चैत्र नवरात्रि का सफल आयोजन।

May 1955

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(पं. राजकिशोर मिश्र, पटियाली)

विशद् गायत्री महायज्ञ का महान् कार्यक्रम अपनी सुनिश्चित गति विधि के साथ ठीक प्रकार चलता जा रहा है। गत चैत्र की नवरात्रि में भारतवर्ष के प्रायः उसी प्रांतों से गायत्री उपासक तपोभूमि में आये और शास्त्रीय विधि व्यवस्था के साथ आचार्य जी के संरक्षण एवं पथ−प्रदर्शन में सबने अपने अनुष्ठान पूर्ण किये। प्रातःकाल 3॥ बजे उठने की घण्टी बज जाती थी। नित्य कर्म से निवृत्त होकर लोग 4॥ बजे जप पर बैठ जाते थे। तीनों यज्ञ शालाओं में सूर्योदय के समय यज्ञ प्रारम्भ हो जाते थे। यह जप और हवन का कार्यक्रम प्रायः 10॥ बजे समाप्त होता था। तीनों यज्ञ शालाओं पर विद्वान्, वेदपाठी आचार्यों द्वारा सब कार्य शास्त्रोक्त पद्धति से संचालित होता था। बारी−बारी से सभी साधक हवन करते थे। प्रायः सभी साधकों को प्रतिदिन हवन करने का अवसर मिलता था।

मध्याह्न का भोजन विश्राम के बाद 2॥ से 6॥ बजे तक प्रवचन होते थे। गायत्री के तपस्वी उपासक श्री. प्रभु आश्रित जी महाराज, दर्शनशास्त्र एवं अध्यात्म तत्वज्ञान के मर्मज्ञ प्रो. त्रिलोकचन्दजी, श्री स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज, श्री गोस्वामी कृष्ण बल्लभ जी व्याख्यानवाचस्पति आदि अनुभवी सत्पुरुषों के आध्यात्मिक विषयों पर बड़े ही मार्मिक प्रवचन हुए। आचार्य जी का प्रवचन भी नित्य ही होता था। इन अनुभव पूर्ण शिक्षकों ने श्रोताओं को बहुत प्रभावित किया।

सायंकाल को 6॥ बजे गायत्री मंदिर की पूजा उपासना में तथा शेष रहे हुए जप को पूर्ण करने में साधक लग जाते थे। भोजन करने के बाद भगवत् स्मरण करते हुए सब लोग शयन करते थे। तीन दिन सामूहिक तीर्थ यात्रा का कार्यक्रम रखा गया था। एक दिन रेल से सब लोग वृन्दावन गये। एक दिन मोटर द्वारा गोवर्द्धन, जतीपुरा, राधाकुँड, नन्दगाँव, बरसाना की यात्रा हुई। एक दिन मोटर से गोकुल, महावन, ब्रह्मांड घाट, दाऊजी के दर्शन किये गये। सामूहिक तीर्थ यात्रा का आनन्द बड़ा ही सरस तथा आनन्द दायक रहता था। अन्तिम दिन सबने अपने अपने अनुष्ठानों का तर्पण, मार्जन किया और पूर्णाहुति की। जिन्हें यज्ञोपवीत तथा मंत्र दीक्षा लेनी थी उनके लिए वह संस्कार विधिवत् कराया गया। विदाई का हृदय को गद्-गद् कर देने वाला दीक्षान्त भाषण देते हुए आचार्य जी ने भागीदारी के प्रमाण−पत्र, यज्ञ भस्म, माता का चित्र, प्रसाद आदि देते हुए आगन्तुकों को आशीर्वाद के साथ विदा किया।

तपोभूमि में सुविधापूर्वक 50−60 व्यक्ति यों के ठहरने का स्थान है। पर नवरात्रि में लगभग 200 साधक ठहरे हुए थे। स्थान संकोच होते हुए भी परस्पर का प्रेम, सहयोग तथा सेवा भाव इतना अधिक था कि किसी को कुछ असुविधा प्रतीत होना तो दूर रहा सभी इस स्वर्गीय वातावरण में रहने के अपने सौभाग्य की सराहना करते थे। विदा होते समय अधिकाँश की आँखों से आँसू छलकते थे, यहाँ से जाने की इच्छा न होते हुए भी साँसारिक कर्त्तव्यों की विवशता के कारण जाना पड़ रहा था, इससे सभी के चित्त बड़े खिन्न दीखते थे। साधक आपस में गले मिलते और फिर आकर आपस में मिलने की प्रतिज्ञा करते थे। गायत्री परिवार वस्तुतः एक परिवार है इसका प्रत्यक्ष दृश्य इन नवरात्रि के दिनों में आंखों के आगे से प्रत्यक्ष घूम जाता था। निराहार केवल जल लेकर नौ दिन उपवास करते हुए भी आचार्य जी सब साधकों का जितना ध्यान रखते थे उससे उनका वात्सल्य और स्नेह सर्वत्र फैला फिरता दीखता था। उन दिनों पृथ्वी पर स्वर्ग के दृश्य आंखों के सामने यहाँ घूमते हुए दृष्टिगोचर होते थे। इस प्रकार नवरात्रि को आयोजन बड़े ही आनन्दमय वातावरण में समाप्त हुआ।

