इस ग्रीष्म में आप भी तप कीजिए!

May 1955

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वर्ष के अन्य महीनों की अपेक्षा ग्रीष्म में किसान व्यापारी, विद्यार्थी, अध्यापक आदि अधिकाँश वर्गों के लोगों को फुरसत रहती है। कुछ लोग ऐसे हैं जो इस फुरसत को आराम, आलस्य या मनोरंजन में व्यतीत करते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन के बहुमूल्य क्षणों में से एक को भी व्यर्थ नहीं जाने देते और इस फुरसत के समय का कड़कड़ाती गर्मी में भी सदुपयोग कर लेते हैं। वस्तुतः यह तपश्चर्या का समय है। इन दिनों सूर्य तपता है, पृथ्वी तपती है, वायु, जल, आकाश सभी तपते हैं, तपस्वियों की तपश्चर्या का भी यह श्रेष्ठ समय है। आलस्य और आराम में नहीं इन क्षणों को किसी महान् कार्य में लगाया जाना चाहिए।

इस फुरसत के समय को गायत्री माता के लिए अर्पण करके विश्व व्यापी दैवी तत्वों की वृद्धि और पुष्टि का महत्वपूर्ण कार्य किया जा सकता है। गायत्री ज्ञान प्रसार एक ऐसा महान कार्य है जिसकी तुलना साधारण जप तप से नहीं की जा सकती। यदि लुप्त प्रायः गायत्री ज्ञान की पुनः प्रतिष्ठापना भारत के घर घर में हो जाय तो हमारा सब प्रकार काया−कल्प के कारण ही घर घर में सद्बुद्धि विराजमान थी और उसी के फलस्वरूप सर्वत्र सुख, शान्ति, सम्पत्ति, समृद्धि, सहृदयता, सेवा और सद्भावना बिखरी पड़ी रहती थी। इसी सद्बुद्धि की विशेषता के कारण भारत जगद्गुरु, चक्रवर्ती शासक और स्वर्गीय सम्पदाओं का स्वामी बना हुआ था। आज सर्वत्र कुबुद्धि फैली हुई है फलस्वरूप घर घर में दुख, दारिद्र, रोग, शोक, चिन्ता, क्लेश की बाढ़ सी आई हुई है। व्यक्ति गत और सामूहिक सुख शान्ति का एकमात्र कारण सद्बुद्धि है और उस सद्बुद्धि को लाने के लिये भौतिक उपाय तो किये ही जाते हैं पर उसका अत्यन्त ही प्रभावशाली, अचूक रामायण, आध्यात्मिक उपाय गायत्री उपासना है। यदि गायत्री विज्ञान की समुचित प्रतिष्ठापना हो जाय तो सद्बुद्धि की कमी न रहे, जहाँ सद्बुद्धि समुचित मात्रा में होगी वहाँ किसी भी वस्तु की कमी न रहेगी।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गायत्री माता की सर्वोत्तम पूजा यह दीखती है कि इस महान् ज्ञान के प्रकाश से अधिक से अधिक अन्तःकरणों को प्रकाशवान बनाया जाय। यों जप, ध्यान, हवन आदि सभी आवश्यक हैं पर इस लुप्तप्राय महा ज्ञान को प्रकाश में लाने के लिए प्रयत्न करना भी−एक ऐसी भागीरथी की गंगा को पृथ्वी पर लाने जैसी साधना है−जिसकी महत्ता का वर्णन नहीं किया जा सकता। राजा को अपना यश गान करने वाले चारण तथा सेवा सुश्रूषा करने वाले सेवकों की अपेक्षा वे मंत्री तथा सेनापति अधिक प्रिय होते हैं जो उसके राज्य की रक्षा, व्यवस्था, एवं वृद्धि के लिए जी जान से जुटे रहते हैं। गायत्री माता के लिए जो लोग ऐसा तप करते हैं वे साधारण पूजा उपासना करने वालों की अपेक्षा किसी भी प्रकार घाटे में नहीं रहते।

