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November 1952

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“निर्दोष सरल यौवन एक अमूल्य सम्पत्ति है। वह भोगलिप्सा में जिसे भूल से सुख कहा जाता है-लुटा देने की वस्तु नहीं है।”

“ संसार में सबसे बढ़कर प्रेम है, प्रेम साक्षात् परमात्मा का स्वरूप है, इसलिए जहाँ प्रेम है वहाँ सुख और शान्ति का साम्राज्य है। वह प्रेम स्वार्थ त्याग पूर्वक दूसरों की आत्मा को सुख पहुँचाने से होता है।”

“जिस प्रकार अवगुणों की तरफ ख्याल न करके उनके गुणों को ग्रहण करना ही बुद्धिमानी है।”

“जिस प्रकार ऊसर जमीन में बीज नहीं जमता, उसी प्रकार दुष्ट मनोवृत्तियों से घिरे हुए हृदय में सद्वृत्तियों का प्रादुर्भाव नहीं होता।


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