूख कम लगती है, पाचनक्रिया मंद पड़ जाती है, प्यास अधिक लगती है और कार्य करने को मन नहीं करता। गर्म मुल्कों के निवासी आलसी होते हैं। इसी प्रकार गर्मी आलस्य उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार गर्मी आलस्य उत्पन्न करती है। पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति यों को भी अपना स्वास्थ्य और कार्यशक्ति बनाये रखने के लिए विशेष प्रयत्न करना चाहिये। यह मौसम बीमारियों को निमंत्रण देने वाला है।

अपनी दिनचर्या निश्चित कर लीजिए। किस समय आपको शय्या त्याग करनी है? किस तथा कितने समय तक विश्राम, दैनिक कार्य, मनोरंजन, स्नान करना है? मित्रों से मिलने जाने का क्या समय है? प्रायः देखा जाता है कि सुनिश्चित योजना बनाकर चलने वाले व्यक्ति गर्मियों में भी उतना ही कार्य कर लेते हैं, जितना सर्दियों में कर पाते हैं।

कार्यशक्ति का भण्डार शक्ति है। शक्ति आपके भोजन, पाचन तथा रक्त की शुद्धता पर निर्भर है। गर्मी का प्रभाव पेट पर सीधा पड़ता है। भूख कम हो जाती है, प्यास अधिक प्रतीत होती है। अतः यह ध्यान रखिये कि पाचन−यंत्र कैसा कार्य कर रहा है? आप निरन्तर आठ−आठ घण्टे परिश्रम पर तो चिपके नहीं रहते? कहीं आप मिठाई, पकवान, पूड़ियां, चाट−पकौड़ी के कुचक्र में तो नहीं पड़ गये हैं? आँतों में विकार गरिष्ठ भोजन तथा अधिक खाने से उत्पन्न होता है।

अग्रह्य और असंतुलित भोजन, चाय, सिगरेट, पान इत्यादि, कब्ज उत्पन्न करते हैं। अधिक मिर्च−मसालों, चाय, तम्बाकू तथा बाजार के बने सुस्वादु पदार्थों से पाचन−क्रिया ठीक नहीं हो पाती। खट्टी डकारें, भारी तबियत, सिर दर्द, अपच, आलस्य, हैजा इत्यादि का कारण गलत आहार है। अतः गर्मियों में अपने भोजन के विषय में सावधान रहें। हलका, गर्म भोजन, चपाती, दाल, फल, हरी सब्जी, सलाद इत्यादि लिया करें। तम्बाकू, चाय, मिर्च−मसाले, बाजार की मिठाइयाँ, गले−सड़े फल, बासी भोजन, माँस इत्यादि राजसी आहार त्याग दें। सब्जियों तथा फलों का खूब प्रयोग करें।

गर्मी में जल का बड़ा महत्व है। अधिक गर्मी के कारण शरीर को अपेक्षाकृत अधिक मात्रा से जल की आवश्यकता होती है। कुछ तो जल गुर्दों के द्वारा तथा कुछ पसीने के रूप में बाहर निकल जाता है। जो व्यक्ति गर्मी में कम जल का प्रयोग करते हैं, उन्हें कब्ज की शिकायत रहती है। सारहीन मल पदार्थ बृहद् आँत को अपना कार्य सुचारु−रूप से संचालन करने के लिये यथेष्ट जल नहीं मिल पाता। अतः पर्याप्त जल लिया करें। शौच जाने से पूर्व एक गिलास शीतल पीने से कोष्ठबद्धता दूर होती है। यदि कब्ज जीर्ण हो गया हो, तो गुनगुने जल में एनीमा लेना उत्तम है। रक्त को स्वस्थ सक्रिय और नियन्त्रित रखने के लिए दिन में ढाई सेर से साढ़े तीन सेर तक जल प्रत्येक मनुष्य को पीना चाहिए।

गर्मी का त्वचा के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है। खुश्क हवा गर्मी के कारण त्वचा की स्वाभाविक स्निग्धता और चमक विलुप्त हो जाती है और हाथ, मुँह, होंठ इत्यादि सूख जाते हैं। रंग काला पड़ जाता है। फोड़ा−फुन्सी त्वचा को सौंदर्य नष्ट कर देते हैं। पसीना न पोंछने के कारण त्वचा के छिद्र बन्द हो जाते हैं। अतः पानी पर्याप्त पिएँ। छाछ, दही, मक्खन, दूध का खूब प्रयोग करें, तो त्वचा की चिकनाहट एवं रंग निखर आता है। रात्रि में मुँह धोकर मक्खन, कोल्ड क्रीम या वैसलीन चुपड़ लेने से लाभ होता है। माथे या गर्दन पर यदि बारीक लाल−लाल दाने निकल आयें, तो कब्ज का इलाज करें और सफेद चन्दन घिस कर इन पर मला करें।

गर्मियों में स्नान का बड़ा महत्व है। थोड़ी−सी कसरत कर स्नान करें। नदी या ताल में तैरकर स्नान करने से व्यायाम और मनोरंजन दोनों ही प्राप्त हो जाते हैं। स्नान के पश्चात् खुरदरे तौलिये से शरीर को रगड़ने से शारीरिक शक्ति और नव−स्फूर्ति प्राप्त होती है। त्वचा के रन्ध्र साफ हो जाते हैं। स्नान के लिये प्रातः या साँय का समय उत्तम माना गया है। भोजन के बाद तुरन्त स्नान न करें।

वह समय जब ब्रह्म−मुहूर्त होता है, प्राणशक्ति प्रदान करने वाला है। अतः सुबह चार−पाँच बजे टहलने, कसरत करने या भागने दौड़ने के लिए रखिए। सायंकाल भी टहलकर आप अपनी शक्ति सौंदर्य बनाये रख सकते हैं। संसार के प्रायः सभी दीर्घजीवी मनुष्य तपस्वी सूर्योदय से पूर्व उठकर घूमने−फिरने के आदी रहे हैं। भैषज्य−सार में लिखा है—”ब्रह्म−मुहूर्त में उठने वाला सौंदर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु आदि वस्तुओं को प्राप्त करता है। शरीर कमल−सा सुन्दर हो जाता है।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118