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September 1950

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प्रेमपूर्ण व्यवहार संसार का प्रत्यक्ष अमृतरस है। जिससे प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जायेगा वह अवश्य ही प्रेमपूर्ण व्यवहार करेगा।

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धैर्य और सहिष्णुता दो महान गुण हैं। जिनके पास इनकी प्रचुरता है उसको और चाहिये ही क्या?

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अपने ही सदृश दूसरों को भी समझना चाहिये किसी को अपने से छोटा गिनना, उसकी भावनाओं का आदर न करना, अमानवोचित है।


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