ग्रीष्म ऋतु के अगले दो महीनों में एक जेष्ठ सुदी 10 गंगा दशहरा गायत्री जयन्ती का, तथा दूसरा अषाढ़ सुदी 15 गुरु पूर्णिमा का पुनीत पर्व है। इन दो पर्वों में गायत्री माता तथा गुरु पिता के लिए कुछ सक्रिय कार्य करने की आवश्यकता है। देवता से कुछ प्राप्त करने से पूर्व निश्चय ही पूजा की श्रद्धाञ्जलि अर्पण करनी पड़ती है यही सनातन सत्य है। कुछ त्याग किये बिना तो साँसारिक व्यक्ति भी−मित्र कुटुम्बी स्वजन संबन्धी भी−प्रसन्न नहीं होते फिर पातृत्व की परीक्षा के लिये देवता भी आराधकों से त्याग और तप की अपेक्षा करें तो इसमें आश्चर्य की कुछ बात नहीं। गीता में भगवान ने भी यही कहा है कि “तुम देवताओं का उपकार करो−देवता तुम्हारा उपकार करेंगे, इस प्रकार परस्पर की सहायता से ही परम श्रेय प्राप्त होगा।”

सत्य को चरितार्थ करने के लिये अपनी डडडडडड की परीक्षा देने के लिये ग्रीष्म ऋतु का यह अवकाश काल एक उत्तम अवसर है। इन 60 दिनों में से 40, 24, 9 या जितने भी दिन निकाल सकें “गायत्री ज्ञान प्रचार अनुष्ठान” के लिए निकालने चाहिये। चारों धाम, सप्तपुरी आदि की तीर्थ यात्रा के लिए जिस प्रकार घर से निकलते हैं उसी प्रकार गायत्री माता का घर घर अलख जगाने के लिये भ्रमण करने में यह समय लगाना चाहिए। उपासना में किसी व्यक्ति को स्थिर बुद्धि से तभी लगाया जा सकता है जब उसे उस विषय की समुचित जानकारी करा दी जाय। इस प्रचार यात्रा का एक मात्र उद्देश्य अनेकों व्यक्ति यों को “गायत्री ज्ञान की समुचित जानकारी कराना” होना चाहिए। विशद् गायत्री महायज्ञ में जहाँ 125 करोड़ जप, 1 5 लाख आहुतियों का संकल्प है, वहाँ इसी काल में 125 हजार ( सवा लक्ष) मनुष्यों को गायत्री ज्ञान की समुचित जानकारी कराने का “ब्रह्म भोज” करना भी एक कार्यक्रम है। यज्ञ को पूर्ण करने के लिये जप हवन का क्रम यथावत् चल रहा है पर इस ब्रह्म भोज का कार्य अभी बहुत शिथिल है। भागीदारों ने जप हवन तो किये हैं पर ब्रह्मभोज की ओर बहुत ही कम ध्यान दिया है। इस ग्रीष्म ऋतु के दो महीनों में इसी दिशा में सब से अधिक प्रयत्न किये जाने की आवश्यकता है।

गायत्री ज्ञान प्रसार एवं ब्रह्म भोज की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए अखंड ज्योति का जनवरी अंक ‘गायत्री ज्ञान अंक’ छापा गया है। इसका मूल्य असली लागत की अपेक्षा लगभग आधा (दो आना मात्र) रखा गया है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है कि गायत्री संबन्धी जितनी शिक्षा, प्रवचन, उपदेश एक व्यक्ति कठिनाई से ही दे सकता है उतना वह अंक आसानी से दे सकता है और फिर अनेक आदमी बहुत कुछ पीछे तक भी इस पुस्तक से गायत्री ज्ञान लाभ करते रह सकते हैं। अन्न खिलाकर थोड़ी देर के लिए पेट की भूख बुझाने की अपेक्षा ज्ञान पिला कर आत्मा को पुष्ट करना सो गुना अधिक पुण्य माना गया है। आज की दृष्टि में यही सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण भोजन या ब्रह्म भोज हो सकता है। ग्रीष्म ऋतु में यह ब्रह्म भोज बड़े परिमाण में होना चाहिए। घर घर में गायत्री माता का सद्ज्ञान पहुँचा कर परम कल्याणकारिणी सद्बुद्धि की स्थापना करना अत्यन्त उच्च कोटि का पुण्य परमार्थ है।

