हैजा से सावधान

July 1950

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(प्रो. मोहन लाल वर्मा, एम.ए., एल.एल.बी.)

जितनी तेज गर्मी पड़ेगी, उतनी ही रोगों से ग्रसित होने की संभावना अधिक है। तेज धूप तथा गर्म हवा में आने से, तेज गर्मी के समय हवा बन्द हो जाने से, गर्मी में मद्य का उपयोग करने से अथवा रेल के छोटे से डिब्बे में बैठने से भेड़ बकरियों की भाँति भर जाने से एक दम शरीर गर्म हो जाता है। रक्त में गर्मी का ताप क्रम अधिक होने के कारण कभी-कभी ज्वर तथा लू लगना, सर दर्द, जी मिचलाना, हैजा, वमन, प्यास, नकसीर इत्यादि प्रारंभ हो जाती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्दी अधिक लाभदायक है। गर्मी में स्वास्थ्य बनाने के लिए प्रायः अमीर लोग ठण्डे प्रदेशों में जाया करते हैं।

गर्मी का सबसे प्रधान रोग हैजा है। साधारणतः एक साथ दस्त और फैडडडड होना इसके लक्षण हैं। किन्तु इतना ही यथेष्ट नहीं है। कभी-कभी मामूली बदहजमी को हैजा मान कर लोग अनावश्यक रूप से भयभीत हो जाते हैं। सबसे बड़ी पहचान यह है कि हैजे की उल्टी एवं दस्तों से शीघ्र ही बड़ी कमजोरी का अनुभव होता है। रोगी का बदन टूटता है, तबियत बहुत घबराती है, प्यास निरन्तर वृद्धि पर रहती है। हैजे में रोग वृद्धि पर मूत्र बन्द हो जाता है। ज्वर प्रायः नहीं रहता। प्रारम्भिक अवस्था में मूत्र आता रहता है, पर वमन के अतिरिक्त पेट में दर्द बढ़ जाता है। प्यास तो रुकती तक नहीं। यदि इस रोग का आक्रमण तीव्र हो जाय तो मृत्यु शीघ्र ही हो जाती है। निर्बलता और प्यास यदि वृद्धि पर ही रहे तथा नेत्र भीतर धंस जायें, तो जान का खतरा समझना चाहिए और तुरन्त किसी वैद्य या डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए।

हैजा छूत का रोग है और जिनका उदर ठीक नहीं रहता, उन पर प्रायः इस रोग का आक्रमण शीघ्र होता है। अतः हैजे के दिनों में शरीर, वस्त्र, गृह की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखिये। मन में भयभीत न रहें। साधारण सावधानी रखने से काफी बचाव हो जाता है। यह रोग प्रायः पानी के द्वारा फैलता है अतः जल को उबाल कर काम में लीजिए। बिना उबला हुआ जल कभी न पिएं। इन दिनों बाजार में बिकने वाला बर्फ, सोडा, दूध इत्यादि भी न पीना चाहिए। बाजार की मिठाइयां, चाट, कच्चा दूध, चुसकी और गुड़ इत्यादि काम में न लें। जो खाद्य पदार्थ खुले हुए बाजार में बिकते हैं, उन्हें न लेना ही हितकर है। खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज इत्यादि फल और मेवे ताजा ही काम में लेवें। चाट पकौड़ी तथा आवश्यकता से ज्यादा खाना छोड़ दें। इसका यह अभिप्राय भी नहीं कि आप बिल्कुल खाली पेट रहें। साधारण रूप से उतना ही खाइये जितना पच सके। मक्खियों से सावधान रहिये। हैजे के दिनों में कोई दस्तावर दवा न लें। कसरत और अधिक परिश्रम न करें। साधारण गति से जीवन क्रम चलने दें। जो रोगी ठीक अच्छा हो जाय, उसके वस्त्रों को खूब गर्म जल में धुलाना और मकान को खूब स्वच्छ रखना चाहिए।

हैजे के दिनों में थोड़ी थोड़ी मात्रा में सिरका, अदरक, प्याज और हींग प्रयोग में लाना बड़ी गुणकारी है। ये सभी वस्तुएं उदर तथा स्वाद को बनाये रखती हैं।

वैद्य श्री गोपीनाथ के अनुसार निम्न इलाज बड़े गुणकारी हैं। प्रारम्भ में एक दम दस्त और कैडडडड बन्द करने का प्रयत्न न करें प्रत्युत मल निकलने दें आवश्यकता हो और वैद्य सलाह दे तो एक सेर गर्म जल में 2-1 तोला खाने का नमक मिला कर पिलाएं और गले में उंगली डाल कर वमन करा दें।

प्याज के 6 माशे रस में 1 रत्ती हींग अथवा 6 माशा शहद मिला कर घंटा घंटा भर पश्चात दस्त और वमन बन्द होने तक देते रहें। लाल मिर्च का एक बीज जरा से मोम में लपेट कर देने से भी लाभ होता है।

कपूर हैजे की सबसे श्रेष्ठ औषधि माना जाता है। पीने के जल में कपूर की एक डली डाल कर देना अच्छा है। वह पानी में घुलेगा नहीं परन्तु पानी में उसका असर आ जायेगा।

एक तोला तिल के तेल में 3 माशे कपूर डाल कर अच्छी तरह हिला दीजिए। जब कपूर मिल जाये तो इसमें 5-5 बूँद आध आध घंटे बाद दस्त बन्द होने तक चटाते रहिये।

पोदीने की पत्ती 30 काली मिर्च 3 काला नमक एक माशा इलायची इमली 9 माशा लेकर पानी या अर्क गुलाब के साथ बारीक पीस कर चटनी सी बनाले इसमें से जरा सी चटनी चटाते रहें। उल्टी, प्यास, और दस्त ठीक हो जायेंगे।

सफेद जीरा एक तोला और जायफल एक तोला लेकर दोनों को बारीक पीस कर आधा सेर पानी में घोल कर छान लें और 4-5 बार में सब पिला दें।

पीने के लिए 2 सेर पानी में 30-40 पोदीने की पत्तियाँ, 8-10 लौंग और 4-5 बड़ी इलायची डाल कर उबाल लें और छान कर ठंडा कर के रख लें। इसे पिलाने से हैजे में बड़ा लाभ होगा। दो सेर जल में 6-7 लौंग औटा लें और पानी को छान कर पिलाएं प्यास शान्त होगी।


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