आप अधिक क्यों खाया करते हैं?

May 1955

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(कुमारी भारती)

तुम समझते हो खाने−पीने के साथ अध्यात्म का कोई सम्बन्ध नहीं। वास्तव में अध्यात्म का श्रीगणेश भोजन से ही होता है। अध्यात्म भी एक प्रकार का भोजन है। आध्यात्मिक भोजन की शुद्धता और उपयोगिता तुम्हारे उस आहार पर निर्भर है, जो तुम सुबह−शाम खाते हो। सदा अपने भोजन की पवित्रता का ध्यान रखो।

तुम्हारे शरीर और मन में असुर के प्रवेश का द्वार तुम्हारी जिह्वा ही है। रस लेने के लिए तुम जो आवश्यक भोजन करते हो, इसी में असुर अन्दर प्रविष्ट होता है। सदा इस द्वार पर सावधान रहो।

भोजन की पवित्रता के लिए प्रथम आवश्यकता यह है कि जो कुछ तुम खाने के लिए लो, वह निर्मल, साफ तथा गुणकारी हो। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि भोजन के पात्र, स्थान और निर्माता सब स्वस्थ और साफ हो। मन की पवित्रता भी आवश्यक है, इसके बिना भोजन हानिकर हो सकता है।

उपनिषद् के ऋषि के अन्न पर निर्भर है। बनाया है। सारा प्राणि−जगत अन्न पर निर्भर है। मानव−समाज का समूचा ढांचा, अन्न पर ही बना है, इसलिए अन्न बृहत् है−महान है। उस अन्न की पूजा करो। पूजा करने का अर्थ फूल चढ़ाना और आरती उतारना नहीं है। पूजा का सही अर्थ तो यही है कि पूज्य पदार्थ का यथोचित प्रयोग किया जाय। अन्न व्यर्थ न जाय, उसका उचित मात्रा में विधिवत् व्यवहार किया जाय, यही अन्न की सच्ची पूजा है। जो खेत खाली पड़े हैं, उनमें अन्न पैदा करना, आज के युग की अन्न ब्रह्म पूजा ही है। वास्तव में आज के अन्न संकट−काल में, अन्न ब्रह्म ही है, एक−एक दाना अन्न का सही उपयोग करना सीखो।

खाना ही अन्न का पूरा उपयोग नहीं। अन्न का पूरा उपयोग तभी होगा, जब तुम कम से कम खाकर उससे पूरा पूरा लाभ उठाना सीखोगे। कम खाना भी एक शिक्षण का विषय है। कम खाओ।

आज तुम्हारा भोजन केवल जिव्हा के रस और पेट भरने के लिए होता है, इसीलिए तुम पके हुए स्थूल अन्न के साथ, आर्द्र शाक−दाल आदि का प्रयोग करते हो, जिससे तुम अधिक से अधिक खा सको। इतना ही नहीं, मिर्च−मसाले, चटनी, आचार आदि से जिव्हा पर सदा इंजेक्शन करके तुम उससे अधिक से अधिक खाने को प्रेरित करते हो। इस प्रकार तुम भोजन के द्वारा अपनी आयु कम कर रहे हो, जबकि तुम्हारी आयु को बढ़ाने का साधन हो सकता है, और है। यदि तुम जीवित रहने के लिए भोजन लो और उसे चबा−चबा कर खाओ, तो निःसन्देह तुम्हारा भोजन आज से आधा हो सकता है, अधिक पौष्टिक हो सकता है और तुम्हारे शरीर को अधिक सक्रिय बना सकता है। तुम्हारा यह भ्रम है कि अधिक खाने से अधिक बल आता है। अधिक खाने की भी एक आदत बन जाती है। जीवित रहने के लिए भोजन जितनी मात्रा में चाहिए वही आवश्यक है। इसके लिए कम खाने का अभ्यास करो।

जब देश में तुम्हारे सामने लाखों स्त्री−बच्चों के भूखे मरने की समस्या है, तब तुम्हें पेट भर कर खाने का क्या अधिकार है?

तुम यह कहते हो। कि आज भी तुम्हें भर−पेट खाना नहीं मिलता। तुम तो खाने के लिए दुनिया में आये मालूम होते हो। जीवित रहने के लिए खाने का आदर्श सामने रखो। कम खाने का अभ्यास करो, इससे तुम्हें आत्म−सन्तोष मिलेगा।

जिस प्रकार शरीर के लिए कम खाने का अभ्यास करो उसी प्रकार आत्मा के लिए भी कम खाने के अभ्यासी बनो। तुम आत्मा को भोजन देने के लिए कितने ग्रन्थ पढ़ते हो, कितने उपदेश सुनते हो, परन्तु कभी इससे कुछ को पचाने का भी अभ्यास किया है तुमने? ध्यान रखो, आत्मिक भोजन भी कम से कम लो और उसे खूब हजम करने का प्रयत्न करो। कम खाओ।


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