विचार की महान शक्ति

February 1953

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(श्री एम. जीवन मलिवा)

यह एटम बम जिसने जापान के विशाल, नगर हिरोशिमा को विध्वंस कर डाला वह परिणाम में तनिक, सा, बहुत छोटा-सा था। परन्तु उस एटम बम से भी महत्तर शक्तिमान वे अदृश्य और सूक्ष्म विचार थे जिन्होंने उसकी उत्पत्ति को सोचा। अटम बम उन विचारों का एक स्थूल प्रतीक ही तो था। वही दशा संसार के प्रत्येक मूर्त पदार्थ की है जो मनुष्य द्वारा बनाया जाता है।

कितना विशाल या क्षुद्र होता है एक विचार? हम नहीं जानते कि विचार का किसी मूर्त सत्ता से कोई संबंध है, मस्तिष्क में उसके लिए कोई रासायनिक प्रक्रिया होती है अथवा किसी प्रकार के सूक्ष्म तत्वों से ‘विचार’ उत्पन्न होता है। किन्तु यदि वास्तव में किन्हीं मूर्त तत्वों के एकत्रीकरण से विचार उत्पन्न होता है तो एक विचार कितना सूक्ष्म और क्षुद्र होता होगा? एक भाव जो किसी बड़ी से बड़ी ध्वनि को उत्पन्न करता है, अधिक से अधिक जितनी सूक्ष्म बिन्दी के बराबर हो सकता होगा जो संसार के अत्यंत शक्तिशाली सूक्ष्म दर्शक यन्त्र से भी कठिनता-पूर्वक देखा जा सके।

सब ओर ही इस विश्वास के समर्थन का वृहत् प्रमाण मिलता है कि क्षुद्र पदार्थ में शक्ति निहित है। विशाल भू-पिंड, हमारा यह शरीर, महासमुद्र की गहराई से हिमालय के उत्तुँग, गगन-चुम्बी शिखर तक प्रत्येक वस्तु, जो कुछ भी हम देखते हैं अणुओं का एकत्रीकरण है। छोटे-छोटे अणु जो हमारी नग्न दृष्टि को तो दिख ही नहीं सकते, संसार में अति शक्तिशाली सूक्ष्म दर्शन यन्त्र से भी नहीं देखे जा सकते, उन्हीं से सृष्टि रची गई है। आज तक कभी किसी ने ‘अटम’ (परमाणु) को नहीं देखा कि वह कितना छोटा है।

स्थापत्यकार जानता है कि छोटी वस्तु का कितना महत्व है। एक छोटी-सी इटो जो उसके हाथ में है उसी में विशाल नभचुम्बी महल का रहस्य भरा हुआ है। इटों के ढेर में से एक इट को देखकर यह कहना कि- इतनी ऊँची कुतुबमीनार, इतनी छोटी-छोटी इटों से कैसे बन सकती है- कौन सुनेगा?’

विश्व-कोष एक-एक अक्षर जोड़कर शब्दों और वाक्यों द्वारा रचा गया है। संसार का सबसे महान ग्रन्थ महाभारत एक-एक शब्द तथा छोटे-छोटे श्लोकों का संग्रह है। वर्ष छोटे-छोटे तुच्छ मिनटों सैकड़ों का इकट्ठा रूप ही तो है। एक पेड़ में लाखों छोटे-छोटे पत्ते, टहनियाँ हैं और सबसे बड़े पेड़ का विशाल तना छोटी-छोटी, तुच्छ, सूक्ष्म पोली नलियों से भरा है।

यह कहने में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं, यह तो ध्रुव सत्य है, कि कोई बड़ी वस्तु संसार में है ही नहीं। क्योंकि बड़े से बड़ा पदार्थ केवल क्षुद्र कणों का अंगों का एक समूह मात्र है।

