नष्ट करो काया की पूजा आत्मा का आह्वान।
प्राण प्राण के विकल देवता लाये युग निर्माण।
मुगल तृषा की प्रेतात्मा, यह खंडहर से साकार-
चीन देश के राजा की पद दलित हुई दीवार!
नभ चुम्बी मीनार मिश्र के भूत-भक्ति-विज्ञापन।
कितनी अर्थी, सजीं, जगत कर आया जीवन-यापन।
दाह करो मृगतृष्णा मय मृत जीवन का अपमान॥ नष्ट करो.॥
अस्थि-चर्म मिट गया किन्तु फिर भी गाँधी अविनाशी,
ईसा की आत्मा को कोई दे सकता है फाँसी?
उठो सृजन कर्ता! नवयुग को लाओ, बंधन तोड़ो,
युग युगान्त की जीर्ण शीर्ण पिछड़ी परिपाटी छोड़ो,
कब प्रतीक में बसे भावना में बसते भगवान॥ नष्ट करो.॥
आज शिवालय की प्रतिमाएं भर लाई स्पन्दन,
ईसा, बुद्ध, मोहम्मद, जिन का जन-जन में हो वन्दन,
आज हिमालय के प्रदेश में फिर अर्चन आयोजन,
फिर विकास का नवल चरण नव मानव का अभिनन्दन
जय हो! नर-नारायण की जो समता का सोपान॥ नष्ट करो.