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September 1950

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चन्दन का वृक्ष कटने पर भी गन्धविहीन नहीं होता, वृद्ध होने पर भी गजेन्द्र क्रीड़ा का परित्याग नहीं करता, ईख का माधुर्य कोल्हू में देने पर भी नष्ट नहीं होता, वैसे ही कुलीन भी, चाहे कितनी ही दुखावस्था में पड़ जाये, शील का त्याग नहीं करते।

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दूसरे का धन हरण करने में जो पंगु है, परनारी को कुदृष्टि से देखने में जो नेत्रहीन है, दूसरों की निन्दा करने में जो गूँगा है, वही संसार में सबका प्रियपात्र है।


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