इन गर्मियों में आप अपना कुछ समय केवल गायत्री ज्ञान प्रसार कार्य के लिए निकालिए। यदि कुछ दिन पूरे निकल सकें तो पहले अपने, फिर आस पास के, ग्राम नगरों में भ्रमण का प्रोग्राम बनाइए। दो चार प्रतिष्ठित तथा प्रभावशाली व्यक्ति यों को साथ में लेने का प्रयत्न कीजिए। गायत्री अंक अधिक संख्या में मँगा लीजिए। यह आपको उधार भी मिल सकते हैं। अपने जत्थे समेत सत्पात्रों के दुकान दुकान और घर घर जाइए तथा दो दो आने का यह अंक कड़ुई कुनैन की गोली की भाँति उन्हें दीजिए। अपने तथा अपने साथियों के प्रभाव से गायत्री अंक का मूल्य दो आना उनकी जेबों से निकलवा ही लीजिए। प्रभावशाली व्यक्ति अपने प्रभाव बल से शुभ कार्यों के लिए विपुल धन राशि जमा कर लेते हैं। तो क्या चार आना मूल्य की पुस्तक को दो आने में देने का कार्य सफल नहीं हो सकता। निश्चय ही कार्य बहुत सरल है। थोड़ी सी झिझक और मिथ्या संकोच छोड़कर यदि गायत्री प्रेमी सज्जन चींटी और दीमकों की तरह निकल पड़ें तो घर घर में गायत्री रूपी सद्बुद्धि की प्रतिष्ठापना हो सकती है। प्राचीन काल में गुरु के लिए शिष्य लोग भिक्षा माँग कर लाते थे। इस कार्य को भी वैसी ही बात मानकर गुरु दक्षिणा के रूप में यह श्रमदान सम्पादन किया जा सकता है। यदि आप एक दो प्रभावशाली व्यक्ति यों को अपने साथ रहने को तैयार कर लें और उस पाँच दिन का समय भी दे सकें तो निश्चय समझिये आपके द्वारा सैकड़ों की संख्या में ब्रह्म भोज हो सकता है। सैकड़ों घरों में सैकड़ों व्यक्ति यों के हाथों में गायत्री अंक पहुँचाया जा सकता है। सौ दो सौ दुअन्नियाँ इस प्रकार इकट्ठी कर लेना दुर्बल व्यक्ति त्व के मनुष्य के लिए भी कुछ कठिन नहीं है। केवल इच्छा, संकल्प और श्रद्धा की कमी ही इसमें बाधक हो सकती है। अन्यथा इस सरल योजना में सफलता तो शत प्रतिशत निश्चित ही है। 1080 या 240 या 108 या 40 गायत्री अंक बेचकर दुअन्नियाँ इस प्रकार इकट्ठा करने का संकल्प करके कोई भी प्रतिभावान व्यक्ति उसे बड़ी आसानी से पूरा कर सकता है।

जिन्हें पूरे दिनों का समय न मिलता हो वे कुछ घंटे प्रतिदिन इस कार्य में लगाने का निश्चय कर सकते हैं। जिन्हें बिलकुल भी फुरसत न मिलती हो वे समय दान के स्थान पर कुछ धन खर्च करके उतने मूल्य के अंक अपने स्वजन संबन्धी एवं परिचितों को पास भेंट स्वरूप भेज सकते हैं। जन्मदिन, विवाह, पुत्र जन्म, धन लाभ, आरोग्य लाभ, सफलता, पदवृद्धि, तीर्थयात्रा, पर्व, उत्सव आदि शुभ अवसरों पर गायत्री अंकों को उपहार स्वरूप अपने समाज में वितरण किया जा सकता है। पत्र व्यवहार द्वारा भी गायत्री संबन्धी शिक्षा प्रेरणा दूसरों को दी जा सकती है।

इस प्रचार यात्रा के साथ साथ तीन प्रकार के व्यक्ति यों को भी खोजते रहिए। (1) जो पारिवारिक जिम्मेदारियों से निवृत्त हो चुके हैं और अपना भोजन भार स्वयं उठाकर एक वर्ष तक महायज्ञ में सम्मिलित रहने तथा गायत्री तप करने के लिये मथुरा आ सकें। (2) जो कुछ संस्कृत जानते हों और अनेक यज्ञों, सोलह संस्कारों, तथा शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करके साँस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए कार्य करना चाहें। ऐसे लोगों को भोजन प्रबन्ध भी हो सकता है। इस प्रकार के जो व्यक्ति मिलें उन्हें मथुरा जाने के स्वीकृति प्राप्त करने को कहना चाहिए। (3) जेष्ठ सुदी 1 से दस दिन तक सरस्वती यज्ञ में सम्मिलित होकर जो व्यक्ति अपनी बुद्धि वृद्धि करना चाहें उन्हें भी मथुरा आने की प्रेरणा देनी चाहिए। छात्रों के लिए सरस्वती यज्ञ में सम्मिलित होना बुद्धि विकास, चरित्र निर्माण एवं ज्ञानवृद्धि की दृष्टि से अतीव उपयोगी है। इस यज्ञ में आने वाले छात्रों को भोजन, ठहरना, रोशनी, सफाई, हवन, पूजा सामग्री आदि का कुल खर्च (12) मात्र रखा गया हैं। जबकि वास्तविक खर्च इससे कहीं अधिक पड़ेगा।