आगरा निवासी श्री भगवती प्रसाद गुप्त ने इसी पुनीत अवसर पर विधिवत् वानप्रस्थ लेकर अपना जीवन गायत्री माता के चरणों में अर्पण कर दिया। अब वे गायत्री तपोभूमि की सेवा साधना में ही सर्वतोभावेन लगेंगे। संस्कृत के उद्भट विद्वान प. जय नारायण जी ब्रह्मचारी ने गायत्री तपोभूमि में रह कर संस्कृति विद्यालय चलाने का व्रत लिया। खण्डवा के पं. नन्दकिशोर जी उपाध्याय जो सार्वजनिक सेवा एवं स्वाध्याय में ही अपना जीवन लगाते रहे हैं। उन्होंने घोषणा की कि गायत्री ज्ञान प्रसार में अपना जीवन लगाने को संकल्प करते हैं और अगले वर्ष इसी चैत्र में होने वाले नरमेध यज्ञ में अपना जीवन विधिवत् होने देंगे। सिद्ध श्री स्वामी सन्तोषानन्द जी महाराज यहाँ की वस्तुस्थिति को देखकर इतने प्रभावित हुए हैं कि उन्होंने अपने अन्यत्र के कार्यक्रमों को स्थगित करके यहीं निवास करने का निश्चय किया है। पं. भरतराम अवस्थी भी ऐसा ही निर्णय करने की बात सोच रहे हैं। पं. तारकेश्वर जी का झा तो गतवर्ष से ही अपना सब कुछ होम कर तपोभूमि में अनन्य सेवा कर रहे हैं। आत्मदान करके गायत्री माता की महा महिमा का पुनीत संदेश घर घर पहुँचाने के लिए अनेक और भी आत्माएं तैयारी कर रही हैं। अपने पारिवारिक कार्यों को करते हुए, अधिक से अधिक समय बचा कर अपने क्षेत्र में कार्य करते रहने वाली जागृत आत्माएं तो अनेक हैं जो अपने अपने क्षेत्र में अपने आपको दीपक की तरह जलाकर प्रकाश फैला रही हैं। इस गतिविधि को देखते हुए यह सोचने में तनिक भी कठिनाई नहीं होती कि लुप्त प्रायः गायत्री विद्या का संदेश घर घर पहुँचेगा और उसके फलस्वरूप भारतीय संस्कृति की इस देश में शीघ्र ही पुनः प्रतिष्ठापना होगी।

गायत्री परिवार के सभी सदस्यों को क्रमशः एक दूसरे से परिचित करा देने और पूरे परिवार का एक स्थिर सम्मेलन स्थायी रीति से दृश्य रूप में उपस्थित कर देने की दृष्टि से ऐसा विचार किया गया है कि तपोभूमि के विशेष आयोजनों में आते रहने वाले साधकों के सामूहिक चित्र अखण्ड ज्योति में छपते रहें। इस प्रकार कुछ ही समय में प्रायः सभी गायत्री उपासकों को अन्य उपासकों के नाम और चित्रों से परिचय हो जायगा। इस योजना के अनुसार गत चैत्र की नवरात्रि में मथुरा आये हुए साधकों के कुछ चित्र इस मास की अखण्ड ज्योति में छापे जा रहे हैं। जो चित्र इस मास नहीं छप सके हैं वे अगले अंकों में छपेंगे। अब अगला सरस्वती यज्ञ जेष्ठ सुदी 1 से लेकर जेष्ठ सुदी 10 तक होगा। इसमें आने वालों के फोटो भी इसी प्रकार छपेंगे जिससे जो लोग मथुरा न आ सकें उन्हें घर बैठे यहाँ आने वालों का परिचय प्राप्त हो सके। यह चित्र समूह आगे चल कर एक बड़ी पुस्तक चित्रावली के रूप में भी छाप दिया जायगा। जिसमें सभी गायत्री उपासक परस्पर भेंट करने का आनन्द घर बैठे ले सकें।

चैत्र नवरात्रि के सामूहिक अनुष्ठान में बहुत ही आनन्द रहा। इस आनन्द का लाभ करने के लिए लोग अपना मूल्यवान समय और दूर दूर से आने का कि राया भाड़ा खर्च करते हैं, इसके बदले में जो कुछ उन्हें प्राप्त होता है वह कहीं अधिक मूल्य का होता है। इस प्रकार इन उत्सवों में भाग लेने वाला प्रत्येक उपासक प्रसन्नता, आशा, आनन्द, उत्साह और सफलता की मुख मुद्रा के साथ विदा होता है। थोड़े दिनों यहाँ रह लेने पर ऐसा लगता है मानों यहीं हमारा स्थायी घर है, इसे छोड़ते समय प्रायः सभी की आँखें भर आती हैं। तपोभूमि जिन उद्देश्यों एवं आदर्शों को लेकर बनी है उसकी मूर्तिमान स्वर्गीय झाँकी ऐसे अवसरों पर आसानी से सभी की आँखों के सामने उपस्थित हो जाती है।

जेष्ठ सुदी 1 से लेकर 10 दिन तक सरस्वती यज्ञ का अब दूसरा आयोजन है। इसमें विद्यार्थियों को जीवनोपयोगी शिक्षाओं की ठोसे शिक्षा व्यवस्था अनुभवी विद्वानों द्वारा कराई जायगी साथ ही पुष्टिवर्धक औषधियों के हवन से छात्रों का मानसिक धरातल विकसित किया जायगा। इसमें भाग लेने के इच्छुक अभी से स्वीकृति प्राप्त कर लें क्योंकि सीमित संख्या में ही छात्र लिये जावेंगे।


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