मिलने जुलने का शिष्टाचार।

September 1950

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसका संसार में अनेक मनुष्यों से अनेक प्रकार से सम्बन्ध होता है। सम्बन्ध, स्नेह अथवा काम काज उपस्थित होने पर एक मनुष्य को प्रायः दूसरे के यहाँ मिलने के लिये जाना पड़ता है। कभी कभी किन्हीं परिचित व्यक्तियों के मध्य में अपरिचित व्यक्तियों से परिचय कराने का संयोग भी मिलता है। इसलिये मेल मुलाकात के समय शिष्टाचार बरतना मनुष्य की एक सामाजिक आवश्यकता है।

किसी से भेंट करने के लिये जाते समय आपको उसके सुभीते का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। बिना किसी अनिवार्य आवश्यकता के, दिन निकलते ही, भोजन के समय, ठीक दोपहरी में या अधिक रात गये, किसी के यहाँ न जाना चाहिये। किसी के घर बिना काम बार-बार जाना भी उचित नहीं है। यद्यपि घनिष्ठ मित्र एक दूसरे के यहाँ दिन में कई बार बिना संकोच जाते हैं। पर इस अवसर पर भी शिष्टाचार का ध्यान रखना पड़ता है। भेंट करते समय भेंट करने वाले के पद अथवा अवस्था के अनुसार उचित अभिवादन अवश्य करना चाहिये। बड़े मनुष्यों को छोटे के अभिवादन का उत्तर देते समय ठहरना चाहिए। अभिवादन करते समय कर्त्ता द्वारा जो शब्द प्रयोग किया जाये, बराबर वालों में उसका उत्तर उसी शब्द द्वारा दिया जाना चाहिए। बड़े लोगों की ओर से उत्तर में ‘प्रसन्न रहो’ आदि शब्द भी कहे जा सकते हैं। भेंट होने पर चुपचाप एक दूसरे का मुँह देखते रहना सभ्यता नहीं है। ऐसी अवस्था में तुरन्त कोई न कोई आवश्यक बात छेड़ देनी चाहिये।

किसी के यहाँ भेंट करने के लिये जाते हुये हमें उसके समय का भी अवश्य ध्यान रखना चाहिये। कार्यव्यस्त आदमियों के यहाँ समय की बड़ी कमी होती है इसलिये वहाँ बिना काम अधिक देर तक नहीं ठहरना चाहिये। जहाँ तक हो सके कम से कम समय में अपनी बात समाप्त करके उन्हें दूसरे कार्यों के लिये अग्रसर होने का अवसर देना चाहिये। यदि व्यक्ति बातचीत में उदासीनता शिथिलता या उकताहट दिखाये तो समझना चाहिये कि उसे अब अधिक बात करने का सुभीता नहीं है। इसलिये ऐसा संकेत पाकर वहाँ से जल्दी अपनी बात समाप्त करके चलने का उपक्रम करना चाहिये। चलते समय यदि आपसे कुछ देर और बैठने का आग्रह किया जाये तो उस अनुरोध को मान कर वहाँ कुछ देर और बैठा जाये फिर कुछ समय पश्चात आज्ञा लेकर वहाँ से चलना चाहिये। दिन में एक से अधिक बार भेंट होने पर हर बार मिलने पर अभिवादन किया जा सकता है जहाँ तक हो अभिवादन के पश्चात एक आध वाक्य द्वारा मिलने वाले कुशल मंगल पूछ लेना चाहिये।

पश्चिमी सभ्यता के अनुसार किसी के द्वार पर जाकर पुकारने के लिए साँकल खटखटाने या दरवाजा भड़काने का रिवाज है किन्तु हमारे यहाँ इस प्रकार की बात अच्छी नहीं लगती। किसी के दरवाजे पर जाकर बार-बार जोर जोर से पुकारने वाले को किसी के आने की प्रतीक्षा करनी चाहिये। मकान के अन्दर भेंट कर्त्ता को उसी कमरे में जाकर बैठना चाहिये जो इस कार्य के लिये नियुक्त हो। पुरुषों की अनुपस्थिति में किसी के घर जाकर बैठना सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है। जहाँ पर्दे का रिवाज न हो वहाँ अनुमति लेकर स्त्रियों की उपस्थिति में जाकर भी बैठा जा सकता है। घर में तभी प्रवेश करना चाहिये जब वहाँ घर का कोई न कोई सदस्य उपस्थित हो। किसी के घर में बैठ कर उसके कागज-पत्र, पुस्तकें या अन्य पदार्थों को उलट पुलट करके रखना या प्रत्येक वस्तु को घूर-घूर कर देखना सर्वथा अनुचित है।

किसी बड़े आदमी से मिलने को जाते समय आपको इस बात का पता लगा लेना चाहिये कि उसे किस समय आपसे मिलने का अवकाश है यदि पहले से मिलने का समय निर्धारित कर दिया जाये तो और अच्छा है। नियत समय पर जाकर पहले आपको अपने आने की सूचना चिट लिखकर या जबीनी किसी आदमी के द्वारा उस सज्जन के पास पहुँचा देनी चाहिये। बुलाये जाने पर उसके पास जाकर आपको उसकी अनुमति से उपयुक्त आसन ग्रहण करना चाहिये और संक्षेप में अपनी भेंट का तात्पर्य समझा देना चाहिये। कार्य हो जाने पर केवल थोड़ी देर बैठ कर पूर्वोक्त महानुभाव से आज्ञा लेकर चला आना उचित है।

जिस तरह किसी के यहाँ बार-बार जाना अनुचित है उसी तरह किसी के यहाँ कभी न जाना भी उचित नहीं है। किन्तु यदि आपको लगे कि आपके आने से गृह-स्वामी को खेद होता है तो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिये। गोस्वामी जी ने कहा है।

“आवत ही हरसे नहीं, नैनन नहीं सनेह।

तुलसी तहाँ न जाइये कंचन बरसे मेह॥”

किसी के साथ बाहर सड़क पर खड़े होकर घन्टों बातें करना उचित नहीं है। यदि आपको किसी लम्बे विषय पर आवश्यक बात करनी हो तो रास्ते में भेंट होने पर कुछ दूर साथ चल कर वह बात समाप्त की जा सकती है पर इस बात को ध्यान रखना चाहिये कि किसी को आपकी बात सुनने के लिये ही फर्लांगों और मीलों का चक्कर न काटना पड़े।

मुलाकाती के जाने के पूर्व भी आपको पान सुपाड़ी या इलाइची आदि द्वारा उसका आदर करना चाहिये और जिस समय वह जाने लगे तो उसकी योग्यता और परिस्थिति के अनुसार खड़े होकर द्वार तक जाकर या 10-20 कदम साथ चल कर और उसे अभिवादन करके आदर-पूर्वक विदा देनी चाहिये। इस प्रकार शिष्टाचारों का ध्यान रखने से मनुष्य सभ्य कहलाने का अधिकारी बनता है।


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