यों अखण्ड ज्योति एवं गायत्री परिवार के अधिकाँश परिजन महायज्ञ में भागीदार एवं संरक्षक बनते हैं तथा महायज्ञ का सफल बनाने के लिए अपने अपने ढंग से प्रयत्न कर रहे हैं। पर कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अभी तक इस दिशा में सद्भावना रखने की अतिरिक्त प्रत्यक्ष रूप में कुछ कार्य नहीं किया है। ऐसे लोगों विशेष रूप से यह प्रार्थना है कि वे इन गर्मियों में कुछ न कुछ अवश्य करें। वे इतना तो कर ही सकते हैं कि इन 60 दिनों में 4 माला प्रतिदिन के हिसाब से महायज्ञ की एक भागीदारी का 24000 जप पूर्ण कर दें। गायत्री प्रचार के ब्रह्म भोज के लिए लोगों में बेचने या सत्पात्रों को दान करने के लिए 40 न हो तो कम से कम 10 गायत्री अंक अवश्य मंगालें। दो महीने तक प्रतिदिन आधा घंटा जप करने के लिये समय निकालने तथा ब्रह्मभोज के लिए सवा रुपये के 10 अंक मँगा लेने को बोझ इतना भारी नहीं है जिसे उठाने पर भी प्रतिकूल परिस्थिति में भी कठिन हो। हम चाहते हैं कि अखंड ज्योति परिवार का एक भी सदस्य ऐसा न रहे जो इन गर्मियों में “कुछ भी न करने” की निराशाजनक बात कहे। जो लोग अब तक जप, हवन, ब्रह्मभोज आदि का बहुत कार्य कर चुके हैं उन्हें भी इन दिनों ये शुभ कार्य और भी उत्साह के साथ करने चाहिये।

गायत्री महायज्ञ के भागीदार तथा संरक्षक बढ़ाना आवश्यक है जिससे यह महान् आयोजन अधूरा न रह जाय। जहाँ 40 से अधिक गायत्री उपासक ही वहाँ अगले वर्ष हम स्वयं आने का प्रयत्न करेंगे। जहाँ अधिक गायत्री उपासक होंगे वहाँ एक संगठन बनने तथा यज्ञ आदि का आयोजन होने की भी व्यवस्था हो सकती है। इन सबकी नींव गायत्री अंक का अधिकाधिक प्रचार ही हो सकता है।

स्मरण रहे किसी को पाप या पुण्य की प्रेरणा देने से जो कार्य होते हैं उनके भले बुरे फल की दशांश भाग उस प्रेरणा देने वाले को भी मिलता है। आपके द्वारा जो गायत्री प्रचार होगा उससे अनेक आत्माओं को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलेगी और संसार व्यक्ति आपकी प्रेरणा से सन्मार्गगामी न हो, उनके में पुण्य की वृद्धि होगी। इस सत्परिणाम में आप इसके अंश के भागीदार होते हैं। आपकी प्रेरणा से यदि 100 व्यक्ति गायत्री उपासना में लगे तो 10 व्यक्ति यों की उपासना के बराबर पुण्य आपको सदैव अनायास ही प्राप्त होता रहेगा। इस प्रकार यह प्रचार साधना अतीव उपयोगी, अधिक फलदायिनी और बहुत सरल सिद्ध हो सकती है। कदाचित किसी के शुभ संस्कार जागृत न भी हों, तो भी आपने जो प्रयत्न और परिश्रम किया है उसका मूल्य और महत्व अन्तर्यामी प्रभु से छिपा न होगा और वह उसका समुचित प्रतिफल देगा। ग्रीष्म ऋतु को पुनीत काल आरंभ हो गया। इन दिनों सूर्य तपता है। पृथ्वी तपती है, नदी, समुद्र, तपते हैं आप भी कुछ तप कीजिए। सद्बुद्धि रूपी गायत्री ज्ञान गंगा को घर घर में प्रवाहित करने के लिए भागीरथी की तरह तप करने के लिए आप भी कटिबद्ध हो जाइए।

—श्रीराम शर्मा आचार्य


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