प्रातःकाल जरा जल्दी उठा कीजिए!

September 1950

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(श्री वशिष्ठ नारायण जी चतुर्वेदी)

ब्राह्ममुहूर्त की सुशीतल वायु में कुछ ऐसी शक्ति है जिससे रक्त की चमक बढ़ती है, प्राण जीवनी शक्ति से परिपूर्ण होते हैं, समस्त शरीर में तेजस्विता की वृद्धि होती है, अधरोष्ठ रक्तानुरक्षित होते हैं और शरीर के अंग-प्रत्यंग सुगठित होते हैं।

आधुनिक युग में लोगों की स्वास्थ्य हानि के जितने कारण हैं उनमें सबसे प्रधान कारण है सोने जागने के नियम का व्यक्तिक्रम। देर में उठने से जो हानियाँ होती हैं उनका विचार आजकल के सुशिक्षित लोग नहीं करते।

यदि विचार पूर्वक देखा जाये तो सवेरे उठने के अभ्यास से मनुष्य का ‘प्रकृति-जीवन’ बहुत बढ़ जाता है। ‘प्रकृति-जीवन’ क्या है? लड़कपन की क्रीड़ा, स्नान, भोजन, निद्रा, विश्राम, मलमूत्र त्याग आदि कार्यों में हम लोगों का जो समय बीतता है उसे छोड़कर जितने समय में हम यथार्थ गौरवजनक कार्य करते हैं वही प्रकृति-जीवन कहा जा सकता है। मानव जीवन का बहुत कम समय ऐसे सत्कर्म में बीतता है। उदाहरणार्थ उन दो व्यक्तियों को लें जिनमें एक प्रतिदिन भोर में चार बजे उठ कर नियमित रूप से अपना कार्य आरम्भ कर देता है और दूसरा छह बजे उठ कर कार्य में प्रवृत्त होता है। यदि वे दोनों रात में एक ही समय शयन करें तो चालीस वर्ष समाप्त होने पर गणना द्वारा विदित होगा कि पूर्वोक्त व्यक्ति को शेषोक्त व्यक्ति की अपेक्षा दश वर्ष अधिक कार्य का समय मिला अर्थात् उसके प्रकृत-जीवन में दश वर्ष की वृद्धि हुई, क्योंकि कार्य ही जीवन का परिचायक है और अपने जीवन में जो जितना अधिक कार्य कर सकता है वह उतना ही अधिक दीर्घजीवी कहा जाता है।

इस भूमण्डल पर जितने लोग दीर्घजीवी और चिरस्मरणीय हो गये हैं वे सभी ब्राह्ममुहूर्त में उठने के लिये प्रसिद्ध थे। भोर में नहीं उठने से प्रातः-काल के कार्य-कलाप यथोचित ढंग से सम्पन्न नहीं हो सकते। देर करके उठने से प्रातः कृत्यों में ही दिन का बहुत सा समय व्यतीत हो जाता है और अन्योन्य कार्य समूह यथासमय सम्पन्न नहीं हो सकते। सुप्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक महात्मा अरस्तू का कथन है, “ भोर होने के पहिले ही शय्या त्याग करने का अभ्यास करना उचित है। ऐसा करने से धन, स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। “अफ्रीका देश के नीग्रो लोगों में एक कहावत प्रचलित है कि जो भोर में उठता है उसके भ्रमण का पथ संक्षेप होता है।”

रूस के सम्राट् पीटर दि ग्रेट लन्दन में जहाज बनाने की विद्या सीखते समय जैसे सूर्योदय के पहले उठा करते थे वैसे ही सिंहासनारूढ़ होकर प्रजा पालन करते समय भी भोर में शय्या त्याग किया करते थे। सुप्रसिद्ध उपन्यासकार सर वाल्टर स्काट प्रतिदिन भोर में उठ कर अपने हाथ से चिराग जलाते और कार्य करने लगते। जब नौ बजे प्रातःकालीन भोजन का समय होता तभी वे अपना कार्य बन्द करते उसके पहले कभी वह अपना कार्य छोड़कर नहीं उठते थे। यदि वह इस प्रकार नियमबद्ध कार्य नहीं करते, तो कदापि इतने ग्रंथों की रचना करने के साथ साथ अपने दैनिक कार्य समूह को सुचारु रूप से सम्पादन करने में समर्थ न होते। महात्मा गाँधी भी तीन बजे ही शय्या का परित्याग कर देते थे।

प्रसिद्ध ग्रंथकार ट्रोलोप डाकखाने में नौकरी करते थे। उन्होंने प्रतिदिन भोर में उठ कर ग्रन्थ रचना करने की प्रतिज्ञा कर ली थी। इस प्रकार नियमित रूप से कार्य करने से ही वह अंग्रेजी साहित्य भण्डार को इतने उपन्यासों, इतने जीवन चरित्रों तथा अनेकों भ्रमण वृत्तान्तों से भरने में समर्थ हुए थे।

भोर में उठने के लिये रात में नौ-दस बजे के भीतर ही सो जाना आवश्यक है। अधिक रात बीतने पर सोने से भोर में शय्या त्याग करना तो कठिन है, यदि करे भी तो उससे लाभ के बदले हानि ही होती है। शरीर दुर्बल और अस्वस्थ हो जाता है, माथा भारी हो जाता है, आँखों में जलन पैदा होती है और कार्य करने में उत्साह नहीं होता। अतएव भोर में 4, 5 बजे उठने वाले को रात में नौ दस बजे सो जाने का अभ्यास करना होगा और ऐसा ही करना उचित भी है।

रात्रि में सब भावनाओं को मन से हटाकर शान्त चित्त से शयन करने का अभ्यास करना चाहिये। ऐसा करने से अच्छी नींद आती है, जिससे सवेरे उठने पर आदमी का मन-प्रसन्न तथा उत्साहपूर्ण होता है और वह अपने कार्यों का उत्तम रूप से सम्पादन करने में समर्थ होता है। यही नहीं, इस अभ्यास से अनेक प्रलोभनों, विपत्तियों तथा आशंकाओं से रक्षा होती है।

यदि आप दीर्घजीवी बनना चाहते हो, अपने हृदय को वसन्त कालीन वायु प्रवाह की तरह आनन्दोल्लास पूर्ण करना चाहते हों, अपनी धमनियों में झरझर शब्द करती हुई प्रवाहित होनेवाली छोटी नदी की धारा की भाँति स्वच्छ रक्त की धारा प्रवाहित करने की अभिलाषा रखते हों, आयु को बढ़ाने वाली पुष्प-फलादि के सौरभ से पूर्ण प्रातः समीरण का सेवन करके अपने जीवन की तेजस्विता बढ़ाने की इच्छा रखते हों, तो खूब तड़के शय्या त्याग करने का अभ्यास करें।

यदि आप इस जीवन में कोई महत्व का कार्य करके अपने मानव जन्म को सार्थक बनाना चाहते हों, यदि अकाल मृत्यु से बचने की अभिलाषा रखते हों तो प्रतिज्ञा पूर्वक नियमित रूप से भोर में उठा करें तथा प्रातः कालीन वायु का सेवन करें और ईश्वर का नाम लेकर उत्साह पूर्वक अपने कार्य में प्रवृत्त हों।


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