इन काँग्रेसियों को हो क्या गया है?

August 1949

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(आचार्य कृपलानी)

जब ठग नेताओं के जन्म, पालन-पोषण, शिक्षा और वातावरण की ओर देखते हैं तब तो वे जिस तेजी से नयी दिल्ली और प्राँतीय राजधानियों में भारतीय अधिकारी वर्ग के परम्परागत जीवन में समा गये हैं। उससे हमें आश्चर्य नहीं होता। जिन बंगलों में वे रहते हैं, उन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उन के वर्दीधारी नौकरों और चपरासियों की संख्या बढ़ी है। उन के भोजन की मेज विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों से पूर्ण रहती है और वे उसी प्रकार अक्सर प्रीतिभोज देते रहते हैं। दिल्ली और प्राँत के गवर्नमेंट हाउसों में भालों से लेस श्वेत वर्दीधारी प्रतिष्ठा रक्षक सावधानावस्था में अब भी हर गली में मूर्तिवत् खड़े रहते हैं। शायद यह सोचा जाता है कि इससे पदवी प्रतिष्ठा बढ़ती है। लेकिन यह भुला दिया जाता है कि व्यक्तिगत मान प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए इंसान को इस प्रकार इस्तेमाल करना मनुष्य की स्वाभाविक प्रतिष्ठा को नीचा करना है। यह सब फौजी तथा गैर फौजी सजधज विदेशी शासकों के लिए आवश्यक रही होगी, जो एक अर्थ में निरंकुश थे और शासित जनता से दूर रहते थे। जनता को आतंकित रखने और अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए उनको अपनी सत्ता का प्रदर्शन आवश्यक था, यद्यपि उसका कोई नैतिक आधार नहीं था। परंतु गरीब जनता के प्रजाताँत्रिक प्रतिनिधियों को जो केवल वैधानिक प्रधान हैं, इन सब बाहरी सजधज और प्रदर्शन की आवश्यकता पड़े, यह बात आसानी से समझ में नहीं आ सकती। हो सकता है, मनोवैज्ञानिक के पास इस प्रकार की विचित्र मनोदशा के लिए नाम हो जो ऐसा आचरण करने को बाध्य करती हो। लोग तो यही सोचेंगे कि लोकप्रिय प्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा और सम्मान का आधार वास्तविक गुण होते हैं, बाहरी प्रदर्शन नहीं। क्या काँग्रेस-नेताओं को जनता से कम सम्मान मिलता था, जब कि वे उस के बीच बिना प्रतिष्ठा संभालने वाले बाहरी उपचारों से दूर रह कर जाते थे? मैं दावे के साथ कहता हूँ कि उस समय उनका केवल अधिक सम्मान ही नहीं किया जाता था, वरन् लोग उन से अत्यंत प्रेम भी करते थे। उस समय वे नीचे होते हुए भी महान थे। पर आज वे ऊंचे होते हुए भी ........?

विदेशों में जो प्रतिनिधि जाते हैं, वे चाहें यहाँ सार्वजनिक जीवन में रहे हों, चाहे ऊँचे सरकारी पदों पर, हम में से हर एक, छोटे-बड़े तक, पश्चिम की सर्वमान्य पोशाक हैट, पायजामे, भोजन, कालीन, जैकेट, पैण्ट, चमड़े के जूते इत्यादि से सुसज्जित होकर जाता है, यह जानते हुए भी कि उसके लिए एक सरकारी भारतीय पोशाक निश्चित कर दी गई है। सुना है, किसी देश में अच्छा फर्नीचर नहीं मिला तो हमारे प्रतिनिधियों ने दूसरे देशों से मंगाया है। कहा जाता है कि हमारे कुछ राजदूतों को इतने महत्वपूर्ण काम करने पड़ते हैं कि जब तक वे 50 हजार से भी अधिक कीमत वाली बेहूदी गोल्स रोयर्स कारों में चढ़कर न घूमें, तब तक ठीक तरह से काम हो ही नहीं सकता।

यद्यपि काँग्रेस मद्य निषेध के लिए वचन बद्ध हो चुकी है, फिर भी विदेशों में हमारे बहुत से प्रतिनिधि न केवल स्वयं मद्यपान करते हैं, वरन् जब वे मद्य निषेध के लिए बद्धप्रतिज्ञा हिंद की ओर से दावतें देते हैं तब उन में भी शराब का आयोजन करते हैं।

यह चीज स्वतंत्रता-दिवस जैसे पवित्र अवसर पर भी की जाती है। वास्तविकता तो वह है कि शिक्षित भारतीयों ने अपने प्रभुओं की इस हद तक बाहरी बेहूदी नकल की है कि उन्हें सब बातों में कोई असंगति दिखाई नहीं पड़ती है। आदत ने न केवल उनकी औचित्य भावनाओं को ही नष्ट कर दिया है, अपितु उनकी सौंदर्य भावना को भी कुरूप बना दिया है। वे यह भी नहीं समझते कि यह सब दौलत में लोटने वाले साम्राज्यवादी पश्चिम के लिए उचित हो सकता है, हमारे लिए तो यह अपव्यय और अशोभन वस्तु है। और हम ये सब बातें करते क्यों है? शायद प्रतिष्ठा पाने के लिए। ऐसी दुनिया में नहीं कोई इतना गरीब वहाँ कि हमारा सम्मान कर सकें।

