(लेखक-श्रीमधुकर शास्त्री, बी.ए.)
जनसंख्या की विगत रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतवर्ष के निवासियों की औसत आयु से अधिक नहीं है जब कि अन्य देशवासियों की आयु इससे कहीं अधिक है। हमारे देश में जो बच्चे पैदा होते हैं उनमें प्रति हजार दो सौ बच्चे तो तत्काल मर जाते हैं। यही हालत औरतों की है। जो महिलाएँ कम उम्र में गर्भाधान करतीं हैं वे असमय में ही काल कवलित हो जाती हैं। बहुत सी महिलाएं तो प्रसूति-गृह के बाहर भी नहीं हो पातीं और इसी बीच उनके जीवन की इतिश्री हो जाती है। खोज करने पर पता चला है कि मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षा हिन्दू महिलाओं की असामयिक मृत्यु अधिक होती है। इसके दो कारण हैं। पहला कारण कम उम्र में शादी का होना और दूसरा कारण जो इसी कारण के अंतर्गत ही आ जाता है, कम उम्र में स्त्रियों का गर्भाधान करना है।
सर जान मेगा नामक अंग्रेज ने बहुत छानबीन के बाद बतलाया है कि भारत में एक हजार औरतों में सौ औरतें प्रसूतिकाल में बच्चा पैदा होने के पहले ही मर जाती हैं और दो लाख स्त्रियाँ प्रतिवर्ष बच्चा जनने के बाद मर जाती हैं। कुछ दिन पूर्व जेनेवा में भाषण करते हुए श्रीमती तरनी सिन्हा ने बतलाया था कि भारत की महिलायें अपने बच्चों को अफीम खिलाया करती हैं इस कारण एक हजार में 246 लड़के मौत के शिकार बन जाते हैं और जो शेष रह जाते हैं उनके अवयव अफीम खाने के कारण खराब हो जाते हैं। 57304 आदमी विक्षिप्त, 230895 लूले, 601370 बहरे और 147911 आदमी कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं। सन् 1930 से लेकर सन् 1949 तक 77233 आदमी चेचक का शिकार हुए। 1338915 आदमी प्लेग से मरे। 227438 आदमी हैजे से मरे। 3898323 आदमी बुखार आने के कारण मर गये। इससे यह बात स्पष्ट हो गयी कि भारतवासियों के स्वास्थ्य की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है। हमारे देश की आबादी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है इसी कारण यहाँ अधिकाँश बच्चे अस्वस्थ पैदा होते हैं और जीवन भर वे रोगी ही बने रहते हैं। भले आदमियों की अपेक्षा उन लोगों की आबादी अधिक बढ़ रही है जिनके लिये भर पेट भोजनों की व्यवस्था होना भी कठिन है। फल यह हो रहा है कि भुखमरों की संख्या बढ़ रही है।
अब प्रश्न यह है कि बढ़ते हुए रोग को किस तरह से रोका जाए। किस उपाय का सहारा लेने से देश की वर्तमान स्थिति को सुधारा जा सकता है। अन्य देशों ने जिन उपायों के द्वारा अपने देश की आबादी को कम किया है यदि भारत में उन्हीं उपायों से काम लिया जाय तो बहुत लाभ हो सकता है। अन्य देशों में यदि कोई आदमी मृगी रोग से पीड़ित होता है तो देश की सरकार उसे विवाह करने की अनुमति नहीं देती, लेकिन भारत की दशा इसके सर्वदा विपरीत है। यहाँ सड़क पर भूखे पेट सो जाने वाले भिखारी भी विवाह करते हैं और वे एक नहीं दो दो चार चार सन्तानें पैदा करते हैं। मोण्टना प्रदेश में यह नियम है कि विवाह के पूर्व वर वधू की डाक्टरी परीक्षा होती है। जब डॉक्टर उन लोगों को पूर्ण स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र दे देता है तब विवाह करने की आज्ञा दी जाती है। जर्मन इस सम्बन्ध में तनिक उदारता से काम लेता है वहाँ पर केवल उन लोगों के स्वास्थ्य की परीक्षा होती है जो कुष्ठ, मृगी या दूसरे प्रकार के किसी अन्य घातक रोग से पीड़ित होते हैं। हमारे देश के लिये यह बड़े दुःख की बात है कि यहाँ पर इस प्रकार के विवाह करने वालों पर किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं है।
लोग इस बात का कारण जानना चाहेंगे कि भारतवासी विवाह और सन्तान पैदा करने के लिये क्यों उत्सुक रहते हैं। इसका प्रधान कारण हिन्दुओं की यह धारणा है कि पुत्र के तर्पण किये बिना मृत व्यक्ति की आत्मा को शान्ति नहीं मिलती। मि. चाटलने ‘भारत में जन संख्या का प्रश्न’ नामक पुस्तक में लिखा है कि यदि किसी उच्च घराने की कोई लड़की अविवाहिता रह जाए तो भारतवासी उसे बहुत बुरा समझेंगे और लड़की के पिता की 3 पुश्त तक को इसका कुफल भोगना पड़ेगा। या तो वे जाति बहिष्कृत कर दिये जायेंगे या किसी अन्य रूप से समाज अपने क्रोध का बुखार उतारेगा।
ऐसे विवाह कदापि न होने देना चाहिए जिनके द्वारा विकृत सन्तानें पैदा होने की सम्भावना हो। यदि यह मालूम हो जाए कि कोई आदमी किसी ऐसे रोग से पीड़ित है कि विवाह के बाद यदि उसके सन्तान होगी तो सन्तान में रोग का अंश रहेगा तो ऐसे आदमी का विवाह हर्गिज न होने दिया जाए। यदि इस पद्धति का अनुसरण किया जाय तो थोड़े ही दिनों में भारत में स्वस्थ बच्चे पैदा होने लगें और बेकारी का प्रश्न भी बहुत कुछ मात्रा में हल हो जाए।
इन भ्रान्त विचारधाराओं का निवारण करके अविवाहित जीवन बिताने और अधिक आयु में विवाह करने को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। यदि राष्ट्रीय स्वास्थ्य की उन्नति करनी है तो अधिक बच्चे पैदा करने को बुरा समझने की प्रवृत्ति पैदा करना आवश्यक है।