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September 1950

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सूर्य का उदय पूर्व की जगह पश्चिम में हो सकता हैं, सुमेरु का स्थानान्तरण हो सकता है। अग्नि शीतल हो सकती है, पर्वत की शिलाओं में कमल का फूलना सम्भव हो सकता है। किन्तु सज्जनगण का अपने वचन से टलना कभी सम्भव नहीं।

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हाथों की शोभा दान देने में है। सिर की शोभा बड़ों के चरणों में गिरने में है। मुख की शोभा सत्य भाषण में है, बलशाली की भुजाओं की शोभा असहायों की रक्षा करने में है। हृदय की शोभा सद्वृत्तियों को धारण करने में है एवं कानों की शोभा शास्त्र श्रवण में है।

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सत्पुरुष वे हैं जो अपना स्वार्थ त्याग करके दूसरों का हित करने में तत्पर रहते हैं। अपना स्वार्थ की रक्षा करते हुए भी जो दूसरों का हित साधन करते हैं वे सामान्य मनुष्य हैं। किन्तु जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों का नुकसान करते हैं उनको समझ में नहीं आता क्या कहा जाये।


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