जरा इसका उस सौंदर्य और भव्यता से मुकाबला कीजिए। जो हमारे महामानवों-विवेकानन्द, टैगोर और गाँधी जी में थी। जब उन्होंने विदेशों का भ्रमण किया था, कितने आकर्षक ये दिखाई देते थे। एक संन्यासी के वस्त्रों में थे, दूसरे कवि की भू-स्पर्शी पोशाक में और तीसरे तो दरिद्र की लंगोटी में थे वे हमारे देश के वास्तविक राजदूत थे! उन्होंने शिष्टाचार और बाहरी प्रदर्शन की अपेक्षा आन्तरिक विनम्रता से लोगों को प्रभावित किया। उनके आचरण से न केवल हमारे विचारों का, वरन् हमारे जीवन और आकार का भी सौंदर्य प्रस्फुटित हुआ। वास्तव में उन्होंने विदेशों में हमारी संस्कृति को पहुँचाया। यह सच है कि हमारे राजदूत विवेकानन्द, टैगोर और गाँधी जी की भाँति महान नहीं हो सकते, परंतु आज हम जिनको विदेशों में भेजते हैं, दुर्भाग्यवश उनमें इनकी एक धुँधली छाया भी नहीं रहती! वे तो फैशन परस्त पश्चिम के नकलची होते हैं।

जब गाँधी जी की शव यात्रा का पश्चिमी ढंग का आयोजन राज्य की ओर से किया गया तब रूढ़िवादिता चरम सीमा को पहुँच गई। शाँति, अहिंसा के देवता का शव उनके निकट अनुगामियों द्वारा नहीं ले जाया गया और न उन व्यक्तियों द्वारा ही, जिनसे उन्हें अत्यन्त प्रेम था। उनका शवाधार नौ सैनिकों द्वारा खींचा गया, जैसा शायद इंग्लैण्ड में होता है। केवल इतना ही नहीं, शवयात्रा में आगे और पीछे टैंकों, बख्तर बन्दकारों तथा अन्य फौजी प्रदर्शनों का आयोजन भी किया गया था। इस में संदेह नहीं कि गाँधीजी के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का सैनिकों को, इतना ही हक था जितना किसी दूसरे को परन्तु उनको अपने साथ घातक हथियारों को नहीं लाना चाहिए था। इससे हम वह पवित्रता और शाँत वातावरण न ला सके, जो ऐसे अवसरों पर पश्चिम में देखने को मिलता है।

मैंने काँग्रेस नेताओं के चरित्र के संबंध में काफी लिखा है, क्योंकि नेताओं का चरित्र क्राँति का पथ निर्दिष्ट करने वाले महत्वपूर्ण साधनों में से है और यह हमेशा से होता आया है। रूसी क्राँति पर उसके दो मुख्य अभिनेताओं-लेलिन और स्तालिन की प्रतिभा और चरित्र का जोरदार असर पड़ा है क्या इसमें किसी को संदेह हो सकता है कि नवनिर्मित पाकिस्तान राज्य पर उसके नेताओं के चरित्र का क्या असर पड़ेगा? इस प्रकार निकट भविष्य में हमारे राज्य तथा समाज का ढांचा तैयार करने में काँग्रेस का चरित्र और शासन स्वरूप का भी अत्यधिक प्रभाव पड़ेगा। मान लीजिए कि मेरा विश्लेषण पूर्ण रूप में ठीक नहीं, तो भी यह तय है कि वे नेता गाँधी जी के अनुरूप नवीन समाज व्यवस्था की ओर काम करने में असमर्थ रहेंगे।

जो लोग अपने को काँग्रेसी के वेश में देश के मित्र और शुभचिन्तक कह के अंदर ही अंदर ब्लैक मार्केट आदि कुकर्म करते हैं, क्या इसमें कुछ सन्देह है कि यदि ऐसी कार्यवाहियाँ जारी रहीं तो काँग्रेस की शान नहीं बढ़ेगी।

कुकर्म काँग्रेस रूपी वृक्ष को जड़मूल से उखाड़ कर फेंक देंगे और वह दिन दूर नहीं जब कि वह वृक्ष पृथ्वी पर गिर कर काँग्रेस का अस्तित्व सदा के लिए मिटा देगा।

बहुत से काँग्रेसियों का स्वयं महात्माजी के आदर्शों में भी विश्वास नहीं है। ये अहिंसा और सत्य को वास्तविक रूप देना तो दूर रहा उसे असम्भव सा ही समझते हैं। काँग्रेस में जनता की सेवा का भाव भी नहीं रहा वे पदाधिकारी होने के खेल में एक दूसरे से घुड़दौड़ कर रहे हैं। उनमें क्राँतिकारी भावना का तो अभाव हैं। यदि उन्हीं ने झूठी शान, आडम्बर, पदलालसा, धन संग्रह तथा पश्चिमी रंग-ढंग में परिवर्तन नहीं किया तो विश्व की कोई भी शक्ति काँग्रेस को नष्ट होने से नहीं बचा सकती ।


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