निःस्वार्थ सेवा अपना स्वयं पुरस्कार है। इसलिये सेवा निःस्वार्थ ही होनी चाहिये। यदि सेवा में स्वार्थ भावना का सन्निवेश हुआ तो वह सेवा ही न रही।