दिव्य ज्ञान की बाती (Kavita)

July 1955

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जब−जब असद् वृत्ति सद् पर है निज प्रभाव दिखलाती, अशिव प्रबल होता है, शिव की महिमा है घट जाती, अन्धकार, अज्ञान और हिंसा का ताण्डव होता, ज्योति नहीं पन्थ कर पाती, दिव्य ज्ञान की बाती, तब मंगल की दीक्षा के हित यज्ञ किये जाते हैं! सुर, नर, मुनि सब इसमें होता बनने को आते हैं!!

इसी यज्ञ की कल करुणा बन करके गंगा आयी, इसी यज्ञ की धूम्र राशि ने चरम शान्ति निखरायी, इसके प्रति आस्था जीवन में नवल चेतना आती, इसका गन्धहास जड़ चेतन के हित अति सुखदायी, है आत्मा की शक्ति यज्ञ, मानवता की थाती है! कवि की वाणी युग−युग से ही इसका गुण गाती है!!

आमन्त्रण है आज आपका पावन आहुति दाता, शूल और संघर्ष भरे पथ के तुम भाग्य विधाता, यह न समझना इस आहुति का कुछ भी मोल नहीं है, एक ज्योति कण कितनों को ही लक्ष्य पन्थ दिखलाता, यह अतीत का सत्य, भविष्यत् मंगलमय की आशा! बने कर्म ही आज धर्म की मूर्तिमान परिभाषा!!


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