यही बात हमारे जीवन के संबंध में भी है। यह क्षुद्र वस्तुओं से ही बना है। हमारा जीवनकाल पलों और विपलों में गिना जा सकता है, क्योंकि बिना क्षणों के, जो एक दूसरे से बिलकुल भिन्न होते हैं, हम अपना वर्ष व्यतीत नहीं कर सकते। जो कुछ भी कार्य हम करते हैं वह सब छोटी-छोटी क्षणिक क्रियाओं की एक शृंखला है। भले ही हम मील भर चौड़ी नदी का पुल बना रहे हों, सायंकाल का भोजन तैयार कर रहे हों अथवा एक सुन्दर नाटक लिख रहे हों, है यह सब छोटी-छोटी क्रियाओं का समूह ही। जब हम यात्रा करते हैं और एक मील पहुँचते हैं तो चाहे हम अतिशीघ्र एक मिनट में ही एक मील चल लिये, परन्तु हम चले एक-एक इंच करके ही।

फिर क्या हम एक छोटी सी वस्तु की अवहेलना इसलिए कर सकते हैं कि वह तुच्छ है, निरर्थक है, निष्फल है? वास्तव में तो यदि हम से उसका तनिक भी संबंध है, तो वह अवश्य ही विशेष है, अत्यावश्यक है, विचारणीय है। छोटे से बड़े, तुच्छ से महान् अपूर्ण से ही पूर्णता की सृष्टि हुई है। यह असत्य नहीं कहा जा सकता कि अतिसाधारण-सी भूल भयंकर परिणाम की जननी है। स्याही की एक छोटी-सी बूँद यदि नव-वधु की भव्य साड़ी पर पड़ जाये तो आकार में तो वहाँ भी वह छोटी ही होगी परन्तु भव्यता में वह कितना बड़ा अंतर डाल देगी कितना विशद होगा वह तुच्छ बूँद का प्रभाव।

ठीक इसी प्रकार एक अशुभ विचार शुभ विचार के समूचे प्रभावात्मक क्षेत्र को समाप्त कर देता है। हैजे के रोग का एक अदृश्य कीटाणु कुछ क्षणों में ही असंख्य रूप धारण कर लेता है। देखते-देखते चमकते हुए लाल-लाल शरीर को मुरझा कर निचोड़े हुए नींबू सा कर देता है। निराशा भरे एक सूक्ष्म विचार का भी विस्तृत प्रभाव ठीक वैसा ही होता है जैसा कि एटम बम का, जो एक विशाल नगर को ध्वंस कर देता है।

एक ‘शब्द’ कितना तुच्छ और अचिन्त्य है। परन्तु केवल ‘एक शब्द’ ही कभी-कभी कहने वाले की नींद हराम कर डालता है और कभी सुनने वाले के जीवन को घुन बन कर लग जाता है। सोचिये तो सही, शब्द दीखते तो नहीं, पर चुभते कितने अधिक हैं। हम में से कौन है जो शब्दों के प्रभाव से अपरिचित है। शब्द जिस प्रकार घाव कर देता है वैसे ही घाव भर भी देता है।

ऐसे अनेक रोगी मिलेंगे जिनको महीनों ज्वर रहता था। वे दिन में बीस बार थर्मामीटर देखते थे और पचास बार उनकी उँगलियाँ नाड़ी की गति जानने को उतावली रहती थीं। वे दुनिया से निराश मृत्यु की बाट जोह रहे थे। परन्तु वह था केवल उनका भ्रम। उनका ‘नकारात्मक’ विचार उन्हें न जीवित रहने देता था और न चैन लेने देता था। परन्तु उन्होंने अशुभ नकारात्मक विचार छोड़ा और चंगे हो गये। वह स्वस्थ तो थे ही।

यही विचार जातियों को बड़ी प्रेरणा देते हैं। जब अनेक मनुष्यों के जीवन में ‘एक विचार’ आने लगता है तभी कल्याण होता है। किसी भी दल का जनक एक विचार विशेष होता है और वही बन जाती है जातीयता। सारे संसार में केवल एक ‘शुभ, आशाप्रद विचार’ की आवश्यकता है। जीवन को उन्नत और सुखमय बनाने के लिए विचारों पर कड़ी दृष्टि रखने से कभी कष्ट नहीं भोगना पड़ता।


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